नई दिल्ली: न्यायपालिका के इतिहास में आज कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं गया था. आज सुप्रीम कोर्ट के चार जज सामने आए. उन्होंने ये कहा कि कोर्ट में सब कुछ ठीक नहीं है. सुबह 12 बजे सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सिनियर जज जस्टिस जे चेलमेश्वर के घर प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए जस्टिस रंजन गोगोई, कुरियन जोसफ और मदन बी लोकुर मौजूद थे. ये नज़ारा जिसने देखा चौंक गया.
सब को इंतज़ार था कि चीफ जस्टिस के बाद चार वरिष्ठतम जज क्या कहना चाहते हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये चारों जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम का हिस्सा हैं. तय समय पर प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई. जजों के बीच चल रहा मतभेद खुल कर सामने आ गया. जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा - "लोकतंत्र के लिए न्यायपालिका बहुत ज़रूरी है. हालात ऐसे बन गए थे कि हमारे लिए लोगों तक अपनी बात पहुंचाना ज़रूरी था." उन्होंने आगे कहा - "हमने आज भी एक ज़रूरी बात के लिए मुलाकात की. लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी. ऐसा काफी अरसे से हो रहा है."
कांफ्रेंस में मौजूद पत्रकारों ने पूछा कि क्या आज महाराष्ट्र के सीबीआई जज लोया की मौत के मामले की सुनवाई को लेकर मतभेद था. जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि किसी एक मामले पर बात नहीं करना चाहते. मामले किस तरह से जजों के पास भेजे जाएं, उस पर भी मतभेद है. पत्रकारों ने बार बार पूछा कि जज खुलासा करें कि आज किस मसले पर वो चीफ जस्टिस से मिले? क्या ये मामला लोया की मौत से जुड़ा था? कांफ्रेंस ने मौजूद जस्टिस रंजन गोगोई ने इस पर सहमति की मुद्रा में सर हिलाया.
बाद में चारों जजों की तरफ से चीफ जस्टिस को लिखी गई एक चिट्ठी भी मीडिया को सौंपी गई. चिट्ठी में मुख्य रूप से दो मसले उठाए गए थे. पहला, सुप्रीम कोर्ट में आने वाले मामलों को जजों के पास भेजने में चीफ जस्टिस का कथित मनमाना रवैया. दूसरा, सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर तैयार करने के मामले में बाकी जजों से बात न करना.
माना जा रहा है कि वरिष्ठ जज खास तौर पर मेडिकल कॉलेज मान्यता मामले में अपनी अनदेखी से नाराज़ हैं. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक यूपी के दो मेडिकल कॉलेजों को दाखिले की अनुमति देने के लिए जजों के नाम पर रिश्वत का लेन-देन हुआ था.
जस्टिस चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली बेंच ने इसकी सुनवाई 5 वरिष्ठतम जजों से कराने का आदेश दिया था. लेकिन उसी दिन चीफ जस्टिस ने इस आदेश को ये कहते हुए बदल दिया कि कोई मामला कौन सी बेंच सुने, ये तय करना चीफ जस्टिस का अधिकार है.
ये मामला दूसरी बेंच के पास भेजा गया, जिसने इसे खारिज कर दिया. चूंकि, मेडिकल कॉलेज मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस कर चुके थे. इसलिए, इस मामले में हुई कथित रिश्वतखोरी पर उनकी तरफ से बेंच बनाने की कानूनी गलियारों में आलोचना भी हुई थी.
जजों की चिट्ठी से ये साफ हो गया कि वो अहम मामलों को किसी बेंच के पास भेजने में चीफ जस्टिस के मनमाने रवैये से आहत हैं. मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करना भी इन वरिष्ठ जजों को नागवार गुजरा है. अभी तक इस मसले पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.