गुजरात में बीजेपी प्रचंड जीत की ओर बढ़ रही है. सवाल ये है कि क्या ये राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है. इन राज्यों में सभी पार्टियां 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस रही हैं. लेकिन दक्षिणी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.
इस राज्य में भी गुजरात की तरह ही कांग्रेस को सत्ता पर काबिज बीजेपी से लड़ना है. अक्सर देखा गया है कि उत्तर भारत के चुनावी नतीजे कर्नाटक पर भी असर डालते हैं, क्योंकि यहां पर बड़ी तादाद में हिंदी प्रदेश के लोग बसे हुए हैं और उनका वोट कई सीटों पर भी प्रभाव डालता है.
हालांकि कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी यहां इस असली सच को छुपाकर दिखावे के लिए बड़ी बातें बना रहे हैं. गुजरात चुनाव के ‘एग्जिट पोल’ पर कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने पत्रकारों से कहा, "गुजरात के नतीजों का कर्नाटक के चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि दोनों राज्यों में मुद्दे, भावनाएं और राजनीतिक कारक पूरी तरह से अलग हैं.' उन्होंने कहा, 2012 में गुजरात में बीजेपी की जीत का 2013 के कर्नाटक चुनाव पर असर नहीं पड़ा यही ट्रेंड जारी रहेगा."
वहीं कर्नाटक कांग्रेस के नेता 6 दिसंबर को गुजरात के नतीजों के पार्टी पर पड़ने वाले असर पर विचार करने के लिए जमा हुए थे. कांग्रेस नेताओं को आशंका है कि गुजरात में बीजेपी की जीत कर्नाटक में उनकी योजनाओं पर पानी फेर सकती है.
सीएम का दावा गुजरात का पड़ेगा असर
वहीं कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया के जवाब में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा, 'गुजरात और हिमाचल प्रदेश में सत्ता समर्थक जनादेश होगा क्योंकि लोग प्रधानमंत्री मोदी के सुशासन के सिद्धांतों का लगातार समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "इसका कर्नाटक चुनाव पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा. हम निश्चित तौर पर अगले साल कर्नाटक में लौटेंगे.”
गौरतलब है कि बीजेपी ने कर्नाटक में कभी भी बहुमत हासिल नहीं किया है, लेकिन बीजेपी नेता गुजरात में अच्छे प्रदर्शन को आधार बनाकर कर्नाटक में जीत हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं. पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से इस सूबे में दौरों को प्राथमिकता दी.
1 अप्रैल को अमित शाह इस सूबे के दौरे पर पहुंचे थे. तब उन्होंने सूबे के विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए 150 सीटों का लक्ष्य तय किया था. इसके दौरे के ठीक 1 महीने बाद केंद्रीय मंत्री अमित शाह मई में दोबारा बेंगलुरु गए थे. तो वहीं एक महीने पहले नवंबर में पीएम मोदी भी केम्पेगौड़ा की 108 फीट की कांस्य प्रतिमा के अनावरण और वंदे भारत ट्रेन को झंडी दिखाने के लिए बेंगलुरु पहुंचे थे.
आंतरिक कलह से परेशान कांग्रेस
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, 'कर्नाटक में कांग्रेस सहज तौर पर फायदे में है, लेकिन जब तक हम आंतरिक कलह का समाधान नहीं करते और सही उम्मीदवारों का चुनाव पक्का नहीं करते, यह हमारे लिए एक मौके से चूक जाने जैसा होगा." दूसरी तरफ इस दक्षिणी राज्य में जेडी (एस) का दोबारा से उठ खड़ा होना भी कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए चिंता की वजह है.
इसका नतीजा इस राज्य में त्रिशंकु विधानसभा के तौर पर सामने आ सकता है. वहीं आम आदमी पार्टी (आप) का उदय खास तौर पर कांग्रेस के लिए सिरदर्द होगा. आप को गुजरात में 15 फीसदी के आसपास वोट शेयर मिलने का अनुमान है और कर्नाटक में इसी तरह का रुझान कांग्रेस के वोटों को नुकसान पहुंचा सकता है.
आप भी है तैयारी में
आम आदमी पार्टी कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के लिए एक बड़ा एजेंडा तैयार कर रही है. यहां उसने सभी 224 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार खड़े करने का फैसला लिया है. जीत पाने के लिए उसने भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडा रखा है. 'आप' के जनवरी 2023 के पहले हफ्ते तक उम्मीदवारों पहली लिस्ट जारी करने की संभावना है.
2018 में बहुमत न होने पर भी बनाई सरकार
कर्नाटक विधानसभा चुनाव मई 2018 में 224 विधानसभा सीटों में से 222 सीटों के लिए ही मतदान हुआ था. तब सत्ताधारी कांग्रेस, बीजेपी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की जेडी (एस) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन बहुमत में पीछे रह गई थी.
उसकी बहुमत के आंकड़े से 9 सीटें कम थीं. कांग्रेस 78 सीट और जेडी(एस) को 37 सीट मिली थी. इन चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा का जनमत मिलने के बाद बीजेपी को सरकार बनाने से रोकने के मकसद से कांग्रेस और जेडी(एस) . दोनों ने तुरंत गठबंधन कर लिया था.
कांग्रेस ने एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार कर लिया था. इसके बावजूद राज्यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी को सबसे बड़ा दल होने के नाते सरकार बनाने के लिए बुलाया और पार्टी को बहुमत साबित करने के लिये 15 दिन का वक्त दिया. इसके बाद बहुमत साबित कर बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा ने 17 मई 2018 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.