Farmers Protest: 'MSP नहीं, तो आंदोलन वहीं' यही अब संयुक्त किसान मोर्चा का नया नारा है और इसी नारे के तहत किसान नेताओं ने सरकार पर नए सिरे के दबाव बनाना शुरू कर दिया है. तीन कृषि कानूनों की वापसी के एलान के बाद किसान महापंचायत के नाम पर पहली मोर्चेबंदी लखनऊ में हुई. इस रैली में राकेश टिकैत ने कहा कि एमएसपी पर क़ानून बन जाएगा तो धरना समाप्त हो जाएगा, उसके बाद अन्य मुद्दों पर कमेटी बनाएंगे.
सरकार पहले भी MSP पर फसलों की खरीद करती रही है लेकिन MSP को लेकर देश में कोई कानून नहीं है. इसीलिए किसान संगठन चाहते हैं कि MSP को कानूनी जामा पहनाया जाए. 19 नवंबर को जब पीएम मोदी ने तीन कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया था, तब उन्होने भरोसा दिया था कि MSP को प्रभावी बनाने के लिए कमेटी का गठन किया जाएगा. लेकिन किसान, किसी कमेटी के भरोसे अपनी मांग से पीछे हटना नहीं चाहते. क्योंकि असल संकट भरोसे का है.
MSP गारंटी कानून क्यों नही दे रही सरकार?
अब तक सरकार किसानों से MSP पर खरीद के लिये बाध्य नहीं है लेकिन MSP का कानून बना तो सरकार बाध्य हो जाएगी. पीडीएस के तहत जितना अनाज गरीबों को दिया जाना होता है, सरकार उसी हिसाब से किसानों का अनाज खरीदती है लेकिन कानून के बाद उसे खपत से ज्यादा खरीद करनी पड़ेगी जिससे उस पर आर्थिक बोझ पड़ेगा.
देश में अनाज भंडारण की क्षमता पहले ही कम है. MSP के तहत ज्यादा खरीद होने लगी तो भंडारण व्यवस्था चरमरा जाएगी. सरकार ने अगर MSP गारंटी दे दी. तो एक खतरा महंगाई बढ़ने का भी है क्योंकि अनाज महंगा हो सकता है.
देश में 14 करोड़ 64 लाख किसान हैं. लेकिन सरकार सिर्फ 2 करोड़ के करीब किसानों से ही MSP पर उनकी फसल खरीदती है. बाकी किसान बिचौलियों के हाथों औने-पौने दाम पर अपना अनाज बेचने पर मजबूर होते हैं.
29 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है और इसी दिन किसानों ने संसद घेराव का ऐलान भी किया है. अगर सरकार ने MSP पर जल्द फैसला नहीं लिया. तो विवाद और बढ़ सकता है.