कुपोषण से लेकर कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा तक, स्मृति ईरानी के सामने मंत्रालय में होंगी ये चुनौतियां
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में स्मृति ईरानी ने मेनका गांधी की जगह ली है जिन्हें इस बार मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया है. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उनके पास रहे वस्त्र मंत्रालय का प्रभार भी बरकरार रखा गया है.
नई दिल्ली: बच्चों में कुपोषण और उनकी शारीरिक वृद्धि बाधित होने से लेकर कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए नये नियम बनाने जैसी कई चुनौतियां हैं, जिनसे महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी को निपटना पड़ेगा. सोमवार को उनके पदभार संभालने की संभावना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट की सबसे युवा चेहरा ईरानी (43) को शुक्रवार को महिला एवं बाल विकास मंत्री बनाया गया. साथ ही, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उनके पास रहे वस्त्र मंत्रालय का प्रभार भी बरकरार रखा गया है.
स्मृति ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को शिकस्त दी. सूत्रों ने बताया कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में ईरानी का स्वागत करने की तैयारी शुरू हो चुकी है. उनके सोमवार को प्रभार संभालने की संभावना है. हालांकि, मंत्रालय में उनकी जूनियर मंत्री देबाश्री चौधरी ने कार्यभार संभाल लिया है. देबाश्री रायगंज (पश्चिम बंगाल) से सांसद हैं.
बाल देखभाल संस्थाओं का पंजीकरण पूरा करना और मानव तस्करी विधेयक को राज्यसभा से पारित कराना सुनिश्चित करने जैसे कई कार्य उनका इंतजार कर रहे हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में ईरानी ने मेनका गांधी की जगह ली है जिन्हें इस बार मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं किया गया है. मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल में ईरानी मानव संसाधन विकास मंत्री और सूचना एवं प्रसारण मंत्री भी रही थीं.
शैक्षणिक योग्यता को लेकर विवादों में रही हैं स्मृति ईरानी चुनावी हलफनामों में अपनी शैक्षणिक योग्यता के ब्योरे को लेकर भी विवादों में रही हैं. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान मानव संसाधन विकास मंत्रालय में दो साल के कार्यकाल के बाद उन्हें वस्त्र मंत्रालय में भेज दिया गया था. संभवत: उनके विवाद में आने के चलते उनके मंत्रालय में बदलाव किया गया था.
स्मृति ईरानी ने अपनी चुनावी राजनीति 2004 में शुरू की थी, जब वह लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली की चांदनी चौक सीट से चुनाव लड़ी थीं. हालांकि, तब वह कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल से हार गई थीं. इसके एक दशक बाद वह फिर से चुनावी राजनीति में लौटीं और एक बार फिर 2014 में अमेठी से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें राहुल गांधी से हार का सामना करना पड़ा, जो अब कांग्रेस अध्यक्ष हैं. इसके बाद उन्हें राज्यसभा भेज दिया गया और मंत्री बनाया गया था. इस आम चुनाव में भी उन्हें अमेठी सीट से चुनाव मैदान में उतारा गया और उन्होंने एक ऐतिहासिक जीत हासिल की.
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