Anand Mohan Released: पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन (Anand Mohan) को गुरुवार (27 अप्रैल) की सुबह सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया. अब बिहार सरकार को जेल नियमावली में बदलाव करने और गैंगस्टर से राजनेता बने आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता साफ करने के लिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. चलिए आपको बताते हैं वो कौन सा नियम था जिसमें बदलाव किया गया. 


दरअसल, गैंगस्टर से नेता बने मोहन की रिहाई 'जेल सजा छूट आदेश' के तहत हुई है. हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था. इस बदलाव के बाद मोहन समेत 27 दोषियों की समय से पहले रिहाई का रास्ता साफ हो गया. नीतीश कुमार नीत बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था. 


बदले गए नियम में क्या कहा गया था 


इस संशोधन में उस प्रोविजन को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि 'ड्यूटी पर कार्यरत लोकसेवक की हत्या' के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती. बिहार सरकार के इस फैसले के बाद काफी विवाद भी खड़ा हो गया है. आलोचना करने वाले नेताओं का कहना है कि कानून में बदलाव केवल आनंद मोहन की मदद करने के लिए किया गया. 


कहां उलझ रहा था मामला 


अब सवाल ये उठता है कि आखिर ऐसा कौन सा कानून था जिसकी वजह से रिहाई का मामला उलझ रहा था. आनंद मोहन की रिहाई में सबसे बड़ी बाधा बिहार की परिहार (Avoidance) नीति 1984 थी. इसमें साल 2002 में बदलाव किए गए. बदलाव के मुताबिक 5 अलग-अलग कैटेगरी के आरोप में सजा काट रहे कैदियों को रिहा न करने का प्रावधान था. इन पांच श्रेणियों में एक से अधिक हत्या, बलात्कार, डकैती, फांसी या आतंकवादी साजिश की तैयारी और एक सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषियों को शामिल किया गया था. 



कैसे हुआ रिहाई का रास्ता साफ?


बिहार सरकार ने कानून में संशोधन किया है. दरअसल, पिछले कानून में एक सरकारी अधिकारी की हत्या वाला कानून भी शामिल था, जिसे 10 अप्रैल 2023 को संशोधित किया गया था. बिहार जेल मैनुअल 2012 के नियम-481(i)(ए) में संशोधन कर इस लाइन को ही हटा दिया गया. इसके बाद सरकारी अधिकारी या नौकरी पर तैनात कर्मचारी की हत्या अपवाद की श्रेणी में नहीं गिनी जाएगी. इसे एक साधारण हत्या माना जाएगा. यही वजह है कि अब आनंद मोहन की रिहाई आसान हो गई. 


इस मामले में हुई थी सजा


गौरतलब है कि आनंद मोहन को गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था. सन् 1994 में मुजफ्फरपुर के गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा के दौरान आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी. अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना हाई कोर्ट ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था. मोहन ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.


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