नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही इस्तीफा देने के संभावित कारण का खुलासा हुआ है. उर्जित पटेल ने बताया है कि दिवालिया कानून यानी इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड (IBC) को लेकर उनके और केंद्र सरकार के बीच अचानक मतभेद हो गया था. उन्होंने साथ ही आरोप लगाया है कि सरकार ने इस कानून में लोन न चुकाने वालों (डिफॉल्टर) पर नरमी बरती थी, जिसके कारण खराब कर्ज (Bad Loan) के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम को धक्का लगा.


अपनी किताब में किया IBC पर मतभेद का जिक्र


दिसंबर 2018 में पटेल ने अचानक ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उनके इस्तीफे को लेकर हमेशा अटकलें लगाई जाती रहीं कि उनका केंद्र सरकार से किसी मुद्दे पर विवाद हो गया था. अब अपनी किताब ‘ओवरड्राफ्ट’ (Overdraft- Saving the Indian Saver) में केंद्र सरकार से IBC को लेकर हुए अपने मतभेद का जिक्र किया है.


उर्जित पटेल के कार्यकाल में ही RBI ने फरवरी 2018 में IBC का पहला सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर में बैंकों को कर्ज वापस न चुकाने वाले लेनदारों तुरंत डिफॉल्टर के तौर पर क्लासीफाइ करने को कहा गया था. इसके साथ ही डिफॉल्टर को अपनी नीलामी के दौरान अपनी कंपनी दोबारा खरीदने से भी रोका जाना था.


उर्जित पटेल के मुताबिक, इसका मकसद दिवालिया कानून को मजबूत बनाना था ताकि कोई भी कंपनी या कंपनी प्रमोटर भविष्य में लोन डिफॉल्ट करने की कोशिश करे तो उस पर कड़ी कार्रवाई हो और बाकी लोगों को इससे सबक मिले.


सर्कुलर को वापस लेने का किया गया अनुरोध


उर्जित पटेल ने अपनी किताब में साथ ही लिखा है कि फरवरी में RBI का सर्कुलर आने से पहले तक वह और वित्त मंत्री इस पूरे मुद्दे पर एकमत थे, लेकिन सर्कुलर आने के बाद सब कुछ बदल गया. उन्होंने साथ ही कहा, केंद्र सरकार की ओर से फरवरी वाले सर्कुलर को वापस लेने का अनुरोध किया गया और इस दौरान ये अफवाह भी फैलाई गई कि ये कोड एमएसएमई सेक्टर को नुकसान पहुंचाएगा, जबकि ऐसा नहीं था.


RBI के 2019 के सर्कुलर ने किया इसे कमजोर


उन्होंने बताया है कि सुप्रीम कोर्ट में अप्रैल 2019 में इस मामले को लेकर सुनवाई में कोर्ट ने फरवरी 2018 वाले सर्कुलर में एकदिवसीय डिफॉल्ट रिजॉल्यूशन को समस्या नहीं बताया था. पटेल के मुताबिक इसके बाद जून 2019 में RBI की ओर से एक और सर्कुलर जारी किया गया था, जिसने उसे कमजोर बना दिया और दिवालियापन के प्रावधान को कमजोर कर दिया. इससे कई डिफॉल्टरों पर कार्रवाई में देरी हुई, जबकि कुछ दिवालियापन वाली अदालतों की कार्रवाई से बच गए.


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