नई दिल्लीः खजाने में पैसा होने और बजट में प्रावधान करने के बावजूद आखिर केंद्र सरकार सभी देशवासियों को कोरोना की वैक्सीन मुफ्त में लगाने के विचार से पीछे क्यों हट गई? दिल्ली समेत अन्य विपक्ष शासित राज्य सरकारों ने सभी राज्यों को वैक्सीन मुफ्त दिये जाने की जो मांग की थी, उसे केंद्र सरकार ने ठुकरा तो दिया लेकिन अब उसके साइड इफ़ेक्ट सामने आने लगे हैं. फिलहाल देश के 20 राज्य अपने लोगों को मुफ़्त वैक्सीन लगा रहे हैं लेकिन इनमें से आठ राज्य ऐसे हैं जो सामाजिक व आर्थिक रूप से इतने पिछड़े हैं कि वे इसका भार वहन नहीं कर पाएंगे और इसका नतीजा यह होगा कि आने वाले दिनों में वहां की पूरी स्वास्थ्य-व्यवस्था ही चरमरा जायेगी.


एक स्टडी से पता लगा है कि इन आठ राज्यों को अपने कुल स्वास्थ्य बजट का तकरीबन तीस फीसदी हिस्सा सिर्फ इन दो वैक्सीन की खरीद पर ही खर्च करना पड़ेगा. ऐसे में सवाल उठता है कि तब हेल्थ के बाकी संसाधनों को जुटाने,नये अस्पताल बनाने व मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए ये फण्ड कहाँ से लाएंगे? जाहिर है कि वे इस घाटे को पूरा करने के लिए नए तरह के टैक्स लगाएंगे या फिर मौजूदा करों की दर बढ़ाएंगे जिसका सीधा असर आम जनता पर ही पड़ेगा.


उल्लेखनीय है कि 18 साल से 44 साल तक के लोगों को फ्री वैक्सीन लगाने वाले बीस राज्यों में यह आठ ' राज्य हैं-बिहार, छत्तीसगढ़, छारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश. इनकी आर्थिक हालत ऐसी नहीं है कि ये मुफ्त वैक्सीनशन भी करें और साथ ही उसी बजट में स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार भी कर सकें. इस स्टडी के मुताबिक इन राज्यों को कोविशील्ड वैक्सीन के लिए 23 प्रतिशत और कोवैक्सीन के लिए 30 फीसदी तक का धन अपने स्वास्थ्य बजट से खर्च करना पड़ सकता है. चूंकि देश में फिलहाल कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीके का ही इस्तेमाल हो रहा है.तीसरी वैक्सीन आने और उसे खरीदने के बाद इनका बजट और भी गड़बड़ा सकता है.


दोनों देसी कंपनियों से वैक्सीन खरीद के पूरे गणित को देखा जाये, तो यही पता लगता है कि केंद्र सरकार ने अपना बोझा कम करने के लिए सारा भार राज्यों पर डालने के साथ ही इन कंपनियों को खासा मुनाफा कमाने का चतुराई भरा तरीका निकाला है.दुनिया के शायद ही किसी देश में ऐसा हुआ होगा कि वैक्सीन निर्माता कंपनी ने अपनी एक ही वैक्सीन को दो अलग-अलग कीमत पर वहां की सरकार को बेचा हो.लेकिन भारत में केंद्र सरकार के लिए एक कीमत है,तो राज्य सरकारों के लिए अलग.केंद्र सरकार को 150 रुपये प्रति डोज़ के हिसाब से वैक्सीन मिल रही है,जबकि राज्यों को कोविशील्ड वैक्सीन 300 रुपये प्रति डोज़ और कोवैक्सीन 400 रुपये प्रति डोज़ की दर पर खरीदनी पड़ रही है.


बड़ा सवाल यह भी है कि जब केंद्र सरकार ने 2021-22 के वित्तीय वर्ष में वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपये का बजटीय प्रावधान किया है.इसमें करीब 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रकह गया है.तो फिर राज्यों को इसे मुफ्त में उपलब्ध कराने में उसे क्या मुश्किल थी? केंद्र द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक 3 मई तक उसने अपने इस धन में से अब तक महज़ साढ़े 8 फ़ीसदी की ही रकम वैक्सीन पर खर्च की है.यानी करीब 32 हजार करोड़ रुपये अभी भी उसके पास बचे हैं.अगर केंद्र सरकार चाहे तो वह इन पैसों से 18 से 44 साल तक की पूरी वयस्क आबादी को मुफ्त में वैक्सीन लगाकर सामाजिक सुरक्षा का अपना दायित्व पूरा करके विपक्ष की जुबान पर भी ताला लगा सकती है. 


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