कोलकाता: भारत में साल का पहला सूर्य ग्रहण जारी है. दिलचस्प बात यह है कि बॉर्डर और हिमालयी इलाके में ग्रहण देखा जा सकेगा और उनके अलावा कोई भी रिंग ऑफ फायर नहीं देख पाएगा.


नासा की ओर से प्रकाशित नक्शे के अनुसार, सूर्य ग्रहण उत्तरी गोलार्ध में लोगों को दिखाई देगा. लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लोग इसे देख पाएंगे जबकि अन्य को इसे मिस करना होगा. देश के बाकी हिस्सों के लोग इस कार्यक्रम को ऑनलाइन देख सकते हैं.


कब होता है सूर्यग्रहण
ब्रह्मांडीय घटना तब होती है जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक ही रेखा में होते हैं और चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है और सूर्य के दृश्य (view) को अवरुद्ध करता है, लेकिन पूरी तरह से नहीं क्योंकि चंद्रमा एक अंडाकार कक्षा में सूर्य के चारों ओर घूमता है. चंद्रमा द्वारा यह आवरण सूर्य को एक 'अग्नि की अंगूठी' या ‘रिंग ऑफ फायर’ की छवि प्रदान करता है.


एमपी बिड़ला तारामंडल के निदेशक डी.पी. दुआरी ने पुष्टि की, "देखने में चंद्रमा द्वारा कवर किए गए सूर्य का एक छोटा अंश होगा जो कि क्षितिज पर भी बहुत कम है, जो स्थिति के आधार पर अधिकतम 3-4 मिनट तक चलेगा."


भारत में सूर्य ग्रहण केवल लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के लोगों को दिखाई देगा. यह यहां दोपहर 1:42 बजे शुरू हो चुका है और शाम 6:41 बजे समाप्त होगा. पीक टाइम शाम लगभग 4:16 बजे आएगा जब सूर्य और चंद्रमा दोनों वृष राशि में बिल्कुल 25 डिग्री पर युति करेंगे.


नासा के अनुसार, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ हिस्सों, उत्तरी अलास्का, कनाडा और कैरिबियन, यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों में 10 जून को आंशिक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा. वार्षिक सूर्य ग्रहण लगभग दोपहर 1.42 बजे शुरू होकर और शाम 6:41 बजे तक चलेगा.


कैसे देखें?
ग्रहण को नग्न आंखों से देखना उचित नहीं है क्योंकि इससे आंखों को गंभीर नुकसान हो सकता है. एक बॉक्स प्रोजेक्टर के माध्यम से सूर्य को प्रक्षेपित करना, दूरबीन का उपयोग करके प्रक्षेपित करना सूर्य ग्रहण को देखने का एक सुरक्षित और आसान तरीका है.


इस साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण 4 दिसंबर को लगेगा. यह पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा जो सुबह 10:59 बजे शुरू होगा और दोपहर 03:07 बजे समाप्त होगा.


सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं - पूर्ण, आंशिक और कुंडलाकार . एक कुंडलाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य के केंद्र को कवर करता है, जिससे सूर्य के बाहरी किनारों को छोड़कर चंद्रमा के चारों ओर "रिंग ऑफ फायर" या वलयाकार बन जाता है.