नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल हो सकते हैं. आज उनके नाम की आधिकारिक घोषणा की जा सकती है. अधिकारियों ने कोई विस्तृत जानकारी दिये बिना कहा कि समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली लोकपाल चयन समिति द्वारा इस पद के लिए पूर्व जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष के नाम पर सक्रियता से विचार किया जा रहा है.
जस्टिस घोष (66) मई 2017 में रिटायर्ड हुए थे. वह 29 जून 2017 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के सदस्य हैं. यदि घोष की नियुक्ति की जाती है तो इससे राजनीतिक विवाद उत्पन्न हो सकता है क्योंकि कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को चयन समिति की बैठक का बहिष्कार किया था.
लोकपाल कानून 2013 में पारित किया गया था जो कुछ श्रेणियों के लोकसेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान करता है.
यह घटनाक्रम सुप्रीम कोर्ट द्वारा अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से 10 दिन में चयन समिति की बैठक की संभावित तिथि के बारे में सूचित करने के लिए कहने के एक सप्ताह बाद हुआ है.
वेणुगोपाल ने गत सात मार्च को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस ए नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ को सूचित किया था कि शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व वाली लोकपाल सर्च कमेटी ने भ्रष्टाचार विरोधी निकाय में चेयरपर्सन, न्यायिक और गैर-न्यायिक सदस्यों की नियुक्ति के लिए चयन समिति को नामों के तीन पैनल की सिफारिश की है.
अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा था कि वह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के सचिव से यह सुनिश्चित करने के लिए कहेंगे कि चयन समिति की बैठक जल्द से जल्द बुलाई जाए. शीर्ष अदालत ने तीन पैनलों में नामों का खुलासा करने के लिए निर्देश पारित करने से इनकार कर दिया था. अदालती कार्यवाही के बाद शुक्रवार को चयन समिति की बैठक हुई.
उच्चतम न्यायालय ने 17 जनवरी को लोकपाल सर्च कमेटी के लिए उन नामों के पैनल भेजने के लिए फरवरी के अंत की समयसीमा तय की थी जिन्हें उसके चेयरमैन और सदस्य के रूप में नियुक्त करने पर विचार किया जा सके.
कोई भी व्यक्ति जो भारत का चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस है या रहा है वह लोकपाल के रूप में नियुक्ति के लिए पात्र है. नियमों के अनुसार लोकपाल पैनल में एक चेयरमैन और अधिकतम आठ सदस्य होने का प्रावधान है. इनमें से चार न्यायिक सदस्य होने चाहिए.
लोकपाल चयन समिति का नेतृत्व प्रधानमंत्री करते हैं और इसके सदस्यों में लोकसभा अध्यक्ष, निचले सदन में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित शीर्ष अदालत का कोई न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद जिसे राष्ट्रपति या किसी अन्य सदस्य द्वारा नामित किया जा सकता है.
मल्लिकार्जुन खड़गे ने फिर किया लोकपाल चयन समिति की बैठक का बहिष्कार
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को चयन समिति की पिछली बैठकों में ‘विशेष आमंत्रित’ के रूप में आमंत्रित किया गया था. वह पिछले साल फरवरी से इस बैठक में भाग लेने से इनकार कर रहे हैं और उनका कहना है कि ऐसी बैठक में हिस्सा लेने के लिए विशेष आमंत्रित का कोई प्रावधान नहीं है.
मोदी को हाल में लिखे पत्र में उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने अकेली सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को चयन समिति के सदस्य के रूप में शामिल करने के लिए लोकपाल अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन करने का कोई प्रयास नहीं किया. मौजूदा लोकसभा में विपक्ष या एलओपी का कोई नेता नहीं है.
किसी भी पार्टी के पास कम से कम 55 सीटें या लोकसभा की कुल सीटों की 10 प्रतिशत होनी चाहिए ताकि उसके नेता को एलओपी का दर्जा मिल सके. निचले सदन में कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, लेकिन उसके नेता को एलओपी का दर्जा नहीं दिया जा सका क्योंकि उसके पास इसके लिए अहर्ता प्राप्त के लिए अपेक्षित संख्या नहीं है.