विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत में कैंपस खोलने का फैसला कितना सही और इसका क्या फायदा?
विदेशों में पढ़ाई की तमन्ना है, लेकिन जा नहीं सकते तो अब निराश होने की जरूरत नहीं है. देश में ही विदेशों की यूनिवर्सिटी में पढ़ पाएंगे. इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने मसौदा जारी कर दिया है.
देश में जल्द ही विदेशी यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थान अपने कैंपस खोल सकेंगे. इससे ऐसे स्टूडेंट्स को खासा फायदा होगा जो पैसे की कमी की वजह से विदेश जाकर पढ़ने का सपना पूरा नहीं कर पाते हैं. इतना ही नहीं भारत में कैंपस खोलने वाले ये विदेशी शिक्षण संस्थान टॉप क्लास के होंगे यानी दुनिया में मशहूर होंगे.
इसे अमलीजामा पहनाने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग- यूजीसी (UGC) ने मसौदा नियम जारी कर दिए हैं. इस पर लोगों का फीडबैक और सुझावों के लिए इसे यूजीसी की वेबसाइट पर डाला गया है. जहां यूजीसी की इस पहल से देश में विदेशी कैंपस के संचालन का रास्ता साफ होता दिख रहा है. वहीं दूसरी तरफ इस पर शिक्षा विशेषज्ञ सवाल भी उठा रहे हैं.
क्या है यूजीसी का मकसद
देश में विदेशी यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थानों के कैंपस खोलने और उनके संचालन के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने मसौदा नियमों (Draft Regulations) का ऐलान किया है. यूजीसी ने इस पर स्टेकहोर्ल्डस से फीड बैक भी मांगा है. यूजीसी के सार्वजनिक किए गए मसौदा नियमों के मुताबिक विदेशी विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों को जल्द ही भारत में परिसर खोलने की मंजूरी दी जा सकती है.
इन मसौदा नियमों को लेकर डीडी न्यूज से बातचीत में यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार ने कहा कि इससे भारतीय छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्तापरक शिक्षा देश में ही मिल सकेगी. उनके मुताबिक ये कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत उठाया गया है. इस नीति में भारत के उच्च शिक्षा सिस्टम को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले जाने का नजरिया शामिल है.
यूजीसी चेयरमैन ने कहा कि यूरोप के कुछ देशों ने भारत में अपने कैंपस स्थापित करने में खासी दिलचस्पी ली है. उन्होंने कहा कि आगे एक साल और 6 महीने में बहुत से अन्य देशों से भी जुड़ा जाएगा और उनके कैंपस देश में खोलने की कोशिश की जाएगी.
उनका कहना है कि विदेशों में शिक्षा लेने में ट्यूशन फीस और रहने का खर्चा काफी अधिक होता है और विदेशों में शिक्षा की चाह रखने वाले हर किसी के पास देश में इतने संसाधन नहीं होते हैं. भारत में विदेशी कैंपस खुल जाने से रहने का खर्चा यानी लिविंग एक्सपेंसेज में काफी हद तक कमी आएगी.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन ने एक सर्वे किया जिसमें पता चला कि 8 विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अंतरराष्ट्रीय कैंपस खोलने में दिलचस्पी रखते हैं. यूके, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा से एक-एक और संयुक्त राज्य अमेरिका से पांच हैं.
मसौदे में क्या है?
यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार के मुताबिक ग्लोबल रैंकिंग में ओवरऑल टॉप 500 में आने वाली यूनिवर्सिटी के साथ ही विदेशों के ऐसे शिक्षण संस्थान जो वहां जाने-माने हैं उन्हें भारत में उन्हें कैंपस खोलने की मंजूरी मिलेगी. इस तरह की विदेशी यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थान भारत में अपना कैंपस खोलने और चलाने के लिए यूजीसी को आवेदन कर पाएंगे.
यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर कुमार ने कहा, "आयोग भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के कैंपस खोलने और संचालन से संबंधित मामलों की जांच के लिए एक स्थायी समिति बनाएगा"
उन्होंने कहा, "ये पैनल योग्यता के आधार पर हर आवेदन का मूल्यांकन करेगा, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों की विश्वसनीयता, पेश किए जाने वाले कार्यक्रम, भारत में शैक्षिक अवसरों को मजबूत करने की उनकी काबिलियत और प्रस्तावित शैक्षणिक बुनियादी ढांचा शामिल है."
ये पैनल ये भी पुख्ता करेगा कि भारतीय कैंपस में पढ़ाने के लिए नियुक्त विदेशी फैकल्टी एक वाजिब वक्त तक भारत के कैंपस में ही रहें.. विदेशी विश्वविद्यालयों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके भारतीय कैंपस में दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता उनके देश के मेन कैंपस के बराबर ही हो.
यूजीसी की तरफ से इस तरह के विदेशी कैंपस को खुद की प्रवेश प्रक्रिया के साथ ही विदेशी और भारतीय छात्रों को प्रवेश देने के खुद के नियम तय करने का हक होगा यानी इसके लिए उन्हें स्वायत्तता दी जाएगी, इस तरह के विदेशी कैंपस को भारत के शिक्षण संस्थानों की तरह फीस को लेकर किसी तरह की हद नहीं तय की जाएगी.
इन्हें फीस स्ट्रक्चर तय करने का भी हक होगा बशर्ते की ये तर्कसंगत और जायज हो. इसके साथ विदेशों और भारत से फैकल्टी और स्टाफ की भर्ती करने का भी पूरा हक होगा. इन संस्थानों को क्रॉस बॉर्डर फंड की भी मंजूरी दी गई है. इस तरह से इन्हें वित्तीय स्वायत्तता भी दी जाएगी. ये जो ट्यूशन फीस आदि के जरिए रेवेन्यू जेनरेट करेंगे उसे उन्हें स्वदेश भेजने की सुविधा भी दी जाएगी.
मसौदा नियमों में कहा गया है कि विदेशी उच्च शिक्षा संस्थान (एफएचईआई) मूल संस्था के प्रतिनिधि कार्यालय के तौर पर काम करने अपने मूल देश में या भारत के बाहर किसी अन्य देश में अपने कार्यक्रमों का प्रचार नहीं कर सकते हैं.
मसौदे में एफएचईआई को एक योजना बनाने को भी कहा गया है, जिसमें पाठ्यक्रम या कार्यक्रम में रुकावट आने या बंद होने या कैंपस के बंद होने के हालातों में प्रभावित छात्रों के हितों की रक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करना और पाठ्यक्रम का दोबारा आवंटित किया जाना भी शामिल है.
इसके अलावा सालाना अपना आकलन (Assessment) किसी स्वतंत्र एजेंसी से करवाकर इसकी की एक रिपोर्ट यूजीसी को देनी होगी.
विदेशी शिक्षण संस्थानों को कैंपस शुरू करने की मंजूरी मिलने के दो साल के अंदर भारत में कैंपस खोलना होगा. पहले 10 साल के लिए कैंपस खोलने की मंजूरी दी जाएगी और 9वें साल में कुछ शर्तों पर पूरा इत्मिनान होने के बाद इसे रिन्यू किया जाएगा.
यूजीसी के चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार ने कहा कि भारत में कैंपस खोलने वाले विदेशी विश्वविद्यालय केवल ऑफ़लाइन मोड में फुल टाइम कोर्स कराने की ही पेशकश कर सकते हैं ऑनलाइन या डिस्टेंस लर्निंग के जरिए कोर्स कराने की मंजूरी नहीं दी जाएगी.
हालांकि इन विदेशी यूनिवर्सिटी और कॉलेजों को स्टडी के लिए किसी भी ऐसे स्टडी प्रोग्राम को चलाने की मंजूरी नहीं दी जाएगी जो भारत के राष्ट्रीय हितों और भारत की उच्च शिक्षा के मानकों के लिए जोखिम पैदा करते हों.
इसका मतलब है कि विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों का संचालन भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्तों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता में खलल न डालता हो. हालांकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आखिरी मसौदे को कानून बनने से पहले मंजूरी के लिए संसद में पेश किया जाएगा.
विदेशी शिक्षा देने की कवायद
ये भी माना जा रहा है कि इस कदम के पीछे भारत सरकार का देश को ग्लोबल एजुकेशन का ठिकाना बनाना और विदेशी मुद्रा के नुकसान रोकने का मकसद है. अतीत में भी भारत में विदेशी यूनिवर्सिटी के कैंपस को लाने की कवायद की जा चुकी हैं, लेकिन इस पर एक राय न बन पाने की वजह से ये अमल में नहीं लाया जा सका है.
साल 2010 में यूपी-2 सरकार ने सांसदों के विरोध के बीच लोकसभा में देश में विदेशी शिक्षा संस्थानों के प्रवेश की राह बनाने वाला विधेयक पेश किया. तब तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने विदेशी शिक्षण संस्थान (नियमन और प्रवेश) विधेयक 2010 पेश किया था.
उस वक्त बीजेपी सहित समाजवादी पार्टी और लेफ्ट ने कई वजहों से इसका खासा विरोध किया था. इस वजह से ये बिल संसद में पास नहीं हो पाया था. तब ये भी कहा गया था कि इस तरह के विदेशी कैंपस भारत में खोलने से भारतीय आचार-विचार पर पश्चिम का प्रभाव पड़ेगा.
क्या है विदेशी शिक्षण संस्थानों की राय
यूजीसी के इस मसौदे को लेकर विदेशी शिक्षण संस्थानों का रुख सकारात्मक है. द हिंदू अखबार ने डेकिन यूनिवर्सिटी की साउथ एशिया सीईओ और ग्लोबल एलायंसेज की वाइस प्रेजिडेंट रवनीत पावा के हवाले से लिखा है कि अभी ये शुरुआती दिन हैं, लेकिन यूजीसी का ये एक अच्छा कदम है.
यूजीसी ने देश में कैंपस खोलने वाली विदेशी यूनिवर्सिटी और शिक्षण संस्थानों को फीस, एडमिशन क्राइटेरिया और भारतीयों को हायर करने में किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है. यूजीसी ने इसमें पूरी तरह से स्वायत्तता दी गई है. इसके साथ ही क्रॉस बॉर्डर सरप्लस फंड को भी मंजूरी दी है. ये सभी ऐसे प्रावधान है जो भारत में विदेशी शिक्षण संस्थानों को खोलने की राह आसान बनाते हैं.
इसके साथ ही वो कहती हैं कि सवाल यहां आकर खड़ा होता है कि यदि विदेशी संस्थान अपने कैंपस में खास कोर्स के लिए विदेशी फैकल्टी हायर करना चाहेंगे तो हम उन्हें कहां से लेकर आएंगे? दूसरा भारत का मकसद वैश्विक तौर पर उच्च शिक्षा का केंद्र बनने का है, लेकिन इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए देश में बुनियादी ढांचा कहां तक विकसित है.
इसके साथ ही जो भारतीय विदेशों में रहने की तमन्ना लिए वहां स्टडी के लिए जाते हैं उनका वहां जाना जारी रहेगा. ऐसे में हमें ऐसे लोगों पर फोकस करना होगा जो देश में रहकर विदेशी शिक्षा अपने बजट के अंदर यानी कम कीमतों पर हासिल करना चाहते हैं. इसके लिए जरूरी होगा कि उनकी भुगतान की क्षमता को ध्यान में रखते हुए उन्हें विदेशी कैंपस में पढ़ने की सुविधा मुहैया कराई जाए.
क्या कहता है एनपीए?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीए) की बात करें तो इसमें विधायी ढांचे के जरिए दुनिया की 100 ग्लोबल यूनिवर्सिटी को देश में शिक्षा मुहैया कराने की सुविधा देने की बात कही गई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार वैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे रेगुलेशन के जरिए देश में विदेशी कैंपस खोलने का कदम उठाने जा रही है.
देश में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना और संचालन के लिए यूजीसी के मसौदा नियमों के बारे में शिक्षाविदों और व्यावसायिक पेशेवरों की राय कुछ अलग है. कुछ का दावा है कि यूजीसी के मसौदा नियमों में एनपीए को नहीं अपनाया गया है और ऐसे विदेशी संस्थान भारतीय शिक्षा प्रणाली के सामने आने वाले खास मुद्दों को संभालने के काबिल नहीं होंगे.
इंडिया टुडे ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आभा देव हबीब के हवाले से लिखा है कि जिस पैनल को एनईपी-2020 ने ध्वस्त करना है, वो कैसे मानक बना रहा है?
प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा, "यह केवल दुर्भाग्यपूर्ण है कि यूजीसी, जिसे भंग किया जा रहा है, सभी सुधार कर रहा है. यह तथ्य कि सरकार के पास संसद में इन पर विधेयकों के तौर पर चर्चा करने की इच्छाशक्ति नहीं है, यही कारण है कि सरकार उन्हें यूजीसी के जरिए से पेश करवा रही है."
उन्होंने कहा, "यूपीए ने विदेशी विश्वविद्यालय विधेयक (Foreign Universities Bill) लाने की कोशिश की थी, लेकिन राज्यसभा की स्थायी समिति ने 2012-13 के आसपास इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था और उस वक्त बीजेपी और वाम दलों ने इसका विरोध किया था. लेकिन बीजेपी अब खुद ऐसा कर रही है."
योजना आयोग में पूर्व शिक्षा सलाहकार फुकरान क़मर के मुताबिक,"मसौदा नियम एनईपी मज़मून पर नहीं चलते हैं,बल्कि इसे एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करते हैं." वह बताते हैं कि जहां एनईपी एक विधायी ढांचा बनाने की बात करती है,वहीं सरकार नियामक मार्ग का अनुसरण कर रही है.
जहां एनईपी टॉप 100 विदेशी विश्वविद्यालयों को आकर्षित करने का प्रस्ताव करता है, जबकि यूजीसी का मसौदा टॉप 500 वैश्विक रैंकिंग वाले विश्वविद्यालयों को मंजूरी देता है. सरकार का भारत को वैश्विक शिक्षा के ठिकाने के तौर पर बढ़ावा देने का मकसद साफ तौर पर विदेशी मुद्रा के नुकसान को बचाना है.
आरबीआई के मुताबिक 2022 में लगभग 13 लाख छात्र विदेश में पढ़ रहे थे. वित्त वर्ष 2021-2022 में छात्रों के विदेश जाने की वजह से 25 अरब विदेशी मुद्रा का नुकसान हुआ.