(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Farmers Protest: आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को सिंघु बॉर्डर पर दी गयी श्रद्धांजलि, कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं किसान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सुबह रकाबगंज गुरद्वारे में मत्था टेकने पहुंचे थे जिसके बाद सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रकाबगंज मत्था टेकने जा सकते हैं तो वह सिंधु बॉर्डर क्यों नहीं आ सकते है. हालांकि प्रधानमंत्री के गुरद्वारे जाने को एक्सपर्ट एक सकारात्मक कदम के तौर पर देख रहे हैं.
नई दिल्लीः किसान आंदोलन का आज 25वां दिन है. कड़ाके की ठंड में भी किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं और दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं. वहीं दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर आज किसान एकता मोर्चा ओर दूसरे किसान संगठनों ने उन सभी किसानों को श्रद्धांजलि दी जिनकी इस आंदोलन और प्रदर्शन के दौरान मौत हो गई.
किसान आंदोलन के दौरान 21 किसानों की गई जान
हाथों में तस्वीर और पोस्टर लिए किसानो ने नारे लगाते हुए श्रद्धांजलि दी. बता दें कि इस आंदोलन में करीब 21 किसानों की ठंड, एक्सीडेंट और दूसरी वजहों से जान चली गई थी. इन सभी के लिए किसान संगठनों ने रविवार को श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया साथ ही अपील की की दिल्ली से सटे बॉर्डर पर बैठे किसानों के अलावा देश में जो किसान जहां है वह वहीं से इन किसानो को श्रद्धांजलि दे.
पीएम मोदी क्यों नहीं समझ रहे किसानों के मन की बात-किसान
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सुबह रकाबगंज गुरद्वारे में मत्था टेकने पहुंचे थे. जिसके बाद सिंघु बॉर्डर पर बैठे किसानों ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रकाबगंज मत्था टेकने जा सकते हैं तो वह सिंधु बॉर्डर क्यों नहीं आ सकते है. किसानों का कहना है कि मोदी अपने मन की बात करते हैं. दूसरों के मन की बात क्यों नहीं सुन और समझ रहे हैं. कोई कानून हमें जब नहीं चाहिए तो क्यों थोपा जा रहा है. उनके कदम से बातचीत का माहौल जरूर बनेगा.
किसान आंदोलन को धार्मिक रंग देने की हो रही कोशिश हालांकि प्रधानमंत्री के गुरद्वारे जाने को एक्सपर्ट एक सकारात्मक कदम के तौर पर देख रहे हैं. इधर इंटेलिजेंस से सरकार को इनपुट है कि कुछ लोग इस आंदोलन को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहे है. ये आंदोलन कृषि कानून के विरोध में शुरू हुआ था लेकिन पाकिस्तान और खालिस्तानी आतंकी संगठन की कोशिश है कि इस आंदोलन के जरिये दो संप्रदाय के बीच एक लकीर खींची जा सके ऐसे में प्रधानमंत्री का ये कदम उनकी मंशा पर पानी फेर सकता है.
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