नई दिल्ली: देश में जानलेवा कोरोना वायरस के मद्देनजर भारत सरकार ने अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) पॉलिसी में बड़ा परिवर्तन किया. भारत की तरफ से लगाए गए निवेश नियंत्रण प्रावधानों को अब चीन ने भेदभाव भरा बताया है. चीन ने कहा कि ऐसा करना वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) नियमों और जी-20 में बनी सहमतियों के खिलाफ है. चीन ने भारत से सभी देशों से आने वाले निवेश को समान अनुमति देने की मांग की है.
भारत ने क्यों उठाए बड़े कदम?
दरअसल चीन आर्थिक मंदी की चपेट में आई दुनिया भर की बड़ी कंपनियों को निवेश का लालच देकर उसपर कब्जे की कोशिश कर रहा है. इन्हीं कोशिशों के बाद भारत सरकार ने बड़ा कदम उठाया और अपनी एफडीआई पॉलिसी में बड़ा परिवर्तन कर दिया. भारत सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत के पड़ोसी देशों के लिए अब सरकारी मंजूरी को अनिवार्य कर दिया है.
भारत के इस कदम का मतलब है कि कोई भी चीनी कंपनी या किसी और देश की कंपनी भारतीय कंपनियों में अगर हिस्सेदारी खरीदना चाहती है तो सरकार की मंजूरी लेना जरूरी होगा. अभी हाल ही में भारत में ऐसा ही देखने को मिला था, जब चीन ने एचडीएफसी लिमिटेड (बैंक नहीं) में शेयर खरीदे.
भारत में दो तरीके का होता है विदेशी निवेश
भारत में विदेशी निवेश दो तरीके का होता है. पहला एफपीआई फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट और दूसरा एफडीआई फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट. एफपीआई के तहत होने वाला इन्वेस्टमेंट सिर्फ 10% तक का होता है. वहीं एफडीआई के अंतर्गत 10% से ज्यादा का निवेश आता है.
अभी तक के नियम के मुताबिक, पाकिस्तान और बांग्लादेश के किसी नागरिक या कंपनी को छोड़कर दूसरे किसी भी देश के लोग भारत में एफडीआई के तहत इन्वेस्टमेंट कर सकते थे, लेकिन अभी सरकार ने इस नियम में बदलाव किया है.
भारत सरकार के नए नियम क्या कहते हैं?
भारत के जो सीमा से लगने वाले देश हैं, अगर उनका कोई भी नागरिक या कंपनी भारत में 10% से ज्यादा का निवेश करती है तो उसे सरकार से इजाजत लेनी होगी. यह इजाजत कैबिनेट स्तर की होगी, इसलिए यह इतनी आसानी से नहीं मिलेगी. निवेश करने वाली कंपनी को बताना पड़ेगा कि वह निवेश का कोई गलत इस्तेमाल नहीं करेगी. 10% से कम वाला निवेश सेबी की निगरानी में होगा.