नई दिल्ली: जाने-माने वकील और कानून वेद सोली सोराबजी का आज निधन हो गया. कोविड संक्रमण और उम्र से जुड़ी जटिलताओं के चलते आज सुबह उन्होंने दुनिया को विदा कह दिया. देश के सबसे सम्मानित संविधान विशेषज्ञों में से एक सोराबजी 91 साल के थे. वह 2 बार भारत के एटॉर्नी जनरल रहे. 2002 में उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम् विभूषण भी मिला था.


2 बार एटॉर्नी जनरल रहे
1930 में मुंबई के एक पारसी परिवार में जन्मे सोली ने 1953 में वकालत शुरू की. 1971 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें वरिष्ठ वकील का दर्जा दिया. आंतरिक आपातकाल के बाद बनी जनता सरकार के दौरान यानी 1977 से 1980 के बीच वह देश के सॉलिसीटर जनरल रहे. 1989 से 1991 तक (वी पी सिंह और चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री रहते) वह भारत के एटॉर्नी जनरल रहे. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधनमंत्रित्व में 1998 से 2004 के बीच भी वह एटॉर्नी जनरल रहे..


कोर्ट में बेहद सम्मानित
उम्र से जुड़ी शारीरिक कमजोरी के चलते सोली सोराबजी पहले की तरह सक्रिय नहीं थे. लेकिन 70 के दशक से लेकर 40 साल से भी ज़्यादा का एक दौर ऐसा रहा है, जहां शायद ही कोई बड़ा संवैधानिक केस बिना उनकी भूमिका के सुना गया हो. 1973 का केशवानंद भारती केस (जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संविधान के मौलिक ढांचे को प्रभावित करने वाला कोई कानून संसद नहीं बना सकती), 1976 का मेनका गांधी केस (जिसमें सम्मान से जीने को जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना गया) उस दौर के शुरुआती मुकदमे हैं, जब बतौर कानूनविद सोराबजी का नाम उभरना शुरू हुआ था. उन्होंने अपनी विद्वता और तर्क शक्ति से अपनी वह हैसियत बनाई कि अगर वह कोर्ट में मौजूद हों, तो किसी जटिल संवैधानिक प्रश्न पर जज सबसे पहले उन्हें ही सुनना चाहते थे.


पाकिस्तान को चटाई थी धूल
सरकार के पास बहुमत न होने के आशंका होने पर सदन में फ्लोर टेस्ट को अनिवार्य बनाने वाला 1994 का एस आर बोम्मई केस भी उनके चर्चित मुकदमों में से एक रहा है. 1999 के कारगिल युद्ध के एक महीना बाद भारतीय वायुसेना ने कच्छ के रण इलाके में पाकिस्तान के एक गश्ती विमान ‘अटलांटिक’ को मार गिराया. पाकिस्तान इस मामले को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट पहुंचा. वहां बतौर एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने भारत का पक्ष रखा. उनकी दलीलों ने पाकिस्तान के केस की धज्जियां उड़ा दीं. अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट ने बिना कोई आदेश दिए मामला बंद कर दिया.


नागरिक अधिकारों के योद्धा
सोली सोराबजी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के सबसे बड़े योद्धाओं में से एक रहे. उन्होंने कई केस बिना फीस लिए लड़े. 1984 के सिख विरोधी दंगा के पीड़ितों को कानूनी मदद पहुंचाने में भी उन्होंने भूमिका निभाई. उनके निधन पर राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के जजों और वरिष्ठ वकीलों ने शोक जताया है. राष्ट्रपति ने कहा है, "सोराबजी उन लोगों में से थे जिनकी भारत के संवैधानिक कानूनों के विस्तार में प्रमुख भूमिका रही है." चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा है, "वह 7 दशक तक लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में न्यायपालिका को मजबूती देते रहे. उन्होंने हमेशा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की लड़ाई लड़ी."


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