साल 2019 के 10 जनवरी को देश में वायु प्रदूषण संकट से निपटने के लिए पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम यानी राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान शुरू किया था. इस अभियान की शुरुआत हुए जनवरी, 2023 में 4 साल का वक्त बीत चुका है लेकिन इन चार सालों में कोई भी शहर अपना निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई है.
साल 2019 में इस अभियान के लॉन्च के वक्त डॉ. हर्षवर्धन ने कहा था, “इस योजना का उद्देश्य देश की हवा में बढ़ रहे प्रदूषण को नियंत्रित करना है. इसके अलावा इस योजना के तहत पूरे देश में वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क को बढ़ाना, देश और जागरूकता और क्षमता निर्माण गतिविधियों को मजबूत करना है."
122 शहरों के हवा की गुणवत्ता पर काम करने का टारगेट
इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने एक लक्ष्य निर्धारित किया जिसके तहत 122 शहरों के हवा को साफ करने का टारगेट रखा गया था. इन 122 शहरों की वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए चार सालों में 6897.06 करोड़ रुपये का फंड जारी किया जा चुका है. इनमें से राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान के तहत भी 82 शहरों को फंडिंग दी गई.
'द हिंदू' की एक रिपोर्ट के अनुसार इन करोड़ों रुपये की फंडिंग के बाद भी इन शहरों की हवा की क्वालिटी दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. इसमें कोई खास सुधार नहीं देखा गया.
कितना मिला था टारगेट और कहां तक पहुंचे?
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान के तहत साल 2024 तक देशभर के 122 शहरों में सालाना PM2.5 और PM10 स्तर को 20 से 30 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य तय गया था. हालांकि, साल 2022 के सितंबर तक सभी निर्धारित शहर इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएं.
जिसके बाद सरकार की तरफ से इसे बढ़ाकर साल 2026 कर दिया गया. लेकिन समय बढ़ाने के साथ ही हवा को सुधारने का लक्ष्य भी 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत तक कर दिया गया और पहचाने गए शहरों की संख्या को भी बढ़ाकर 131 शहर कर दिया गया.
कैसा रहा एनसीएपी का प्रदर्शन
वायु प्रदूषण के नियमन के लिए पोर्टल PRANA पर दी गई जानकारी के अनुसार 131 टारगेट किए गए शहरों में से 95 शहरों में पीएम 10 लेवल में कमी देखी गई है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट एनालिसिस, अर्बन लैब के अनुसार 6 सितंबर, 2022 को जारी NCAP पर एक रिपोर्ट में बताया गया कि, 'राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत टारगेट किए गए 131 शहरों और इसके दायरे से बाहर के शहरों के बीच समग्र PM2.5 प्रवृत्तियों में कोई अंतर नहीं पाया गया है.'
किस शहर का है सबसे बुरा हाल
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के डेटा के अनुसार राजधानी दिल्ली साल 2022 में सबसे प्रदूषित शहर बन गया था. वायु गुणवत्ता के मामले में राजधानी दिल्ली का हाल आज भी सबसे बुरा है. साल 2019 में जब इस योजना की शुरुआत की गई थी तब राजधानी दिल्ली हवा की गुणवत्ता के मामले में तीसरे स्थान पर था. लेकिन पिछले साल यह भारत के दूसरे सबसे प्रदूषित शहर के लिस्ट में शामिल हो गया.
हालांकि, इससे ये नहीं कहा जा सकता कि दिल्ली की हवा के स्तर में सुधार नहीं हुआ है. राजधानी में सालाना PM2.5 स्तर में 7.4 फीसदी सुधार हुआ. डेटा के अनुसार 2019 से दिल्ली के हवा क्वालिटी की तुलना करें, तो इसमें 7 फीसदी से ज्यादा का सुधार हुआ है.
प्रदूषित हवाओं वाले शहर के मामले में गाजियाबाद में 22.2 प्रतिशत का सुधार हुआ है. वहीं नोएडा में भी 29.8 फीसदी सुधार हुआ है.
2022 में टॉप 10 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में अधिकतर शहर इंडो-गंगेटिक प्लेन से थे. बिहार के तीन शहर पटना, मुजफ्फरपुर और गया, अब PM2.5 स्तरों के आधार पर टॉप 10 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं. वहीं, 10 में से 9 शहर जो 2019 में सबसे अधिक प्रदूषित थे.
इन शहरों ने अपने PM2.5 और PM10 सांद्रता को कम किया है. हालांकि, इन शहरों में PM2.5 और PM10 का लेवल CPCB की वार्षिक औसत सुरक्षित सीमा से बहुत ज्यादा है.
क्या है PM 2.5 और PM 10?
सेंट्रल फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के पर्यावरणविद विवेक चट्टोपाध्याय ने एबीपी न्यूज़ को बताया कि पीएम का मतलब होता है पार्टिकुलेट मैटर , जो हवा के अंदर मौजूद सूक्ष्म कणों को मापते हैं. 2.5 और 10 हवा में मौजूद कणों के आकार को दर्शाता है. यानि कि पार्टिकुलेट मैटर (PM) का आंकड़ा जितना कम होगा, हवा में मौजूद कण उतने ही छोटे होते हैं.
पीएम 2.5 का स्तर धुएं से ज्यादा बढ़ता है यानि कि अगर हम कुछ चीजें वातावरण में जलते हैं. तो वो पीएम 2.5 का स्तर बढ़ता है. ये धुएं, धूल आदि के कणों को दर्शाता है यानि कि हवा में मौजूद कण 2.5 माइक्रोमीटर छोटे हैं.
पीएम 10 का मतलब होता है कि हवा में मौजूद कण 10 माइक्रोमीटर से भी छोटे हैं, और जब पीएम 10, पीएम 2.5 का स्तर 100 से ऊपर पहुंचता है. तो ये खराब श्रेणी को दर्शाता है यानि हवा में धूल, मिट्टी, धुंध के कण ज्यादा मात्रा में मौजूद है. जो आसानी से सांस के जरिए आप के फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं.
विवेक चट्टोपाध्याय ने बताया कि पर्टिकुलर मैटर 2.5 और 10 जो की हवा में मौजूद कणों को मापने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. वायु में पीएम 2.5 और 10 का स्तर बढ़ने के बाद सांस लेने में तकलीफ आंखों में जलन आदि की समस्या शुरू हो जाती है, सबसे ज्यादा समस्या उन लोगों को आती है जो सांस के मरीज और अस्थमा के मरीज है. इसके साथ ही लगातार खराब वायु में सांस लेने से लंग्स कैंसर की समस्या भी हो सकती है.
गैर एनसीएपी शहरों की तुलना में कोई खास अंतर नहीं
CSE की एक कहती है कि जिन शहरों को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु अभियान के लिए चुना गया और उनके हवा के गुणवत्ता को कम करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए गए उन शहरों और गैर एनसीएपी शहरों में कोई खास फर्क नहीं नजर आया है.