Shankar Dayal Sharma: देश के राष्ट्रपति के पास इतनी ताकत होती है कि देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट से फांसी की सजा पाए व्यक्ति को भी माफ कर सकता है. इसी तरह एक राष्ट्रपति के पास दो अपराधियों की दया याचिका आई. ये अपराधी भी कोई सामान्य अपराधी नहीं थे, ये वो क्रिमिनल थे जिन्होंने उसी राष्ट्रपति की बेटी और दामाद की गोली मारकर हत्या कर दी थी.
हम बात कर रहे हैं देश के नौवें राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की. उनका जीवन उपलब्धियों, बिडंबनाओं और विवादों से भरा रहा. डॉ. शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 में भोपाल में हुआ था. 22 साल की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन से जुड़ गए थे और आजादी के बाद 1952 में मुख्यमंत्री बने. ये वो शख्स थे जिन्होंने एक बार प्रधानमंत्री का पद भी ठुकरा दिया था.
बेटी और दामाद की कर दी गई थी हत्या
आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहते हुए शंकर दयाल शर्मा की बेटी और दामाद की हत्या कर दी गई थी. यह बात है उस दौर की है जब ऑपरेशन ब्लू स्टार की वजह से सिखों का एक तबका इंदिरा गांधी से बुरी तरह खफा था. 1984 में स्वर्ण मंदिर पर खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कब्जा कर लिया था. मंदिर को उससे आजाद कराने के लिए इंदिरा गांधी ने यह ऑपरेशन चलाया था, जिसकी जिम्मेदारी जनरल अरुण श्रीधर वैद्य को सौंपी गई थी.
भिंडरावाले मार गिराया गया, लेकिन इस ऑपरेशन से सिखों की धार्मिक भावनाएं आहत हो गई थीं. इस ऑपरेशन के चार महीने बाद इंदिरा गांधी की उनके बॉडी गार्ड्स ने ही हत्या कर दी थी. इसके बाद हुए दंगों में सिखों का कत्लेआम हुआ. इन दंगों के लिए कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को जिम्मेदारी ठहराया गया. इन नामों में एक नाम ललित माकन का भी था. ये कांग्रेस के एक युवा नेता भी थे और शंकर दयाल शर्मा के दामाद भी.
31 जुलाई 1985 को कृति नगर में मौजूद अपने निवास पर ललित माकन लोगों से मुलाकात के बाद कार में बैठ रहे थे तभी तीन आतंकियों हरजिंदर सिंह जिंदा, सुखदेव सिंह सूखा और रंजीत सिंह गिल कुकी ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी. इस हमले में ललित माकन, उनकी पत्नी गीतांजलि और सहयोगी बाल किशन की मौत हो गई.
हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सूखा पर केस चला और कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुना दी. हत्यारों के पास बचने की एक उम्मीद थी और वह थी दया याचिका. उस समय शंकर दयाल शर्मा राष्ट्रपति थे. इन्हीं हत्यारों ने उनकी बेटी और दामाद की भी हत्या की थी. राष्ट्रपति ने दोनों की दया याचिका खारिज कर दी और 9 अक्टूबर 1992 को दोनों को पुणे की यरवदा जेल में फांसी पर लटका दिया गया.
शंकर दयाल शर्मा का करियर
डॉ शर्मा का जन्म मध्यप्रदेश के भोपाल के अमोन गांव में 19 अगस्त 1918 को हुआ था. उनके पिता पंडित खुशीलाल शर्मा एक प्रसिद्ध वैद्य थे और उनकी माता का नाम सुभद्रा देवी था. उनकी शुरुआती शिक्षा स्थानीय दिगंबर जैन स्कूल में हुई जिसके बाद सेंट जोंस कॉलेज आगरा, और इलाहबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी साहित्य, हिंदी, संस्कृत में मास्टर्स डिग्री और लखनऊ यूनिवर्सिटी एएलएम की डिग्री हासिल की.
पढ़ाई में हमेशा ही टॉप पर रहने वाले शंकर दयाल शर्मा इसके बाद कानून की उच्च पढ़ाई करने के लिए वे इंग्लैंड चले गए और वहां पीएचडी हासिल की. कुछ समय तक कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में अध्यापन भी किया और वापस लौट कर लखनऊ विश्वविद्यालय में भी कानून का शिक्षण कार्य किया.
राजनीतिक करियर
1940 में डॉ शंकर दयाल शर्मा ने पहले अपनी वकालत की प्रैक्टिस की शुरुआत की. उसके बाद उसी साल उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर राजनीति में भी आ गए. भारत की आजादी के समय भोपाल के नवाब ने आजाद रहने का ऐलान किया, तब डॉ शर्मा ने नवाब के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया जिसके बाद नवाब ने 1948 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया और वे 8 महीनों तक जेल में रहे. बाद में जनता के दबाव में नवाब को उन्हें छोड़ना पड़ा. इसके बाद 30 अप्रैल 1949 को नवाब भोपाल के भारत में विलय पर सहमत भी हो गए.
डॉ शर्मा 1950 से भोपाल कांग्रेस के अध्ययक्ष बने रहे. 1952 में भोपाल स्टेट के पहले मुख्यमंत्री बने और वे उस समय के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे. वे भोपाल के मुख्यमंत्री पद पर 1956 तक बने रहे इसके बाद भोपाल का तत्कालीन मध्य प्रदेश में विलय हो गया और भोपाल शहर प्रदेश की राजधानी बनाए जाने में डॉ शर्मा की बड़ी भूमिका थी.
डॉ शर्मा 1957, 1962 और 1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा के लगातार सदस्य रहे और इस दौरान वे प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे. डॉ शर्मा ने 1960 के उत्तरार्ध में इंदिरागांधी का समर्थन किया इसके बाद वे राष्ट्रीय राजनीति में आ गए और 1971 में वे भोपाल सीट से लोकसभा के सदस्य बने. 1972 में वे कांग्रेस अध्ययक्ष बने. इसके बाद 1974 से तीन साल तक संचार मंत्री बने रहे. इसके बाद उन्होंने 1980 में भी भोपाल लोकसभा सीट से जीत हासिल की.
1984 में इदिंरा गांधी की हत्या के बाद डॉ शर्मा कई राज्यों के राज्यपाल बने. जब वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे तब उनकी बेटी गीतंजलि माकन और दामाद ललित माकन की सिख आंतंकियों ने हत्या कर दी. 1985 में वे पंजाब और 1986 में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए गए. 1987 में वे भारत के आठवें उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति चुने गए और उसके पांच साल बाद 1992 में भारत के नवें राष्ट्रपति चुने गए थे. 26 दिसंबर 1999 को उनका निधन हो गया था.
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