सरकार ने दशकीय जनगणना कराने की तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन इस प्रक्रिया में जाति संबंधी कॉलम शामिल करने पर अभी निर्णय नहीं लिया गया है. सूत्रों ने रविवार (15 सितंबर 2024) को बताया कि दशकीय जनगणना जल्द ही कराई जाएगी. भारत में 1881 से हर 10 वर्ष में जनगणना की जाती है. इस दशक की जनगणना का पहला चरण 1 अप्रैल, 2020 को शुरू होने की उम्मीद थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे स्थगित करना पड़ा.


जाति के कॉलम पर नहीं लिया गया निर्णय


पिछले साल संसद से पारित महिला आरक्षण अधिनियम का कार्यान्वयन भी दशकीय जनगणना से जुड़ा हुआ है. लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने संबंधी कानून इस अधिनियम के लागू होने के बाद होने वाली पहली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़ों के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद लागू होगा. दशकीय जनगणना में जाति संबंधी कॉलम शामिल करने के बारे में पूछे जाने पर सूत्र ने कहा कि इस पर निर्णय होना अभी बाकी है. 


2011 के आंकड़ों पर बन रही नीतियां


राजनीतिक दल जाति जनगणना कराने की पुरजोर तरीके से मांग कर रहे हैं. नये आंकड़े नहीं होने के कारण सरकारी एजेंसियां ​​अब भी 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर नीतियां बना रही हैं और सब्सिडी आवंटित कर रही हैं. जनगणना के तहत घरों को सूचीबद्ध करने का चरण और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अद्यतन करने का कार्य 1 अप्रैल से 30 सितंबर, 2020 तक पूरे देश में किया जाना था, लेकिन कोविड-19 के प्रकोप के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था.


अधिकारियों ने बताया कि पूरी जनगणना और एनपीआर प्रक्रिया पर सरकार के 12,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होने की संभावना है. यह पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसके जरिए नागरिकों को स्वयं गणना करने का अवसर मिलेगा. इसके लिए जनगणना प्राधिकरण ने एक स्व-गणना पोर्टल तैयार किया है, जिसे अभी लॉन्च नहीं किया गया है. स्व-गणना के दौरान आधार या मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से एकत्र किया जाएगा. 


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