Supreme Court on Forced Conversions: सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण मामले को लेकर सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने धर्मांतरण पर सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंचों के सामने अलग-अलग याचिकाएं दायर करने पर आलोचनात्मक टिप्पणी की. साथ ही विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को एक साथ लाने और ट्रांसफर करने के लिए याचिका दायर करने की सलाह दी ताकि सभी मामलों की एक साथ सुनवाई की जा सके. 


धर्मांतरण विरोधी कानून के खिलाफ याचिकाएं इलाहाबाद, कर्नाटक, उत्तराखंड, गुजरात और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दायर की गई हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को एक ट्रांसफर याचिका दायर करने को कहा और दो सप्ताह के बाद सुनवाई तय की. कोर्ट पांच राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. 


अलग-अलग याचिकाएं दायर करने पर फटकार 


सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय के एक ही मुद्दे यानी धर्मांतरण पर सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंचों के सामने अलग-अलग याचिकाएं दायर करने पर भी फटकार लगाई. तमिलनाडु राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन ने बेंच को बताया कि याचिकाकर्ता ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट से इसी तरह की याचिका वापस ले ली थी, जिसके बाद जस्टिस आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था. इसी तरह उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में इसी तरह की याचिकाएं दायर की हैं और वापस ले ली हैं. 


सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा


कोर्ट ने कहा कि कोई भी नई याचिकाओं को वापस लेना और दाखिल करना जारी नहीं रख सकता. पिछले हफ्ते, जनहित याचिका का नाम बदलकर "इन रे: इश्यू ऑफ रिलिजियस कन्वर्जन" कर दिया गया था और इसे विभिन्न राज्यों की तरफ से बनाए गए धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच के साथ मिलाया गया था. CJI ने कहा कि जनहित याचिका की स्थिरता के संबंध में उठाई गई आपत्ति पर उचित स्तर पर विचार किया जाएगा. अलग-अलग याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर एडवोकेट सीयू सिंह, संजय हेगड़े, इंदिरा जयसिंह और वृंदा ग्रोवर सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे. 


ये भी पढ़ें: 


रिमोट वोटिंग मशीन के प्रोटोटाइप का डेमो रुका, विपक्ष ने कहा- हैक हो सकती है मशीन