उत्तर प्रदेश के संभल जिले में जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा ने देश में धार्मिक स्थलों के सर्वे को लेकर बहस छेड़ दी है. इसके बाद अब अजमेर की दरगाह में महादेव मंदिर होने का दावा किया जा रहा है.


संभल और अजमेर शरीफ दरगाह पर निचली अदालत के फैसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत तमाम मुस्लिम संगठन और विपक्ष ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के फैसले को आड़े हाथ लिया है.


संभल विवाद के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले पर उठते सवाल


AIMPLB ने पूर्व सीजेआई पर आरोप लगाया गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे की इजाजत देने वाले आदेश की वजह से ही निचली अदालत भी ऐसे फैसले दे रहे हैं. एआईएमपीएलबी ने बयान जारी करते हुए कहा कि ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला "प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991" की भावना के खिलाफ है. बोर्ड के अनुसार, इस फैसले ने अन्य धार्मिक स्थलों पर भी सर्वे के लिए रास्ता खोल दिया है. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, "1991 के कानून के अनुसार पूजा स्थल की स्थिति नहीं बदली जा सकती, फिर इन सर्वे का क्या मतलब है?"


समाजवादी पार्टी के सांसद जिया-उर-रहमान बर्क और मोहिबुल्लाह नदवी ने भी चंद्रचूड़ की आलोचना करते हुए कहा, "उनके फैसले से धार्मिक स्थलों के विवाद बढ़ने की संभावना है. सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और इन सर्वेक्षणों को रोकना चाहिए."


डीवाई चंद्रचूड़ का वो फैसला, जिसपर मचा है हायतौबा?


सुप्रीम कोर्ट ने साल 2023 में ज्ञानवापी परिसर में सर्वे की इजाजत दे दी थी. इस बेंच की अध्यक्षता तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे. इसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे.  इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने की मंजूरी दी गई थी. 4 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सर्वे को "नॉन-इनवेसिव" तकनीकों के तहत ही किया जाए और इसके मकसद के बारे में भी कहा कि इसका मकसद यह स्पष्ट करना था कि यह मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी या नहीं.


वाराणसी की अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने अदालत में तर्क दिया था कि यह फैसला 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के खिलाफ है और इससे देश भर में इसी तरह की याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी. इसपर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि पूजा स्थल अधिनियम की धारा 3 में किसी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप की पहचान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि, इसी अधिनियम की धारा 4 15 अगस्त, 1947 से पहले मौजूद पूजा स्थलों के रूप में कोई बदलाव करने पर रोक लगाती है. कोर्ट ने इस अहम फैसले में कहा था कि यह प्रावधान धार्मिक स्थलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित करने के लिए जरूरी है, लेकिन धार्मिक चरित्र का निर्धारण किसी अन्य कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा हो सकता है.


संभल हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?


संभल की शाही जामा मस्जिद में रविवार (24 नवंबर 2024) को दूसरे सर्वे के दौरान हुई हिंसा में पांच लोग मारे गए थे, हालांकि पुलिस ने चार लोगों की मौत की ही पुष्टि की है. अब इलाके में धीरे धीरे माहौल सामान्यता की ओर बढ़ चला है. शाही जामा मस्जिद कमेटी ने सर्वे के आदेश को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. इस पर बीते दिन यानी शुक्रवार (29 अक्टूबर 2024) को सुनवाई हुई.


शीर्ष न्यायालय ने मामले में शांति बनाए रखने की आवश्यकता पर भी चिंता जताई और उत्तर प्रदेश प्रशासन से सुनिश्चित करने के लिए कहा कि किसी भी तरह की अशांति न हो. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मस्जिद का सर्वेक्षण करने वाले एडवोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट को सीलबंद लिफाफे में रखा जाए और उसे सार्वजनिक करने से पहले उच्च न्यायालय के आदेश का पालन किया जाए. सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार शामिल थे.


'प्रदेश की पुलिस-जिला प्रशासन रहे तटस्थ'


सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सूबे की पुलिस व्यवस्था और जिला प्रशासन को कड़े निर्देश जारी किए हैं. अदालत ने कहा कि जिले में शांति व्यवस्था को पूरा तटस्थता के साथ बहाल की जाए. इसके अलावा सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि मस्जिद कमिटी सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 13 के तहत 19 नवंबर को सिविल अदालत की ओर से सर्वे करने के एकपक्षीय फैसले को रद्द करने के लिए याचिका दायर कर सकती है या फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर अपना रुख कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्देश अनुच्छेद 227 के तहत निचली अदालतों की निगरानी के अपने अधिकार के तहत दिया है.


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