नई दिल्ली: तब्लीगी जमात के मुखिया मौलाना साद पर दस्तावेजों के हवाले से बड़ा खुलासा हुआ है. खुलासा यह कि साल 2008 में भी केंद्र सरकार के एक विभाग ने मौलाना साद और उनके सहयोगी के खिलाफ निजामुद्दीन थाने में मुकदमा दर्ज कराया था. दिल्ली पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के पहले सरकारी विभाग द्वारा दी गई शिकायत की संयुक्त सर्वे के आधार पर जांच भी की थी और उसके बाद एफआईआर दर्ज की गई थी लेकिन बाद में यह एफआईआर बंद कर दी गई थी. सूत्रों का कहना है कि दिल्ली पुलिस ने इस एफआईआर को बंद करते समय कहा था कि सरकारी विभाग ने जो रिपोर्ट दर्ज कराई है वह सही नहीं है.


कोरोना महामारी को लेकर दिल्ली पुलिस ने तब्लीगी मरकज के मुखिया मौलाना साद और उनके सहयोगियों के खिलाफ गंभीर आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया था और फिर ईडी ने भी मनी लांड्रिग के तहत मुकदमा दर्ज किया लेकिन अब तक कोई भी जांच एजेसी मौलाना साद पर हाथ नहीं डाल सकी और ना ही उन्हें पूछताछ के लिए बुला सकी जबकि साद कहां है ये सब जानते हैं.


दरअसल जांच एजेंसियां इसके पहले भी एक बार मौलाना साद के खिलाफ हुई एफआईआऱ का हस्र देख चुकी हैं, जिसमे खुद केंद्र के एक सरकारी विभाग ने साल 2008 में मौलाना साद के खिलाफ बाईनेम एफआईआर दर्ज कराई और बाद मे उसका हस्र नक्कारखाने मे तूती की आवाज की तरह हुआ और मौलाना के खिलाफ कार्रवाई तो दूर रही उन्हें पूछताछ तक के लिए नहीं बुलाया गया.


आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने दर्ज कराई दी शिकायत


दस्तावेजों के मुताबिक भारत सरकार के ही एक विभाग आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी वो विभाग जो पुरात्तव के अवशेषों के सरंक्षण का काम करता है. उसने दक्षिणी जिले की थानाध्यक्ष निजामुद्दीन को सरकारी लेटर हेड पर एक शिकायत दी थी शिकायत में कहा गया था कि इस कार्यालय को मिली जानकारी के अनुसार आपको सूचित किया जाता है कि बस्ती निजामुद्दीन में संरक्षित व ऐतिहासिक स्मारक बाराखंभा से लगभग 20-22 मीटर की दूरी पर एक लाल स्मारक है. उस स्मारक के अंदर मौलाना साद और मौलाना जुबेर नवनिर्माण कार्य करा रहे हैं. यह कार्य संरक्षित स्मारक नियमावली 1959 एवं संशोधित अधिनियम 1992 के तहत बिना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से अनुमित लिए बगैर, एक गैर कानूनी कार्य घोषित है. अत: आपसे अनुरोध है कि इस प्रकार के अवैधानिक नवनिर्माण कार्य को शीध्र रूकवाया जाए और इसकी एफआईआर दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई की जाए.


दस्तावेजों के मुताबिक इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों के साथ इस जगह का सयुक्त सर्वे किया और इस सर्वे रिपोर्ट मे शिकायत को सही मानते हुए तत्काल एफआईआर दर्ज करने को कहा गया. इस एफआईआर का नंबर है 371, एफआईआऱ दर्ज होने की तारीख है 1 नवबंर 2008 और थाना है हजरत निजामुद्दीन और इस एफआईआर मे आरोपी के तौर पर दर्ज है मौलाना साद और मौलाना जुबेर के नाम एफआईआर मे साफ तौर पर यह भी लिखा गया है कि लाल कुआं के ऐतिहासिक गुंबदों के आसपास टीन लगाकर काफी गहरी खुदाई की गई है. यह जगह संरक्षित जगह की लिमिट एरिया के तहत आती है. लिहाजा यह अपराध संरक्षित स्मारक अधिनियम की धारा 30 और 39 के तहत आता है. एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाए.


सूत्रों के मुताबिक इस एफआईआर को लेकर खासी जद्दोजहद हुई और फिर इस एफआईआर को यह कह कर बंद कर दिया गया कि सरकारी विभाग की शिकायत ही गलत है, तो सच्चाई क्या है यह तो साद और शासन ही जाने लेकिन एक बार फिर एक नयी एफआईआर में मौलाना साद और मौलाना जुबेर के नाम शामिल किए गए है. और अब तक की सच्चाई यही है कि जांच एजेंसियां मौलाना साद से अब तक पूछताछ करना तो दूर उसे पूछताछ मे शामिल होने का नोटिस तक नहीं दे पाई हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है आखिर कौन है वह जो मौलाना साद और उसके सहयोगियों को बचा रहा है या फिर ऐसे कौन से कारण हैं जिसके चलते जांच एजेंसियां केस में दिल्ली पुलिस और मीडिया दोनों शामिल है वह मौलाना सात को पूछताछ के लिए नहीं बुला पा रही.


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