भारत और इंग्लैंड की सेनाओं के बीच पांचवां साझा युद्धाभ्यास 'अजेय वॉरियर' आज से शुरू
'अजेय वॉरियर' युद्धाभ्यास एक साल भारत में होता है और एक साल इंग्लैंड में होता है. इस साल ये साझा युद्धाभ्यास इंग्लैंड में हो रहा है.
नई दिल्ली: भारत और इंग्लैंड की सेनाओं के बीच पांचवां साझा युद्धाभ्यास, 'अजेय वॉरियर' गुरुवार से ब्रिटेन के सेलिसबरी प्लेन में शुरू हो रहा है. अलगाववाद और आतंकवाद से लंबे समय तक जूझते रहे दोनों देशों की सेनाएं इस युद्धाभ्यास के दौरान शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में एंटी-टेररिस्ट ऑपरेशन का संयुक्त-अभ्यास करेंगी. भारतीय सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद के मुताबिक 13 से 26 फरवरी तक चलने वाले साझा युद्धाभ्यास में दोनों देशों के 120-120 सैनिक हिस्सा लेंगे. जो एक कंपनी स्तर की ट्रेनिंग होगी. इस युद्धाभ्यास के दौरान दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे से आतंकवाद से लड़ने के अपने लंबे अनुभव को भी साझा करेंगी.
'अजेय वॉरियर' युद्धाभ्यास के दौरान भारत और इंग्लैंड की सेनाएं साझा ऑपरेशन्स की मॉक ड्रिल के साथ-साथ एक दूसरे के साथ हथियार चलाने की सिम्युलेटर ट्रेनिंग भी करेंगे. कर्नल अमन आनंद के मुताबिक 'अजेय वॉरियर' दोनों देशों के लिए इस मायने में अहम है क्योंकि दोनों ही देशों के सामने सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती वो ग्लोबल-टेररिज्म है जो रोज नए रूप में दुनिया के सामने आ रहा है.
आपको बता दें कि जहां भारतीय सेना कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व राज्यों में एक लंबे समय तक उग्रवाद और आतंकवाद से लड़ रही है तो इंग्लैंड ने भी उत्तरी-आयरलैंड में एक लंबे समय तक आतंकवाद के खिलाफ जंग लड़ रहा है. जहां भारत की थलसेना दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मानी जाती है वहीं इंग्लैंड की थलसेना बेहद छोटी लेकिन ताकतवर मानी जाती है. दोनों देशों की सेनाएं एक लंबा इतिहास भी साझा करती हैं.
आजादी से पहले भारत की जो सेना थी उसमें अंग्रेज अफसर और सैनिक भी होते थे. ब्रिटिश काल में बंगाल, बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी की अलग-अलग सेनाएं होती थी, लेकिन साल 1895 में तीनों को मिलाकर भारतीय सेना का पुर्नगठन किया था. इस सेना का कमांडर इन चीफ एक ब्रिटिश अफसर होता था.
1947 में देश के बंटवारे के दौरान भारतीय सेना को दो हिस्सों में बांट दिया गया था. एक हिस्सा भारत को मिला और दूसरा पाकिस्तान को मिला. लेकिन आजादी के दो साल बाद तक भी भारतीय सेना की कमान एक अंग्रेज अफसर (लेफ्टिनेंट जनरल, सर रॉय बुचर) के हाथों में थी और 1949 में ही भारतीय अफसर, जनरल के एम करियप्पा भारतीय सेना के पहले प्रमुख बने.
आज भी भारतीय सेना उसी रेजीमेंट परंपरा का अनुसरण करती है जैसा कि ब्रिटिश राज में था. खास बात ये है कि दोनों देशों की सेनाओं में आज भी गोरखा रेजीमेंट जो मुख्यत: नेपाली मूल के सैनिकों वाली रेजीमेंट है और किसी हथियार के नाम पर बनी रेजीमेंट 'ग्रेनेडियर्स' है.
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