Pramod Krishnam Attack On Rahul Gandhi: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सोमवार (29 जुलाई) को लोकसभा में केंद्रीय बजट पर चर्चा में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने कहा कि सरकार में सिर्फ दो तीन प्रतिशत ही हलवा तैयार कर रहे हैं और खा रहे हैं. इसको लेकर कांग्रेस के पूर्व नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने उनको निशाने पर लिया.


सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “60 साल तक “देश” को “हलवा” समझ कर ही तो खाया है, इस लिये सारा ध्यान “हलुए” में ही अटका हुआ है.” दरअसल, राहुल गांधी ने दावा किया था कि 20 अफसरों ने देश का बजट बनाने का काम किया है, लेकिन इनमें से सिर्फ एक अल्पसंख्यक और एक ओबीसी हैं और उनमें दलित आदिवासी एक भी नहीं है.


आचार्य प्रमोद कृष्णम ने क्या कहा?


उन्होंने कांग्रेस सांसद पर हमला करते हुए कहा, राहुल गांधी को सबसे ज्यादा भय मोदी जी से लगता है. उनको पीएम मोदी से इतना भय लगता है कि वह सुबह से उठकर दिनभर मोदी जी पर बयान देते हैं. राहुल गांधी जो बोलते हैं उसका कोई मतलब नहीं होता है. उनको न तो रामायण का पता है, न ही महाभारत का पता है. उनको तो यह भी नहीं पता कि चक्रव्यूह की रचना किसने की थी." 


पीएम मोदी को बताया अर्जुन


कांग्रेस के पूर्व नेता ने पीएम मोदी की तारीफ करते हुए कहा कि अगर देश में वाकई में कोई अर्जुन है तो वह नरेंद्र मोदी हैं क्योंकि उन्होंने विपक्ष के सभी चक्रव्यूह को तोड़ते हुए तीसरी बार जीत हासिल की है. विपक्षी पार्टियां कौरव की तरह हैं. 


राहुल गांधी के हलवा वाले बयान पर क्या बोले आचार्य प्रमोद कृष्णम?


उन्होंने कहा, "60 साल तक कांग्रेस पार्टी ने देश को हलवा समझ कर खाया है. इसलिए, आज वह उनके जहन से उतर नहीं रहा है. राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने जो 60 साल तक हलवा खाया है, उसका जवाब देश को देना चाहिए.  मुझे कभी-कभी लगता है कि राहुल गांधी कह देंगे कि मैं भी भगवान शिव की बारात में शामिल हुआ था." 


बजट की हलवा सेरेमनी पर राहुल गांधी ने किया कटाक्ष


राहुल गांधी ने बजट से पहले की हलवा वाली रस्म का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि इस सरकार में दो-तीन प्रतिशत लोग ही हलवा तैयार कर रहे हैं और उतने ही लोग हलवा खा रहे हैं. बाकी बचे हिंदुस्तान को यह नहीं मिल रहा है. उन्होंने यह दावा भी किया कि इस बजट में चंद पूंजीपतियों के एकाधिकार और लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट करने वाले राजनीतिक एकाधिकार को मबजूती प्रदान की गई है, जबकि युवाओं, किसानों तथा मध्य वर्ग को नजरअंदाज कर दिया गया है.


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