SY Quraishi On Election Commissioners Appointment: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए. इसके बाद से चुनाव आयोग (Election Commission Of India) की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. एसवाई कुरैशी (SY Quraishi) ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया को दोषपूर्ण बताते हुए कहा कि भारत के चुनाव आयोग की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया को नया रूप दिया जाना चाहिए.


लाइव लॉ (Live Law) को दिए अपने एक इंटरव्यू में पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि उन्होंने कई मौकों पर कहा कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली आयोग में नियुक्ति की सबसे शक्तिशाली प्रणाली है. वह चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र तंत्र की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ के फैसले को लेकर बोल रहे थे. कोर्ट के सामने दिए गए सुझावों में से एक कॉलेजियम सिस्टम भी था, जिसमें प्रधानमंत्री, भारत के चीफ जस्टिस और चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए विपक्ष के नेता शामिल हों. 


चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया पर उठाए सवाल


साल 210-12 तक भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त के पद पर रहे कुरैशी ने कहा कि कई देशों में चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों की संसदीय जांच होती है. कुछ देशों में राष्ट्रीय टीवी चैनल में उम्मीदवारों का लाइव इंटरव्यू होता है. पूर्व नौकरशाह ने कहा कि हालांकि उनकी नियुक्ति मौजूदा व्यवस्था के तहत हुई थी, लेकिन उन्होंने प्रक्रिया को लेकर हमेशा चिंता जताई थी.


इस प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है. हम यही मांग कर रहे हैं. सीईसी के रूप में, हालांकि वह पुरानी व्यवस्था के लाभार्थी थे, उन्होंने सरकार को लिखा था और उनसे पहले उनके कई चुनाव आयुक्तों ने सुधारों की मांग करते हुए सरकार को एक ही बात लिखी थी. उम्मीद है यह बेंच तय करेगी कि एक कॉलेजियम सिस्टम हो.


उन्होंने कहा कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए हमारे पास पहले से ही एक कॉलेजियम सिस्टम है जहां पीएम, सीजेआई और विपक्ष के नेता एलओपी की एक उच्च स्तरीय समिति नियुक्ति को मंजूरी देती है.


अरुण गोयल की नियुक्ति पर क्या बोले कुरैशी?


कुरैशी ने अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने में दिखाई गई हड़बड़ी पर सरकार से सवाल करने को लेकर कहा कि ऐसा लगता है कि सरकार गलत कदम पर फंस गई है. उन्होंने कहा कि पद मई से खाली पड़ा था. गुजरात और हिमाचल प्रदेश दो राज्यों में चुनाव होने वाले थे. सरकार को कोई अत्यावश्यकता महसूस नहीं हुई, जबकि दो राज्यों के चुनाव महत्वपूर्ण मामले हैं. सरकार ने यह आवश्यक नहीं समझा कि तीसरे सदस्य की रिक्ति को भरें और अचानक 12 घंटे में अगर वे ऐसा करते हैं, तो जाहिर तौर पर सवाल उठेगा और अदालत ने यही पूछा है.


चुनाव आयुक्तों को भी हटाने से मिले सुरक्षा 


उन्होंने बताया कि मुख्य चुनाव आयुक्त को कार्यपालिका द्वारा मनमानी तरीके से हटाने को लेकर सुरक्षा प्राप्त है, क्योंकि संविधान में प्रावधान है कि सीईसी को केवल उसी तरह से हटाया जा सकता है जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के एक जज को हटाया जाता है. इस मतलब है कि केवल संसद द्वारा महाभियोग के माध्यम से ही सीईसी को हटाया जा सकता है. यह सुरक्षा सीईसी को कुछ हद तक स्वतंत्रता और स्वायत्तता प्रदान करती है. हालांकि, चुनाव आयुक्तों को समान सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती है.


इसलिए इन दोनों बातों को बहुत स्पष्ट कर देना चाहिए कि एक बार नियुक्त हो जाने के बाद, यहां तक ​​कि आयुक्तों को महाभियोग के अलावा हटाया नहीं जा सकता है और सीईसी में उनकी पदोन्नति वरिष्ठता के आधार पर स्वत: हो जाएगी जैसा कि भारत के चीफ जस्टिस के मामले में होता है.


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