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Palestine: असम में रैली के दौरान लगे फिलिस्तीन के समर्थन में नारे, विवाद बढ़ा तो आयोजक ने दिया ये जवाब
Palestine: असम के सिल्चर के बराक घाटी में 1961 के भाषा आंदोलन के दौरान ग्यारह युवाओं के बलिदान की याद में स्मृति रैली का आयोजन किया गया था. इस दौरान फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाए गए.
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Assam News: असम के सिल्चर में आयोजित स्मृति रैली को लेकर उस समय विवाद खड़ा हो गया. जब रैली के दौरान फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाए गए. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 1961 के भाषा आंदोलन की याद में रैली आयोजित की गई थी. इस रैली में 'फ्री फिलिस्तीन' और 'स्टॉप किलिंग इन गाजा' के नारे लगाए गए.
दरअसल, शुक्रवार शाम को सिल्चर के बराक घाटी में 1961 के भाषा आंदोलन के दौरान ग्यारह युवाओं के बलिदान की याद में स्मृति रैली का आयोजन किया गया था. इसमें 32 संगठनों ने हिस्सा लिया. रैली के दौरान लोगों ने फ्री फिलिस्तीन और गाजा में मासूमों को मारना बंद करो के पोस्टर को प्रदर्शित किया गया.
क्या बोले सम्मिलित सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष?
सम्मिलित सांस्कृतिक मंच के अध्यक्ष बिस्वजीत दास ने कहा, ''1961 का भाषा आंदोलन सरकार के खिलाफ एक लड़ाई थी. जैसा उस आंदोलन में हुआ था, वैसा ही कुछ गाजा में हो रहा है. हम रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुयायी हैं. हमारा मानना है कि हम वैश्विक नागरिक हैं और हमें स्थानीय और वैश्विक दोनों मुद्दों के खिलाफ अपनी आवाज उठानी होगी. दास ने कहा कि हमें फिलिस्तीनियों और यूक्रेन में रूसी हमलों का सामना करने वालों के प्रति सहानुभूति है.''
कोरस संगठन ने की नारेबाजी
उन्होंने आगे कहा कि फिलिस्तीन के समर्थन में नारेबाजी कोरस संगठन ने की थी और इस नारेबाजी में बाकी लोग शामिल नहीं थे. उन्होंने कहा कि हमारे लिए भाषा आंदोलन को याद करने का क्षण सभी अन्याय के खिलाफ बोलने का अवसर है और हमने गाजा में निर्दोषों और बच्चों की हत्या के खिलाफ आवाज उठाई है. दास ने कहा कि रैली में भाग लेने वाले अन्य संगठन हमसे सहमत नहीं हो सकते हैं और हमने किसी को भी हमारा समर्थन करने के लिए मजबूर नहीं किया है.
लोगों ने की नारेबाजी की आलोचना
हालांकि, सोशल मीडिया पर लोगों ने इसकी आलोचना की और कहा कि भाषा आंदोलन का राजनीतिकरण करना सही नहीं है. सयान बिस्वास नाम की एक यूजर ने कहा कि अपनी मातृभाषा के प्रति मेरे मन में सम्मान है, इसलिए मैंने रैली में हिस्सा लिया, क्योंकि हम शहीदों के बलिदान को नहीं भूले हैं, लेकिन मैं अप्रासंगिक पोस्टरों या नारों का समर्थन नहीं करती.
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