नई दिल्ली: पेट्रोल-ड़ीजल की बढती कीमतों पर चौतरफा आलोचनाओं से घिरी केद्र सरकार ने राज्यों पर पलटवार किया है. केंद्र का कहना है कि राज्य सरकारें अपने यहां टैक्स की दर कम करें तो ग्राहकों को ज्यादा फायदा मिल सकता है.


पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आग लगी हुई है. पहली जुलाई से 20 सितम्बर के बीच दिल्ली में पेट्रोल के भाव 7 रुपये 43 पैसे बढ़े है जबकि डीजल की कीमत में 5 रुपये 44 पैसे का इजाफा हुआ. केंद्र सरकार पर आरोप लग रहा है कि वो जब विपक्ष में थे तो पेट्रोल-डीजल के भाव रुपये-दो रुपये भी बढ़ जाते थे तो वे सड़कों पर आ जाते थे. लेकिन अब वो इसी बढ़ोतरी को जायज ठहराने में जुटे हुए हैं. बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं से बातचीत में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि जो पार्टी (कांग्रेस हो या आप) कीमतों की बढ़ोतरी की आलोचना कर रही है, वो अपने यहां क्यों नहीं टैक्स घटा देती?

बीते कुछ दिनों के दौरान पेट्रोल-डीजल के दाम मे हुई बढ़ोतरी को लेकर जेटली ने कहा कि अगस्त के महीने में अमेरिका में दो भयानक तूफान आय़ा. इससे कच्चे तेल के भाव तो बढ़े ही, वहीं विश्व व्यापी स्तर पर रिफाइनरी क्षमता में 13 फीसदी की कमी आयी. इन सब कारणों से तीन महीनों के दौरान पेट्रोल के अंतरराष्ट्रीय भाव में 18 फीसदी और डीजल के अंतरराष्ट्रीय भाव में 20 फीसदी का इजाफा हुआ. इसके चलते भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिली. ध्यान रहे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल के भाव में होने वाले बदलाव के आधार पर हर रोज कीमत में बदलाव होता है और नयी कीमत हर रोज छह बजे से प्रभावी मानी जाती है. कीमतों में बदलाव की ये व्यवस्था 16 जून से लागू की गयी है.

हालांकि सरकार का कहना है कि कीमतें अब स्थिर हो रही है और उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे इसमें कमी आएगी, क्योंकि वैश्विक तनाव तो घटा ही है, साथ ही प्राकृतिक आपदाओं की भी फिलहाल आशंका नहीं. लेकिन जब वित्त मंत्री से पूछा गया कि सरकार क्यों नहीं टैक्स में कमी करती है तो इस पर उनका जवाब था कि सामाजिक देनदारियों को पूरा करने के लिए टैक्स से आमदनी जरुरी है. मतलब साफ है कि टैक्स में कमी के आसार नहीं.

पेट्रोल-डीजल पर टैक्स

तेल कंपनियों का कहना है कि 19 अक्टूबर 2014 को जब पेट्रोल-डीजल की कीमत तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया गया तो उस समय दिल्ली में पेट्रोल की खुदरा कीमत में केंद्र और राज्य सरकार की करों की कुल हिस्सेदारी 31 फीसदी थी जबकि अब ये 52 फीसदी पर पहुंच गयी है. इसी तरह डीजल की खुदरा कीमत में केंद्र और राज्य सरकार की कर की कुल हिस्सेदारी 19 अक्टूबर को 18 फीसदी थी जो अब 45 फीसदी पर पहुंच गयी है.

दोनों ही उत्पादों पर केंद्र औऱ राज्य सरकारों ने खासा ज्यादा कर लगा रखा है. यही नहीं मोदी सरकार के सत्ता में आने के कुछ समय बाद जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल के भाव कम हुए तो केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी कई बार बढ़ा दिए. केंद्र सरकार पेट्रोल-डीजल पर तय दर के हिसाब से एक्साइज डयूटी लगाती है जबकि राज्य सरकार फीसदी के हिसाब से. इसे यूं समझ लीजिए, केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 21 रुपये 48 पैसे के हिसाब से एक्साइज ड्यूटी वसूलती है जबकि राज्य सरकार मसलन दिल्ली 27.5 फीसदी की हिसाब से वैट लगाती है.