नई दिल्लीः तीन कृषि बिलों के खिलाफ शुरू हुए किसान आंदोलन ने राष्ट्रीय फलक और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में नए सियासी आयाम दे दिए हैं. गणतंत्र दिवस के दिन किसान आंदोलन के नाम पर जो हुड़दंग और बलवा हुआ वो अब काला अध्याय है. इसके बाद लग रहा था कि किसान आंदोलन कलंकित हो गया और इसके ख़त्म होने के स्पष्ट संकेत भी दिखने लगे. इस बलवे के लिए सबसे ज़िम्मेदार माने जा रहे भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की आंखों से टपके आंसू जैसे अंगारे बन गए. शीतलहर के बीच दिल्ली की सरहदों पर गर्मी बढ़ गई. ग़ाज़ीपुर में टिकैत का किसानों वाला तंबू न सिर्फ गड़ गया, बल्कि यहां से उत्तर प्रदेश की सियासत के नए समीकरण भी खुलकर आ गए.


किसानों के आंदोलन का हश्र क्या होगा, इस पर कुछ कहना शायद अभी संभव नहीं है. कारण है कि आंदोलन के पीछे कई मजबूत ताक़तें हैं. इनमें सियासी भी हैं और ऐसे तत्व भी हैं जो हर स्थिति में भारत में विघटन की लकीरें खींचने को आतुर रहते हैं. जो हुआ, उसके बाद अब आंदोलन क्या मोड़ लेगा? क्या समीकरण बनेंगे? इसका आकलन फ़िलहाल बहुत दुष्कर है. मगर एक गंभीर चिंता का विषय ये है कि सेना, पुलिस और खेल जगत के साथ-साथ अपनी वीरता, परिश्रम और राजनीतिक लामबंदी के लिए सबसे मुखर दो वर्ग सिख और जाट सड़कों पर हैं.


आंदोलन का अराजक रूप


पंजाब के किसान संगठन सिंघु बार्डर पर जमे हुए हैं. गणतंत्र दिवस के दिन लालक़िले से जो कलंकित कर देने वाली तस्वीरें आई. दिल्ली में ट्रैक्टरों का नंगा नाच और जैसा हुड़दंग टीवी स्क्रीन पर देखने को मिला, उसके बाद किसानों के नाम पर खड़े हुए इस आंदोलन ने एक अराजक रूप ले लिया. राकेश टिकैत गिरफ्तार होने वाले थे. यूपी शासन-प्रशासन से टिकैत की बात हुई और आत्मसमर्पण को वो तैयार हो गए. वहां जमा किसानों के लिए यूपी प्रशासन ने बसों का इंतज़ाम भी कर दिया.


किसानों के नाम पर खड़ा यह आंदोलन यूपी बार्डर पर अंतिम सांसें गिन रहा था. तभी यूपी के नेतृत्व की तरफ़ से कुछ ऐसा सियासी सेल्फगोल हुआ कि बाज़ी ही पलट गई. अपनी दबंग वाली छवि की भ्रांति में आई यूपी सरकार ने सभी जगह से आंदोलन उखाड़ फेंकने का फ़रमान जारी कर दिया. वो यह भूल गई कि मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे अपराधियों की तरह किसान आंदोलन के लोगों के साथ बर्ताव करना राजनीतिक अपरिपक्वता है.


किसानों के लिए दिल्ली सरकार ने बढ़ाया हाथ


यही हुआ भी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जाट बेल्ट इससे आहत महसूस करने लगी. रही सही कसर पूरी कर दी लोनी के बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर के बेलगाम बयानबाजी और यूपी पुलिस की कार्रवाई ने.यूपी में मोदी की आंधी और अमित शाह की रणनीति से बुरी तरह हाशिये में जा चुके राजनीतिक दलों या कुछ ख़ास गुटों को जैसे सियासी संजीवनी मिल गई है. वो राकेश टिकैत जो खुद चुनाव लड़ने पर ज़मानत नहीं बचा पाए. उनके आंसुओं में तैरकर तमाम सियासी दल बीजेपी के ख़िलाफ़ एक नया सियासी मोर्चा बनाने में जुट गए.


इनमें सबसे चतुर निकली नई राजनीति की अलंबरदार आम आदमी पार्टी. दिल्ली में दूर से बैठकर तमाशा देखती रही आप ने जैसे ही गणतंत्र दिवस पर कांड हुआ, उसके बाद पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल सामने आए. तुरंत ही उन्होंने किसानों के साथ ज्यादती की बात की और केंद्र सरकार पर बदले की भावना से काम करने का आरोप मढ़ा. ग़ाज़ीपुर में जब किसानों का जमावड़ा हुआ तो तुरंत दिल्ली सरकार उनकी मदद में सक्रिय हो गई.


वैसे तो राकेश टिकैत कहां आत्मसमर्पण की तैयारी कर रहे थे कि आप के साथ-साथ चौधरी अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल भी खुलकर सामने आ गई. आरएलडी नेता चौधरी अजित सिंह के बेटे जयंत ने राकेश के साथ मंच साझा किया. आप नेता व दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और उनकी पार्टी के की नेता भी ग़ाज़ीपुर पहुंच गए. यहां आप और आरएलडी दोनों के लिए ही ये पूरा घटनाक्रम जैसे एक अवसर बन कर आया है.


जाटलैंड में फिर से जड़ जमाने की कोशिश में RLD


आरएलडी का सूपड़ा यूपी में साफ हो चुका है. जाट राजनीति करने वाली इस पार्टी को अमित शाह की रणनीति ने हाशिये पर ला दिया है और वह अपना वजूद बचाने का संघर्ष कर रही है. ये पूरा घटनाक्रम उसके लिए मौक़ा है और जाटलैंड में वह अपनी जड़ें फिर से जमाने को आतुर है.


आप के तो खैर दोनों ही हाथों में लड्डू है. पंजाब में वह सत्ता की प्रमुख दावेदार बनकर एक समय उभरी थी. पंजाब के किसान संगठनों को भी वह समर्थन दे रही है.दिल्ली में हुए हुड़दंग के लिए भी आप किसान संगठनों पर कोई सवाल नहीं उठा रही. केजरीवाल बीजेपी पर ही प्रहार कर रहे हैं. हरियाणा में भी जाटों को बार-बार बीजेपी के ख़िलाफ़ लामबंद करने की सियासी कोशिशें हुईं, जिसमें सारे विपक्षी दल कुछ सफल भी हुए. आप वहां पर भी इसके ज़रिये अपनी पकड़ बनाना चाहती है.


सबसे बड़ी बात कि उत्तर प्रदेश में आप इस बार लड़ने की तैयारी कर रही है. इसके लिए संजय सिंह यूपी में काम कर रहे हैं. मगर वहां पर कोई मुद्दा या सियासी समीकरण अभी तक उसके पक्ष में नहीं जा रहा. ऐसे में सियासी रूप से एक आशियाना तलाशते आ रहे टिकैत को आप ने लाठी बनाने का फ़ैसला कर लिया. टिकैत को भी इससे मज़बूत होने का मौक़ा मिल रहा है. अब किसानों का ये आंदोलन यूपी में तो जातीय गोलबंदी के साथ-साथ नए सियासी समीकरणों को भी जन्म देगा, इसकी पटकथा ग़ाज़ीपुर से लिखी जा चुकी है. मतलब ये कि आरएलडी के साथ-साथ आप भी इस मुद्दे के बहाने यूपी में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश करेगी.


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