Milk Bank: बच्चा पैदा होने के बाद दूध आना महिलाओं के शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है. हालांकि कई बार कमजोरी या स्वास्थ्य समस्याओं के कारण कुछ महिलाओं में दूध नहीं बनता. ऐसी मांओं के बच्चों के लिए देश के कई हिस्सों में मिल्क बैंक स्थापित किए गए हैं. यहां महिलाएं आती हैं, अपना दूध दान करती हैं.


दान किया गया ये दूध ऐसे नवजातों को भी पिलाया जाता है जिनकी मां नहीं होती हैं या फिर वे अपने बच्चों को किसी स्वास्थ्य समस्या के कारण दूध नहीं पिला सकती हैं. इस मिल्क बैंक में दूध खरीदने के लिए कोई पैसा नहीं देना पड़ता है. दान किए गए इस दूध से अब तक सैंकड़ों बच्चों को नई जिंदगी मिल चुकी है.


1989 में बना था पहला मिल्क बैंक
देश का सबसे पहला मिल्क बैंक को 27 नवंबर 1989 को मुंबई के सायन अस्पताल में स्थापित किया गया था. अपनी स्थापना के तीस साल बाद यह मिल्क बैंक पश्चिमी भारत में आगामी मिल्क बैंकों का आकलन और मार्गदर्शन करने में मदद करता है.


द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक एक महिला एक बार में लगभग 50 से 300 मिलीलीटर दूध का उत्सर्जन करती है. दान किए गए दूध को पाश्चराइज किया जाता है, उसकी टेस्टिंग की जाती है, फ्रीजर में स्टोर किया जाता है और आवश्यकता के अनुसार जरूरतमंद बच्चों को पिलाया जाता है.  


दूध क्यों दान करें?
मां का दूध बच्चों को पोषण प्रदान करता है, उन्हें बढ़ने में मदद करता है और उन्हें संक्रमण और बीमारियों से बचाता है. इसके अलावा बीमार शिशुओं और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों के लिए मां का दूध और भी अधिक महत्वपूर्ण है. इससे उन्हें जीवित रहने का ज्यादा मौका मिलता है. मां की बीमारी, मौत और दूध उत्पादन में देरी की वजह से भी कमजोर शिशुओं को मां का दूध नहीं मिल पाता है. ऐसे मामलों में मिल्क बैंक में दान किया गया दूध ही काम आता है.


कौन दान कर सकता है दूध?
कोई भी स्तनपान कराने वाली महिला स्वेच्छा से अपना दूध दान करना चाहती है और वह इस पहल का हिस्सा बन सकती है. दूध दान करने के लिए मां का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए. वे महिलाएं जिनके बच्चे किसी कारण उनका दूध नहीं पी पाते हैं. अगर इनका दूध नहीं निकाला गया तो इन मांओ को स्तन में भारी दर्द होता है. ऐसी महिलाएं भी दूध दान कर सकती है.


कैसे रखा जाता है ये दूध?
दूध निकालने के बाद उसे -20 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर रखा जाता है. इसके बाद इस दूध का सैंपल लैब में भेजा जाता है. जहां इसकी जांच की जाती है. सभी रिर्पोट्स सही आने के बाद ही दूध को बच्चों को पिलाने लायक माना जाता है और अस्पतालों में भेजा जाता है. ये दूध छह महीने तक खराब नहीं होता है.


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