Former SC Judge Justice Kurian Joseph: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ ने शनिवार (24 फरवरी) को मीडिया पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और सच्चाई की रक्षा करने में विफल रहा है. 


उन्होंने कहा कि सामने आने वाले तथ्यों में कोई निडरता और सच्चाई नहीं दिखती तथा लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा झटका यह है कि चौथा स्तंभ देश को विफल कर चुका है. वह यहां 'कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स' (सीजेएआर) की ओर से आयोजित एक सेमिनार में बोल रहे थे. पूर्व न्यायाधीश कुरियन ने भंडाफोड़ करने वालों (व्हिसलब्लोअर) को 'पांचवां स्तंभ' बताते हुए उनकी सुरक्षा का आह्वान किया. 


'लोकतंत्र की रक्षा करने में विफल रहा चौथा स्तंभ' 


न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, ''हमें सामने आने वाले तथ्यों में कोई निडरता और सच्चाई नहीं मिलती. लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा झटका यह है कि चौथा स्तंभ देश को विफल कर चुका है. पहले तीन स्तंभों के बारे में भूल जाओ. चौथा स्तंभ मीडिया है और वह लोकतंत्र की रक्षा करने में विफल रहा है. वह संविधान की रक्षा करने में विफल रहा है. वह सच्चाई की रक्षा करने में विफल रहा है. व्हिसलब्लोअर' ही एकमात्र उम्मीद हैं.''


'सीजेआई 'मास्टर ऑफ रोस्टर', कोई विवाद नहीं' 


न्यायमूर्ति जोसेफ ने इसके साथ ही शीर्ष अदालत में मामलों के आवंटन का फैसला करने के लिए कम से कम 3 न्यायाधीशों सहित एक विस्तारित तंत्र की वकालत की. शीर्ष अदालत ने 2018 के एक फैसले में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश 'मास्टर ऑफ रोस्टर' हैं और इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनके पास मामलों को आवंटित करने का 'अंतिम अधिकार' तथा 'विशेषाधिकार' है. 


'मामलों के आवंटन का फैसला 3 न्यायाधीशों समेत एक विस्तारित तंत्र करे'  


न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, 'अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मेरा पहला मुख्य विचार यह था कि सुप्रीम कोर्ट में एक 'रिमोट कंट्रोल' की धारणा है. इसलिए, जनता के मन में एक धारणा है कि 'मास्टर ऑफ रोस्टर' कथ‍ित तौर पर उस तरह काम नहीं कर रहा, जिस तरह इसे काम करना चाहिए.' न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि इस पर उनका पहला सुझाव यह है कि शीर्ष अदालत में मामलों के आवंटन का फैसला करने के लिए कम से कम 3 न्यायाधीशों सहित एक विस्तारित तंत्र होना चाहिए. 


'मामलों के सूचीबद्ध करने में देरी से पैदा होती है 'कुछ गड़बड़' की धारणा' 


वहीं, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने कहा कि नोटबंदी और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से संबंधित मामलों जैसे 'अहम मुद्दों' को सूचीबद्ध करने में लंबे समय तक देरी और पूर्वानुमानित निर्णय न्याय की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं तथा यह धारणा पैदा होती है कि न्यायिक प्रणाली में 'कुछ गड़बड़ है.' उन्होंने कहा कि मामलों को सूचीबद्ध करने की समस्या कोई नयी बात नहीं है और ऐसा बहुत लंबे समय से, खासकर सुप्रीम कोर्ट में रहा है. 


'आज चीजें कई साल पहले की तुलना में बहुत अधिक हैं' 


न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ''लेकिन आज हम इसके बारे में बात कर रहे हैं, क्योंकि आज चीजें कई साल पहले की तुलना में बहुत अधिक हैं.'' उन्होंने कहा कि नोटबंदी, अनुच्छेद 370 और राजनीतिक वित्त पोषण के लिए चुनावी बॉण्ड जैसे मामले कई सालों के बाद सुनवाई के लिए शीर्ष अदालत में सूचीबद्ध किए गए. 


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