नई दिल्ली: "1868 में कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने साथ मिलकर बैंगलोर क्लब की स्थापना की. 1899 में एक अधिकारी लेफ्टिनेंट डब्ल्यू एल एस चर्चिल को क्लब ने 13 रुपये का बकाया न चुकाने के लिए डिफॉल्टर की लिस्ट में डाल दिया. उस अधिकारी पर क्लब का यह उधार हमेशा बना रहा. बाद में वह सर विंस्टन लियोनार्ड स्पेंसर चर्चिल के नाम से जाना गया और ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना."


यह दिलचस्प वाकया सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में दर्ज किया है. इस फैसले में बैंगलोर क्लब को वेल्थ टैक्स चुकाने के मामले में राहत दी गई है. साल 2000 में बंगलुरू के वेल्थ टैक्स ऑफिसर ने क्लब की संपत्तियों और उससे होने वाली आय पर टैक्स वसूली का आदेश जारी किया था. मामला इनकम टैक्स कमिश्नर और इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल से होते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट पहुंचा. 2007 में हाई कोर्ट ने क्लब से टैक्स वसूली को सही बताया और यह तय किया कि क्लब की देनदारी उसके सभी सदस्यों में बराबर बांटी जानी चाहिए.


इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे बैंगलोर क्लब ने कई दलीलें दी. कोर्ट को यह बताया गया कि क्लब में कोई आर्थिक गतिविधि नहीं होती है. वहां होने वाली गतिविधियों के जरिए कोई आमदनी नहीं की जाती है. इसलिए क्लब की संपत्तियों को इनकम टैक्स के दायरे में लाकर हर सदस्य से वसूली का आदेश सही नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस दलील को स्वीकार करते हुए बेंगलुरु क्लब को राहत दे दी है.


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