ISRO Commercial Mission Countdown: इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (ISRO) अपने अगले और महत्वपूर्ण लॉन्च के लिए तैयार है. ये मिशन है LVM3 M2/OneWeb India1 है. यह मिशन इसरो अपने सबसे भारी रॉकेट 'एलवीएम-3' यानी लॉन्च व्हीकल मार्क 3 से 22 तारीख की मध्यरात्रि को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से आधी रात 12 बजकर 7 मिनट पर प्रक्षेपित करेगा. बता दें कि एलवीएम-3 को पहले जीएसएलवी मार्क रॉकेट के नाम से भी जाना जाता था.
इस मिशन का 24 घंटे का काउंटडाउन आज रात 12 बजकर 7 मिनट पर शुरू होगा. इस मिशन में ब्रिटिश स्टार्टअप वनवेब के 36 उपग्रहों का लॉन्च किया जाएगा. बता दें कि वनवेब एक प्राइवेट सैटेलाइट कम्युनिकेशन कंपनी है. भारतीय कंपनी भारती एंटरप्राइजेज वनवेब में एक प्रमुख इन्वेस्टर और शेयर होल्डर है. इस लॉन्च के साथ ही इसरो और ग्लोबल कमर्शियल लॉन्च सर्विस मार्केट में अपनी एंट्री दर्ज कराएगा.
लॉन्च का दूसरा सेट अगले साल
स्पेस डिपार्टमेंट के अंतर्गत शुरू की गई, सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेस, NSIL (New Space India Ltd) ने लंदन में मौजूद वनवेब के साथ दो LVM 3 के जरिए LEO (Low Earth Orbit) सेटेलाइट्स के लॉन्च सर्विस का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है. हाल ही में शुरू हुए स्पेस डिपार्टमेंट के अंर्तगत इसरो के कमर्शियल लेग की तरह काम करने वाले NSIL के साथ यह पहला कमर्शियल एलवीएम3 लॉन्च होगा. इस लॉन्च का दूसरा सेट 36 सेटेलाइट्स को अगले साल शुरुआत में प्रक्षेपित किया जाएगा.
इसरो के लिए बेहद अहम है मिशन
यह मिशन एनएसआईएल और इसरो दोनों के लिए ही काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि यह पहली बार होगा, जब लॉन्च व्हीकल मार्क 3 (GSLV मार्क 3) के जरिए कोई कमर्शियल लांच किया जा रहा है. इससे पहले इसरो कमर्शियल लॉन्च के लिए पीएसएलवी का इस्तेमाल करता था. लॉन्च व्हीकल मार्क 3 इसरो का सबसे भारी भरकम 640 तो वजनी रॉकेट है, जो अपने साथ करीब 4 टन वजनी पेलोड जियो सिंक्रोनस ऑर्बिट में और 8 तो वजनी पेलोड लो अर्थ ऑर्बिट में ले जाने में सक्षम है.
लॉन्च व्हीकल तीन स्टेज का रॉकेट
यह तीन स्टेज का रॉकेट है, जिसमे दो सॉलिड मोटर स्टेप्स ऑन और एक लिक्विड प्रोपोलेंट कर स्टेज है और बीच में क्रायोजेनिक स्टेज है. इसके इसी भारी भरकम रूप के कारण इसे इसरो का बाहुबली भी कहा जाता है. जाहिर है अब तक जहां कमर्शियल लांच को पीएसएलवी के जरिए पूरा किया जाता था वहीं इस बाहुबली के कमर्शियल मार्केट में उतरने के साथ ही यह इसरो और NSIL के लिए नए प्लेटफार्म खोलेगा.
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