नई दिल्ली: कोरोना की तीसरी लहर का प्रभाव सबसे ज़्यादा बच्चो में देखने को मिल सकता है, ऐसा विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है. ऐसे में दिल्ली में सरकार ने तीसरी लहर को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं, जिसमें खासतौर पर बच्चों के लिए एक स्पेशल टास्क फोर्स बनाई जा रही है. हालांकि कोरोना की इस लहर में भी बच्चों के प्रभावित होने के कई मामले सामने आए हैं.


दिल्ली के लोकनायक अस्पताल में कोरोना की पिछली लहर के मुक़ाबले इस बार करीब 4 गुना ज़्यादा कोरोना संक्रमित बच्चे अस्पताल में एडमिट हुए हैं. लोकनायक अस्पताल प्रशासन से मिली जानकारी के मुताबिक अप्रैल और मई के महीने में LNJP में कोरोना से संक्रमित कुल 30 बच्चों को भर्ती किया गया है. ये बच्चे 8 महीने से लेकर 15 साल की उम्र के हैं. जानकारी के मुताबिक इन 30 बच्चों में से 4-5 बच्चे गंभीर स्तिथि वाले भी थे, जिन्हें वायरल निमोनिया हुआ था. राहत की बात ये है कि ये सभी बच्चे रिकवर हो गये हैं. 30 में से 25 बच्चे ठीक होकर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो चुके हैं और 5 अभी भी भर्ती हैं.


लोकनायक अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ सुरेश कुमार का कहना है कि आबादी का वो हिस्सा जिसमें वैक्सीनेशन नहीं हुआ है उनमें निश्चित तौर पर रिस्क ज़्यादा होगा. बच्चों का वैक्सीनेशन अभी शुरू नहीं हुआ है इसलिए उनको अभी दिक्कत हो सकती है. हमारे अस्पताल में करीब 2-3 बच्चे रोज़ आते हैं. जिनमे ऑक्सीजन लेवल कम है, उन्हें एडमिट भी कर रहे हैं. उनको पेडियाट्रिक आईसीयू में रखा गया है.


तीसरी लहर की संभावना और बच्चों की सुरक्षा को लेकर माता पिता भी परेशान हैं. दिल्ली में रहने वाली विनीता जैन के दो बेटे हैं. बड़े बेटे विराज की उम्र 4 साल है और छोटे बेटे युवान की उम्र 6 महीने है. उनका कहना है कि बच्चों की सेफ्टी को लेकर बिल्कुल डर लगता है. बच्चे घर मे बंद हैं, लेकिन इतनी सावधानियां बरतने के बावजूद अगर बच्चों को संक्रमण हो जाये तो किस तरह से मैनेज कर पाएंगे क्योंकि बड़े तो फिर भी बोलकर तकलीफ बता पाते हैं, लेकिन छोटे बच्चों में कैसे समझ पाएंगे कि क्या दिक्कत है क्या दवाइयां देनी हैं और उनके क्या साइड इफ़ेक्ट होंगे. उनका मानना है कि अगर बच्चों के लिए भी वैक्सीन होती तो अभिभावकों के लिए शायद ज़्यादा संतोषजनक होता.


दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष और फोर्टिस शालीमार बाग के सीनियर पेडियाट्रिशन डॉ अरुण गुप्ता के मुताबिक पिछली लहर के मुकाबले इस लहर में बच्चों में संक्रमण ज़्यादा देखने को मिला है. उनका कहना है कि इस बार बच्चों में संक्रमण के कुल मामलों की बात करें तो जितनी स्टडीज़ और रिसर्च निकल कर सामने आ रही है वह यह बताती है कि कुल केस का 11 से 12% संक्रमण बच्चों में पाया गया है जो कि पिछली बार से ज्यादा है, पिछली बार ये अनुपात 4 से 5% था. साथ ही इस बार बच्चों में पिछली बार के मुकाबले बच्चों में लक्षण ज़्यादा हैं. बच्चों को बुखार, खांसी, डायरिया की ज्यादा शिकायत है. सिम्प्टोमैटिक माइल्डनेस वाले बच्चे ज्यादा हैं, बहुत गंभीर रूप से बीमार या जिन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराने की जरूरत पड़े ऐसे बच्चे ज्यादा नहीं हैं. जिस तेजी से मामले बढ़े हैं उतनी तेजी से हॉस्पिटल में एडमिशन नहीं बढ़ा है जो कि अच्छी बात है.


बच्चों को इलाज के लिये किन चीजों की ज़रूरत है और तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए क्या तैयारियां की जा रही हैं, इस बारे में डॉ अरुण गुप्ता का कहना है कि यह माना जा रहा है कि तीसरी वेव बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर सकती है, इसलिए उसके इंतजाम सारे किए जा रहे हैं. आम आईसीयू और बच्चों के आईसीयू में ज़्यादा नहीं लेकिन थोड़ा अंतर होता है.


• बड़ों के ICU से बच्चों के ICU में टेंपरेचर मेंटेनेंस अलग होता है क्योंकि बच्चे छोटे भी हो सकते हैं जैसे 6 महीने या एक साल के. जो उपकरण इस्तेमाल होते हैं वह थोड़े से बड़ों से अलग होते हैं.
• बच्चों में भी दो तरह के ICU होते हैं एक NICU होता है, neo natal ICU जिसमें 1 महीने तक के बच्चों को रखा जाता है, दूसरे पीडियाट्रिक ICU होते हैं जो 1 महीने से लेकर 12 साल तक के बच्चे के लिए होते हैं.
• कुछ वेंटिलेटर ऐसे होते हैं जो सिर्फ बड़ों के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं, कुछ सिर्फ बच्चों के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं और कुछ वेंटिलेटर दोनों के लिए ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं. दिल्ली सरकार इस बात से पूरी तरह जागरूक है और जितने भी 1,000 नए आईसीयू बेड दिल्ली में बने हैं उनमें बच्चों का इलाज भी किया जा सकता है.
• बच्चों में जो मास्क लगाए जाते हैं ऑक्सीजन देने के लिए वह भी अलग होते हैं.
• अगर बच्चों को वेंटिलेटर पर रखना होता है तो इन-ट्यूब्स अलग होती हैं.
• ऑक्सीजन देने का बेसिक तरीका बड़ों में और बच्चों में एक ही होता है ऑक्सीजन देने की डिवाइज़ बच्चों में भी एक ही होती है, लेकिन उनका मैकेनिक्स थोड़ा अलग होता है. क्योंकि बच्चों की शरीर की फिजियोलॉजी अलग होती है. उनके फेफड़े छोटे होते हैं, इसलिए उसमें जो मोड यूज करते हैं वह अलग होते हैं जिसके लिए अलग मशीन चाहिए होती है.
• मेडिकल स्टाफ को भी बच्चों के हिसाब से ट्रेनिंग देनी होती है, क्योंकि 1 बच्चा 6 महीने का है, एक 6 साल का और दूसरा 12 साल का है. सभी उम्र के बच्चे अलग अलग तरीके से व्यवहार करते हैं.


डॉ अरुण गुप्ता के मुताबिक ये बहुत बड़ी चीज़े नहीं हैं लेकिन इसके लिए पहले से सोचना पड़ता है. इसलिये एक विशेष कमेटी दिल्ली सरकार बना रही ही जो प्रोटोकॉल तैयार करेगी. उनका कहना है कि दिल्ली में बच्चों के काफी आईसीयू है और उनको चलाने के लिए एक्सपर्ट भी मौजूद है इसलिए हमें नहीं लगता कि कोई दिक्कत आनी चाहिए.


दिल्ली में बच्चों को तीसरी लहर से बचाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाये जाने को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि एक कमेटी हमने बनाई है जो कि बच्चों के डॉक्टर की कमेटी है. वह लोग हमें बताएंगे कि किस किस तरीके की तैयारियां करने की जरूरत है. क्योंकि अगर कोई बच्चा बीमार होता है और कोविड आईसीयू में होता है और उसके माता-पिता साथ नहीं होंगे तो बच्चे को आईसीयू में कौन संभालेगा. उसी तरह से बच्चों का जो ऑक्सीजन मास्क होगा उसका साइज भी अलग होगा तो बच्चों के लिए अलग किस्म के मास्क का हमें इंतजाम भी करना होगा.


बच्चों में संक्रमण के बढ़ते मामलों और संभावित तीसरी लहर ने सभी की चिंताएं बढ़ा दी है. ऐसे में इस लहर से निपटने के लिए दिल्ली सरकार पहले से तैयारियां पूरी रखने की बात कर रही है.


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