'हिजाब प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है, मैं जस्टिस धूलिया के फैसले से सहमत हूं' - SC के पूर्व जज अशोक गांगुली
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अशोक कुमार गांगुली ने हिजाब प्रतिबंध को अनावश्यक बताया है. उन्होंने कहा कि यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है. पूर्व जस्टिस ने जस्टिस धूलिया के आदेश पर भी प्रतिक्रिया दी.
Hijab Ban: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पूर्व जस्टिस अशोक कुमार गांगुली (Ashok Kumar Ganguly) ने हिबाज पर प्रतिबंध लगाने और सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की कार्यवाही को लेकर चिंता व्यक्त की है. उन्होंने हाल ही में कोलकाता (Kolkata) में एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हिजाब बैन की बहस अनावश्यक है और शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है.
सुंधाशु धूलिया के फैसले से सहमत दिखे गांगुली
उन्होंने कहा, "भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. यहां, संविधान सभी धर्मों और भाषाओं के लोगों को समान अधिकार प्रदान करता है. हालांकि, हाल के दिनों में कुछ बुरी ताकतें देश के सांस्कृतिक माहौल को तबाह करने की कोशिश कर रही हैं." गांगुली ने जोर देकर कहा कि वह सुधांशु धूलिया के फैसले से सहमत हैं कि हिजाब प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है.
'यह एक अनावश्यक प्रतिबंध है'
पूर्व जस्टिस गांगुली ने कहा कि यह एक अनावश्यक प्रतिबंध है जिस पर सुप्रीम कोर्ट में बहस हो रही है. उन्होंने कहा, "मैं उन विचारों का पुरजोर समर्थन करता हूं जो जस्टिस सुधांशु धूलिया ने व्यक्त किए हैं कि प्रतिबंध अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है." पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष रह चुके गांगुली ने हिजाब पर प्रतिबंध की तुलना भारतीय नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को छीनने के समान ही की.
उन्होंने साफ तौर पर कहा, "देश के संविधान ने सभी को धर्म और संस्कृति का अधिकार दिया है, लेकिन कुछ लोग इसे छीनने की कोशिश कर रहे हैं. संवैधानिक सिद्धांतों को संरक्षित करने के लिए अभिव्यक्ति के बिना कोई राज्य मौजूद नहीं हो सकता है. सभी ने ध्यान दिया होगा कि जब कोई सरकार सत्ता में आती है तो राज्य को संविधान के सिद्धांतों, ईमानदारी की शपथ और सार्वजनिक कर्तव्य का पालन करने की शपथ लेनी होती है. इस तरह जो हर किसी के मन में विश्वास जगाता है, न केवल उन लोगों के लिए जो आपकी पार्टी में प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वे भी जो आपके विपरीत हैं, जो आपकी आलोचना कर रहे हैं, क्योंकि यह एक गणतंत्र है."
सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों में शामिल होने और भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों के लिए मार्च करते हुए देखे गए अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के समर्थन में हमेशा अपनी आवाज बुलंद करेंगे. उन्होंने कहा, "मैंने हिजाब पहनने के व्यक्ति के अधिकार के समर्थन में एक मार्च में भाग लिया है. मेरा मानना है कि एक पूर्व न्यायाधीश के रूप में यह मेरा कर्तव्य है कि मैं संविधान के सिद्धांतों को कायम रखूं."
'शिक्षक सबसे सम्मानित पद है'
पूर्व जस्टिस गांगुली ने अपने शिक्षण दिनों को भी याद किया. उन्होंने कहा, "मैंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल शिक्षक के रूप में की थी और मेरा मानना है कि शिक्षक सबसे सम्मानित पद है. जब तक आपके पास अच्छे शिक्षक नहीं होंगे, आप एक राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकते. आप विरोध कर सकते हैं और उस अन्याय के खिलाफ उठ सकते हैं जो शिक्षा का सार है."
हिजाब प्रतिबंध पर दो जजों की अलग-अलग राय
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब प्रतिबंध आदेश पर एक विभाजित फैसला दिया है, जिसने कर्नाटक में मुस्लिम स्कूली छात्राओं की स्कूली शिक्षा को सीधे प्रभावित किया है. दो न्यायाधीशों की पीठ में, शीर्ष अदालत के जज सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब प्रतिबंध को रद्द कर दिया, जबकि जज हेमंत गुप्ता ने फैसले से सहमति व्यक्त की और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 26 अपीलों को खारिज कर दिया.
जस्टिस धूलिया ने अपने फैसले में कहा, "लड़कियों को स्कूल के गेट में प्रवेश करने से पहले अपना हिजाब उतारने के लिए कहना, पहले उनकी निजता का हनन है, फिर यह उनकी गरिमा पर हमला है. ये स्पष्ट रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए), अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25(1) का उल्लंघन है.
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