भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त अरब अमीरात का दौरा पूरा कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने अपने यूएई दौरे के दौरान भारतीय रुपये और दिरहम (यूएई के मुद्रा) में कारोबार करने का एलान किया है. उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही भारत और अरब अमीरात का कारोबार 85 अरब से बढ़कर 100 अरब डॉलर हो जाएगा. 


भारत और यूएई के बीच अपनी-अपनी मुद्रा में कारोबार किए जाने का एलान करना ही दोनों देशों के संबंधों के बीच नया मील का पत्थर माना जा रहा है.


दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत अरब देशों के काफी नजदीक आ गया है. यूएई के देशों में से ही एक देश संयुक्त अरब अमीरात है. जहां पीएम 15 जुलाई को पहुंचे थे.


नरेंद्र मोदी ने जब से प्रधानमंत्री का पद संभाला है तब से यानी साल 2014 से उनकी ये पांचवीं यूएई यात्रा है. पिछले साल ही यूएई ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान यानी ऑर्डर ऑफ जायद से भी नवाजा था. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार अरब देश क्यों जा रहे हैं और इससे भारत का कैसे फायदा हो सकता है... 


पहले जानते हैं 9 सालों में कब कब यूएई पहुंचे पीएम मोदी 


साल 2015: नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में भारत के पीएम पद का शपथ ग्रहण किया था. तब से ही खाड़ी के इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंध लगातार मजबूत हुए हैं. साल 2015 के अगस्त महीने में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूएई पहुंचे थे. ये पिछले 34 सालों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री का पहला दौरा था. इनसे पहले साल 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यूएई का दौरा किया था.


साल 2018: पीएम मोदी ने यूएई का दूसरा दौरा फरवरी 2018 में किया. इस दौरान भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के प्रयासों की तारीफ की गई.


साल 2019: पीएम ने यूएई का तीसरा दौरा अगस्त 2019 में किया था. इस दौरान उन्हें यूएई के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'ऑर्डर ऑफ जायद' से सम्मानित किया गया था. 


साल 2022: पीएम ने चौथा दौरा जून 2022 में किया था. पिछले साल पीएम यूएई पहुंचे थे तब राष्ट्रपति मोहम्मद बिन ज़ायद अल-नाह्यान ने प्रोटोकॉल तोड़ते हुए खुद अबू धाबी पहुंचकर एयरपोर्ट पर मोदी का स्वागत किया था. 


साल 2023: 15 जुलाई को प्रधानमंत्री संयुक्त अरब अमीरात पहुंचे थे. इस दौरान दुनिया की सबसे ऊंची इमारतों में शामिल बुर्ज खलीफा पर तिरंगे के रंग की लाइट और पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर प्रदर्शित की गई थी. पीएम मोदी ने यहां के राष्ट्रपति और अबू धाबी के शासक शेख खालिद बिन मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से भी मुलाकात की. इन दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते भी हुए.


भारत की विदेश नीति में यूएई को क्यों दिया जा रहा है तवज्जो 


भारत पिछले कुछ सालों में अरब देशों के साथ अपने संबंधों को लगातार गहरा करने की कोशिश कर रहा है. ऐसा करने के पीछे सबसे बड़ी वजह है रूस और चीन के बीच गहराते रिश्ते. भारत में कच्चे तेल के आयात में की बात करें तो वर्तमान में रूस की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है और ओपेक देशों की हिस्सेदारी घट रही है. रूस से कच्चे तेल के आयात का आंकड़ा सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका से सामूहिक रूप से खरीदे गए तेल के आंकड़ों से  भी ज्यादा हो गया है.


रूस यूक्रेन युद्ध के बाद से ही तेल आयात के मामले में रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. लेकिन अगर रूस सस्ते में भारत को तेल बेच रहा है तो इसका सबसे बड़ा कारण है रूस, यूक्रेन के बीच का युद्ध. जब यह जंग शुरू नहीं हुई थी तो उस समय भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम था.


दरअसल रूस का यूक्रेन पर किए गए हमले के बाद अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों ने रूस पर तमाम पाबंदियां लगा दी थी. जिसके बाद युद्ध पर हो रहे खर्च की भरपाई के लिए रूस की मजबूरी थी कि वह भारत को कम कीमत पर कच्चा तेल देकर खजाने को भर सके. 


लेकिन जब इन दोनों देशों के बीच का युद्ध खत्म हो जाएगा और रूस की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगेगी, तो हो सकता है कि रूस कच्चे तेल के मामले में भारत के साथ अपनी शर्तों पर फिर मोलभाव करे. ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि वह अरब देशों के साथ संबंधों को और बेहतर करे क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब काफी सालों से भारत के लिए कच्चे तेल के बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक रहा है. 


इसके अलावा भी वजहें


भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच गहराते रिश्ते का एक कारण पिछले साल हुआ सीईपी ( कॉम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) समझौता माना जा रहा है. 


यह पिछले 10 सालों के बाद भारत की तरफ से किया गया पहला मुक्त व्यापार समझौता है. भारत ने पिछला मुक्त व्यापार समझौता साल 2011 में जापान से किया था.


इससे पहले साल 2017 में उठाया गया था बड़ा कदम 


भारत ने यूएई के साथ अपने रिश्तों को बेहतर करने की कवायद तो साल 2015 से ही शुरू कर दी थी लेकिन इसकी पहली झलक साल 2017 में गणतंत्र दिवस के मौके पर मिली. इस मौके पर मोदी सरकार ने मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान को ही चीफ गेस्ट के रूप में न्योता दिया था. उस वक्त मोहम्मद बिन ज़ाएद अल नाह्यान राष्ट्रपति नहीं बल्कि अबू धाबी के क्राउन प्रिंस थे.


ऐसी परंपरा रही है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत गणतंत्र किसी देश के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को ही मुख्य अतिथि बनाता है. लेकिन अल नाह्यान साल 2017 में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनकर आए थे.


तीन E पर आधारित है भारत-यूएई के रिश्ते 


भारत और संयुक्त अरब अमीरात का रिश्ता एनर्जी, इकोनॉमी और एक्सपेट्रिएट यानी आप्रवासी (भारतीय) पर टिका हुआ है. भारत पिछले वित्त वर्ष यानी 2022 से 23 के दौरान यूएई से कच्चा तेल आयात करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश था. 


लेकिन अब दोनों देशों ने तेल के आलावा भी कारोबार को बढ़ाने का फैसला किया है. 15 जुलाई को पीएम के यूएई दौरे में फैसला लिया गया कि साल 2030 तक गैर तेल कारोबार को बढ़ाकर 100 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य पार किया जाएगा. 


अब जानते हैं इस दौरे पर भारत- यूएई के बीच क्या समझौता हुआ 



  • भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच रुपये और दिरहम में कारोबार होगा. 

  • यूएआई में आईआईटी दिल्ली का कैंपस बनाया जाएगा. इस समझौते को लेकर पीएम मोदी की मौजूदगी में शिक्षा मंत्रालय और अबू धाबी के शिक्षा एवं ज्ञान विभाग के साथ इस उद्देश्य से समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गए. 

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2023 में होने वाले COP28 के चयनित मेजबान देश होने के लिए यूएई को बधाई दी और यूएई की COP28 की आने वाली अध्यक्षता के लिए अपना पूर्ण समर्थन दिया. 

  • यूएई के राष्ट्रपति अल नाह्यान से मुलाकात के बाद भारत के प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले साल व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (सीईपीए) पर हस्ताक्षर के बाद से भारत-यूएई व्यापार में 20 प्रतिशत की बढ़त हुई है. दोनों देशों का कुल व्यापार फिलहाल लगभग 85 अरब अमेरिकी डॉलर है. हम उम्मीद करते हुए कि ये जल्द ही 100 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा. 


यूएई भारत के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की कोशिश में क्यों लगा है


संयुक्त अरब अमीरात अब सऊदी अरब की तरह ही अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने पर फोकस कर रहा है और यह देश अपनी ‘सर्कुलर इकोनॉमिक पॉलिसी’ पर काम कर रहा है. अब तक यूएई का ज्यादातर अर्थव्यवस्था तेल के आयात पर ही निर्भर था लेकिन अब ये देश इसे कम कर और भी चीजों का कारोबार बढ़ाना चाहता है. यही कारण है कि यूएई दुनिया भर में निवेश के नए ठिकाने ढूंढ रहा है.


यूएई का इरादा साल 2031 तक अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को दोगुना करना है. इसके अलावा यह देश फूड बिजनेस, ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट कारोबार और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर पर भी फोकस कर रहा है. यूएई इन कारोबारों के आयात के लिए भारत को एक भरोसेमंद पार्टनर के तौर पर देख रहा है. यह देश भारत में निवेश भी करना चाहता है और इन सेक्टरों में उसकी दक्षता का लाभ भी उठाना चाहता है.