Madras High Court: 'विदेशी नागरिक भी घरेलू हिंसा के मामले में कोर्ट जा सकते हैं'- चेन्नई हाईकोर्ट
न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने कहा चूंकि यह शादी चेन्नई में हुई है और इसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत रजिस्टर किया गया है इसलिए वह याची को कानूनी सुरक्षा देगी.
Madras High Court: मद्रास हाईकोर्ट ने भारत में अस्थाई रुप से रह रहे लोगों को बड़ी राहत दी . अपने एक अहम फैसले में उन्होंने कहा कि भारत में अस्थाई रूप से रह रहे किसी भी नागरिक पर भारत के नियम और न्यायपालिका के फैसले लागू होंगे. अदालत ने यह टिप्पणी घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान की.
मद्रास हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने एक अमेरिकी दंपत्ति के घरेलू हिंसा के मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि गैर-भारतीय निवासी भी अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत न्याय की याचना कर सकते हैं, इस पर यह नियम लागू नहीं होगा कि याचक भारत का नागरिक है या नहीं.
क्या है पूरा मामला?
चेन्नई में एक अमेरिकी नागरिक ने अपनी पत्नी के अदालत में दायर किए गए घरेलू हिंसा की शिकायत के मामले को रद्द करने की मांग की थी. अपनी याचिका पर उसने तर्क दिया था कि उसने यूएस में फरीफैक्स काउंटी में सर्किट कोर्ट से तलाक के साथ-साथ अपने किशोर जुड़वा बच्चों की कस्टडी की एकतरफा डिक्री हासिल की हुई है, इसलिए उसके खिलाफ मामले को नहीं सुना जा सकता है.
क्या बोली अदालत?
याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने कहा कि भारतीय अदालतें इस मामले में स्वतंत्र विचार करना सिर्फ इसलिए बंद नहीं कर सकतीं क्योंकि एक विदेशी अदालत ने इस मामले पर अलग फैसला दिया है.
अदालत ने कहा, चूंकि यह शादी चेन्नई में हुई है और इसे हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के तहत रजिस्टर किया गया है इसलिए वह इस मामले में पूर्व याची को सुरक्षा देगी. उन्होंने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 27 के तहत उन लोगों को सुरक्षा दी जाती है जो भारत के अस्थायी निवासी हैं.
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 21 इस सुरक्षा को एक व्यक्ति तक भी विस्तारित करता है, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति देश का नागरिक नहीं हो सकता लेकिन न्यायिक सुरक्षा पाने का अधिकार रखता है. अदालत ने आगे कहा कि इस नजरिए से देखने पर जो पीड़ित है वह भी घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत सुरक्षा का हकदार है.
'न्यायिक चेतना नहीं देती है इजाजत'
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों से पता चलता है कि मां के साथ-साथ बेटे भी चेन्नई लौट आए हैं और उनको पिता के साथ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है, उन्होंने कहा कि उन बच्चों को जबरन यूएस वापस नहीं भेजा जा सकता है.
न्यायमूर्ति ने कहा कि व्यावहारिक रूप से अगर वह बच्चे यूएस जाने के बाद ,किसी भी वजह से सड़क पर हुए तो इस न्यायालय की चेतना इस तरह के फैसले लेने की इजाजत नहीं देती है, क्योंकि भारत के संविधान के मुताबिक याचक को प्रोटेक्ट किया जाना चाहिए.
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