नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी आवास के हकदार हैं या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला देगा. लोकप्रहरी नाम के एनजीओ ने उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री को बंगला दिए जाने के नियम को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये किसी एक राज्य का मामला नहीं बल्कि पूरे देश का मामला है.


पूर्व राष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को सरकारी बंगला देना गलत- एमिकस क्युरी


दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी निवास दिए जाने के प्रावधान पर सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले के लिए वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम को अमाइक्स क्यूरी (न्याया मित्र) नियुक्त किया था.


इस मामले में एमिकस क्युरी गोपाल सुब्रमण्यम ने पूर्व राष्ट्रपतियों और पूर्व प्रधानमंत्रियों को सरकारी बंगला देने को गलत बताया था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में राज्यों और एटॉर्नी जनरल से पक्ष रखने को कहा था.


यूपी सरकार के आदेश को ख़ारिज कर चुका है सुप्रीम कोर्ट


गौरतलब है कि लोक प्रहरी के महासचिव और पूर्व नौकरशाह एस. एन. शुक्ला शिकायकर्ता के तौर पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. बता दें कि साल 2016 के अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के उस आदेश को ख़ारिज कर दिया था, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन भर मुफ्त सरकारी आवास देने की व्यवस्था की गई थी.


याचिका में क्या कहा गया है?


एनजीओ लोक प्रहरी ने 1997 में जारी सरकारी आदेश को चुनौती दी थी. याचिका में "उत्तर प्रदेश मिनिस्टर्स सैलरीज़, अलाउंस एंड अदर फैसिलिटीज एक्ट 1981" का हवाला दिया था. इस एक्ट के सेक्शन 4 में कहा गया है कि मंत्री और मुख्यमंत्री, पद पर रहते हुए एक निशुल्क सरकारी आवास के हकदार हैं. पद छोड़ने के 15 दिन के भीतर उन्हें सरकारी मकान खाली करना होगा.