संक्रमित व्यक्तियों के संपर्क में आए लोगों का देरी से पता चलने के कारण मामलों में उतार-चढ़ाव- विशेषज्ञ
अधिकारियों के अनुसार दिल्ली में बुधवार को कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की कुल संख्या 1578 पहुंच गयी जिनमें 17 मामले नये थे.
नई दिल्ली: दिल्ली में 13 अप्रैल को कोविड-19 के सर्वाधिक मामले आए और यह संख्या 365 थी, वहीं इसके दो दिन बाद ही राजधानी में कोरोना वायरस संक्रमण के अब तक के सबसे कम मामले सामने आए. विशेषज्ञ 'आंकड़ों में इस उतार-चढ़ाव' के लिए संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों का पता चलने की रफ्तार समेत अनेक कारकों को जिम्मेदार ठहराते हैं.
अधिकारियों के अनुसार दिल्ली में बुधवार को कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की कुल संख्या 1578 पहुंच गयी जिनमें 17 मामले नये थे. इसी तरह एक दिन में मौत के दो मामलों के साथ बुधवार को राजधानी में कोविड-19 से मरने वालों की कुल संख्या 32 हो गयी.
कुल मामलों में 1,080 मामले ऐसे हैं जिन्हें विशेष अभियानों के माध्यम से अस्पतालों तक लाया गया. सरकार के अधिकारियों ने पिछले महीने निजामुद्दीन इलाके में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों को पृथक रखने के लिए अभियान चलाया था.
गत 10 अप्रैल को दिल्ली में संक्रमण के 183 नये मामले सामने आए जिनमें 154 निजामुद्दीन मरकज से जुड़े थे. इसके बाद 11 अप्रैल को 166, 12 अप्रैल को 85, 13 अप्रैल को 356, 14 अप्रैल को 51 और 15 अप्रैल को 17 नये मामले आए.
फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग के फेफड़ा रोग विभाग के निदेशक विकास मौर्या के अनुसार, ''अगर आप शुरुआती बढ़ोतरी देखें तो स्पष्ट है कि अधिकतर मामले निजामुद्दीन में धार्मिक कार्यक्रम के बाद वहां से आए और उन लोगों का पता लगाने में समय लगता है जो बीमारी के संपर्क में आए होंगे. तो वो मामले बाद में जांच के नतीजे आने के बाद सामने आते हैं, जिसमें 4 से 5 दिन लगते हैं.''
उन्होंने कहा कि ऐसे भी लोग थे जो विदेशों से आए और उन्होंने अपने परिवार वालों समेत अन्य लोगों को संक्रमित कर दिया था तथा अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं दी. ऐसे लोगों का भी देर से पता चलता है जिसकी वजह से मामलों की संख्या में उतार-चढ़ाव आता है.
मौर्या ने दावा किया, ''लेकिन मामलों की संख्या में उतार-चढ़ाव में एक अच्छी बात यह नजर आती है कि दिल्ली में संक्रमण सामुदायिक स्तर पर नहीं फैला है. अन्यथा नये मामलों में लगातार इजाफा ही होता.''
भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए दो तरह की जांच की सलाह दी गयी है. इनमें आरटी-पीसीआर और रैपिड एंटीबॉडीज जांच हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक फिलहाल आरटी-पीसीआर जांच का इस्तेमाल किया जा रहा है, वहीं रैपिड एंटीबॉडीज जांच की किट अभी विदेशों से नहीं आई हैं.
एक जानेमाने निजी अस्पताल के विशेषज्ञ ने नाम जाहिर नहीं करने का अनुरोध करते हुए कहा, ''अगर रैपिड एंटीबॉडीज जांच शुरू हो जाती है तो हमारी स्क्रीनिंग की प्रक्रिया तेज हो जाएगी तथा कम समयावधि में अधिक मामलों का पता चल सकेगा.''
बाद वाले टेस्ट में कम समय लगता है और 20 से 30 मिनट में परिणाम आ जाता है. लेकिन जब तक भारत में इसके किट नहीं आते तब तक अति प्रभावित क्षेत्रों में आरटी-पीसीआर जांच की जा रही हैं जिनके नतीजे बाद में आते हैं और मामलों में उतार-चढ़ाव आता है.
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