नई दिल्ली: हमारा-आपका का पेट भरने वाले 'अन्नदाता' यानी किसानों में भारी असंतोष है. इतने नाराज कि खेती-किसानी छोड़ सड़कों पर उतरने को मजबूर हैं. कभी प्राकृतिक आपदा, तो कभी कृषि लोन का भारी दबाव उन्हें बार-बार आंदोलन के रास्ते पर ला रहा है. ताजा मामला महाराष्ट्र का है. करीब सात दिनों तक चला आंदोलन सोमवार को सरकार के लिखित भरोसे के साथ खत्म हुआ.


30 हज़ार किसानों का नासिक से मुंबई पैदल मार्च

नासिक से 30 हज़ार किसान छह दिनों तक पैदल मार्च कर देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में अपनी गुहार लगाने पहुंचे. 200 किलोमीटर मार्च कर राजधानी पहुंचे इन किसानों की बुंलद आवाज से सरकार हरकत में आई. आंदोलन के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार लगभग सभी मांगें मानने पर सहमत हो गई है. इस किसान आंदोलन का नेतृत्व माकपा से जुड़ा संगठन अखिल भारतीय किसान सभा कर रहा था. इनकी मांग किसानों के ऋण बिना शर्त माफ करने और वन भूमि उन आदिवासी किसानों को सौंपने की मांग की है जो वर्षों से इस पर खेती कर रहे हैं. साथ ही किसान स्वामीनाथन समिति की कृषि लागत मूल्यों से डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की सिफारिश को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं.

अलग-अलग राज्य में सड़कों पर किसान

किसानों का इतना बड़ा आंदोलन पहला नहीं है. इससे पहले मध्य प्रदेश के मंदसौर, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में कई बड़े आंदोलन हो चुके हैं. राज्य अलग हों लेकिन मुद्दे सब जगह एक जैसे हैं. औऱ वो है किसानों की बढ़ती परेशानियां. अपने- अपने राज्य में सरकारों तक पहुंचाने उन्हें हर बार अपनी आवाज़ बुलंद करनी पड़ रही है. कई जगह आंदोलन ने हिंसक रूप लिया जहां गोलियां भी चली. लेकिन एकजुट हुए किसानों की मांगों को भले ही पूरी नहीं तो काफी हद तक माननी पड़ी. कई बार सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए दिल्ली तक आए.

मध्यप्रदेश में नाराज किसान

पिछले साल जून में मध्य प्रदेश के मंदसौर में बड़ा किसान आंदोलन हुआ. इस दौरान पांच किसानों की पुलिस की गोली से और एक की पिटाई से मौत हो गई थी. उसके बाद यहां कर्फ्यू भी लगाना पड़ा था. यहां भी किसानों की मांग में कर्ज माफी और लागत का डेढ़ गुना हासिल करना शामिल था. मंदसौर में हुई गोलीबारी के बाद देशभर में इसकी आलोचना हुई थी. मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने इसे खूब भुनाने की कोशिश की और यह वजह रही कि कांग्रेस को निकाय चुनाव और विधानसभा उप चुनाव में काफी फायदा मिला. अब राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव हैं. किसान आंदोलनों का असर साफ दिखने की उम्मीद है.

किसान आंदोलन को ध्यान में रखकर प्रदेश सरकार ने कृषि बजट में साल 2018-19 के लिए 37,498 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है, जो वर्ष 2017-18 के पुनरीक्षित अनुमान से 17 प्रतिशत अधिक है.

मध्य प्रदेश के ही नरसिंहपुर और श्योपुर जिले में भी किसान आंदोलन हुआ. नरसिंहपुर में हुए आंदोलन में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने भाग लिया था. एनटीपीसी संयंत्र से प्रभावित किसान अपनी मांगों को लेकर धरने पर बैठे थे.

दिल्ली पहुंचे तमिलनाडु के किसान

पिछले साल मार्च-अप्रैल में तमिलनाडु से आए सैकड़ों किसानों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई दिनों तक प्रदर्शन किया था. तमिलनाडु में पिछले कुछ वर्षों में सूखे का सामना करना पड़ा है. फसलें बर्बाद हो चुकी है. किसान कर्ज तले दबे हैं. यही वजह रही की सरकार से कर्जमाफी की मांग के लिए दिल्ली में 40 से अधिक दिनों तक डटे रहे. उनकी मांगों में फसलों का उचित मूल्य, सस्ता बीज, सूखा राहत पैकेज, 60 साल से अधिक उम्र वाले किसानों के लिए पेंशन की व्यवस्था आदि शामिल था. प्रदर्शन की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए किसान कभी चूहा खाकर, तो कभी नरमुंड रखकर, तो कभी नॉर्थ-साउथ ब्लॉक में नंगा होकर प्रदर्शन किया. जिसके बाद तमिलनाडु सरकार के प्रतिनिधियों ने वादा किया कि उनकी मांगों को मान ली गई है. हालांकि किसान अब भी असंतुष्ट हैं. अब ये किसान तमिलनाडु में आंदोलन चला रहे हैं.

राजस्थान में भी सड़कों पर उतरे किसान

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित राजस्थान में भी किसान सड़कों पर उतरे. सीकर में किसानों ने सितंबर में प्याज, मूंगफली के उचित दाम, पशुओं की बिक्री पर लगी रोक हटाने, कर्ज माफी, किसानों को पेंशन देने सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन किया. इस आंदोलन में ज्यादातर महिलाएं थी. किसान नेताओं के साथ दो हजार से अधिक किसानों ने जयपुर कूच किया. हालांकि पुलिस नाकेबंदी की वजह से किसान जयपुर नहीं पहुंच पाए. पुलिस ने आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया. आंदोलन के आगे झुकी सरकार ने अंतत: 50,000 रुयपे तक का लोन माफ करने का ऐलान किया. साथ ही 2,000 रुपये किसानों को बतौर पेंशन देने के दावे किये.

उत्तर प्रदेश में भी असंतुष्ट हैं किसान

उत्तर प्रदेश में कुछ शर्तों के साथ किसान कर्जमाफी के बावजूद कई बार किसान आंदोलन हो चुके हैं. किसानों ने सरकार पर आलू का उचित दाम नहीं मिलने के आरोप लगाते हुए विधानसभा और राजभवन के सामने आलू फेंक दिया. इसके बाद समाजवादी पार्टी ने सरकार को घेरा. वहीं भारतीय किसान यूनियन ने नौ फरवरी को आलू किसानों की समस्याओं को लेकर प्रदेशव्यापी आंदोलन किया था. वहीं महोबा जिले में ओलावृष्टि से तबाह फसलों के नुकसान के मुआवजे की मांग को लेकर किसानों ने फरवरी में आंदोलन किया था. आंदोलन करने वाले 40 किसानों के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया है. किसानों का बुंदेलखंड के इलाके में प्रदर्शन तो आम बात है.

सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा मामला

20 नवंबर को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी (AIKSCC) ने दिल्ली में प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में तमिलनाडु, महाराष्‍ट्र, मध्‍य प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश, पंजाब और तेलांगना के हजारों किसान शामिल हुए थे. इस दौरान स्‍वराज इंडिया पार्टी के अध्‍यक्ष योगेंद्र यादव ने किसानों की रैली का नेतृत्‍व रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक किया था. योगेंद्र यादव सूखा प्रभावित इलाकों का पिछले दो सालों में दौरा किया है. उन्होंने इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से किसानों की बदहाली पर रिपोर्ट मांगी थी.

इन सभी आंदोलन पर नजर डालें तो साफ दिख रहा है कि देश का किसानों की नाराज़गी बढ़ रही है. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने किसानों की आत्महत्या समेत कई मुद्दों को अपना चुनावी एजेंडा बनाया था. स्वामिनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था. लेकिन सरकार बदलने के बाद भी किसानों के हालात नही बदले हैं.  इन मुद्दों पर विपक्ष या तो चुप रही है या काफी देर से जागी है. महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन की ही बात करें तो छह दिन बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्विट कर कहा कि वह किसान आंदोलन के साथ हैं. अन्य विपक्षी पार्टियों का भी यही ढर्रा रहा है. ऐसे में किसान ठगा हुआ महसूस कर रहा है. और उसे रास्ता खुद सड़क पर निकल अपने मुद्दों पर सरकार को चुनौती देना दिख रहा है.