'दुष्कर्म के बाद पीड़िता को बच्चा पैदा करने के लिए मजबूर करना संवैधानिक दर्शन के खिलाफ', बोला सुप्रीम कोर्ट
दुष्कर्म की पीड़िता को अबॉर्शन की इजाजत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के बाद प्रेग्नेंसी खुशी की बात होती है, लेकिन शादी के बिना यह खतरनाक होती है. खासतौर से शारीरिक दुष्कर्म के मामले में.
दुष्कर्म की एक पीड़िता को अबॉर्शन की अनुमति देते हुए सोमवार (21 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में महिला पर बच्चा पैदा करने के लिए दबाव बनाना संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है. कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में प्रेग्नेंसी खतरनाक होगी और इसका पीड़िता की मानसिक एवं शारीरिक स्थिति पर भी प्रभाव पड़ेगा. कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी.
यह आदिवासी महिला गुजरात के ग्रामीण इलाके से है और 27 हफ्ते 3 दिन की गर्भवती है. गुजरात हाईकोर्ट ने एडवांस प्रेग्नेंसी के आधार पर अबॉर्शन के लिए मना कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने नई मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर गर्भपात की इजाजत दी है. रिपोर्ट में कहा गया कि सुरक्षित गर्भपात संभव है.
कोर्ट ने कहा, बच्चा पैदा करने का दवाब बनाना पीड़िता के लिए ट्रोमा होगा
जस्टिस उज्जवल भुईयां और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि दुष्कर्म की पीड़िता को प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए फोर्स करना संवैधानिक दर्शन के खिलाफ है. जस्टिस भुईंया ने कहा कि दुष्कर्म जैसी घटनाएं पीड़िता को मानसिक आघात देती हैं, उस पर उससे प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए कहना एक और ट्रोमा होगा. याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने भी कहा कि पीड़िता भी प्रेग्नेंसी जारी रखने के लिए सहमत नहीं है.
और क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?
कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर अबॉर्शन के दौरान भ्रूण जीवित मिलता है तो उसको इन्कूबेटर उपलब्ध करवाना और कानून के मुताबिक बच्चे को गोद देने की जिम्मेदारी गुजरात सरकार की होगी. कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में शादी के बाद प्रेग्नेंसी पति-पत्नी और परिवार के लिए जश्न जैसा होता है, लेकिन शादी के बिना प्रेग्नेंसी के ज्यादातर मामले खतरनाक होते हैं. खासतौर से शारीरिक दुष्कर्म की स्थिति में.
गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर जताई नाराजगी
19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल पीड़िता की याचिका पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता ने संविधान के आर्टिकल 226 और 227 के साथ कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर, 1973 के सेक्शन 482 और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के तहत गुजरात हाईकोर्ट का रुख कर गर्भपात की अनमुति की मांग की थी. हाईकोर्ट के आदेश पर गठित बोर्ड ने 10 अगस्त को हाईकोर्ट के जस्टिस समीर जे दवे की सिंगल बेंच को रिपोर्ट सौंपी और सुनवाई 23 अगस्त के लिए टाल दी गई. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिन बाद सुनवाई के हाई कोर्ट के फैसले की आलोचना की. कोर्ट ने कहा कि 23 अगस्त तक के लिए सुनवाई कैसे टाली जा सकती है, तब तक कितना कीमती समय बर्बाद हो जाएगा.