Police Encounter: बदलापुर यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी अक्षय शिंदे के एनकाउंटर पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार, 25 सितंबर को कुछ तीखी टिप्पणियां कीं और महाराष्ट्र पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने कहा कि गोली मारकर हत्या की घटना को टाला जा सकता था और उसकी मौत की जांच निष्पक्ष तरीके से किए जाने का आग्रह किया.


बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि अगर पुलिस ने बदलापुर मामले के आरोपी अक्षय शिंदे को पहले काबू करने की कोशिश की होती तो गोलीबारी टाली जा सकती थी. साथ ही, यह मानना ​​बहुत मुश्किल है कि वह पुलिस अधिकारी से पिस्तौल छीनने और गोली चलाने में कामयाब हो गया. हाई कोर्ट ने पूछा कि आरोपी को पहले सिर में गोली क्यों मारी गई, हाथ या पैर में नहीं?   


बॉम्बे हाई कोर्ट की ओर से एनकाउंटर पर सवाल उठाए जाने के बाद देश में एक बार फिर से फेक एनकाउंटर को लेकर बहस तेज हो गई है. जानते हैं कि असली एनकाउंटर का क्या मतलब होता है और एनकाउंटर करना कितना कानूनी है और इसको लेकर क्या क्या नियम हैं?


क्या एनकाउंटर करना लीगल है?


नवभारत टाइम्स ने सुप्रीम कोर्ट के एक वकील अनिल कुमार सिंह श्रीनेत के हवाले से बताया कि आमतौर पर एनकाउंटर शब्द का मतलब होता है पुलिस या सिक्योरिटी फोर्स की कार्रवाई में आतंकवादी या अपराधी की मार गिराना. भारत में इस शब्द का इस्तेमाल अंग्रेजों के शासनकाल से हो रहा है. एनकाउंटर कानून की नजर में वैध नहीं है.


भारतीय संविधान में एनकाउंटर शब्द का उल्लेख नहीं है और इसे वैध ठहराने का प्रावधान भी नहीं है. हालांकि कुछ कायदे और कानून हैं जो पुलिस को ये ताकत देते हैं कि वो अपराधियों पर हमला कर सकती है और अपराधियों की मौत को जायज ठहराया जा सकता है. आपराधिक संहिता यानि कि सीआरपीसी की धारा 46 के मुताबिक, अगर कोई अपराधी खुद को गिरफ्तारी से बचाने की कोशिश करता है या फिर पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या फिर पुलिस पर ही हमला कर देता है तो ऐसी परिस्थिति में पुलिस उस अपराधी पर जवाबी कार्रवाई कर सकती है.


इसके अलावा पुलिस ट्रेनिंग में एनकाउंटर के दौरान अपराधी के पैर में गोली मारना सिखाया जाता है लेकिन कई बार ऐसी स्थिति होती है कि अपराधी की मौत हो जाती है. ऐसे में पुलिस अपने बचाव में कहती है कि गोली चलाने के दौरान मिसफायर हो गया और उसकी मौत हो गई. दरअसल, ऐसे मामलों में चूक की गुंजाइश बनी रहती है, जिसका फायदा पुलिस को मिलता है.


वहीं, कोर्ट का निर्देश का निर्देश है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत एनकाउंटर के दौरान तमाम नियमों का पालन किया जाना जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, सीआरपीसी की धारा 176 के तहत हर एनकाउंटर की मजिस्ट्रेट जांच जरूरी है. फेक एनकाउंटर पर पुलिस वाले को सस्पेंड या फिर उसके खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए.


प्राइवेट डिफेंस क्या होता है?


एनबीटी की रिपोर्ट के मुताबिक, आईपीसी, 1860 के सेक्शन 96-106 में प्राइवेट डिफेंस का जिक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि कुछ परिस्थितियों में एनकाउंटर को अपराध की कैटगरी में नहीं रखा जा सकता. ये कानून देश के हर नागरिक पर लागू होता है फिर वो चाहे पुलिसकर्मी हो या फिर आम आदमी. आत्मरक्षा में अगर किसी की जान चली जाती है तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता है.


क्या कहती है एनएचआरसी की गाइडलाइन?


1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के 1997 की गाइडलाइन्स के मुताबिक, सभी राज्य और संघ इलाकों के थाना प्रभारी को एनकाउंटर में मौत की जानकारी सही ढंग से दर्ज करनी चाहिए.


2. आरोपी की मौत के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए.


3. एनकाउंटर में पुलिस शामिल होती है तो ऐसे में इसकी जांच राज्य सीआईडी जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए.


4. इस तरह की जांच 4 महीने के भीतर पूरी होनी चाहिए और मुकदमों की त्वरित सुनवाई हो.


5. अगर एनकाउंटर फेक पाया जाता है तो मृतक के परिवारवालों को मुआवजा दिए जाने पर विचार होना चाहिए.


6. गैर इरादतन हत्या के मामलों में पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज होने पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.


7. पुलिस कार्रवाई में हुई मौतों के मामलों की मजिट्रेट जांच तीन महीने में कराई जानी चाहिए.


8. जिले के सीनियर पुलिस ऑफिसर या पुलिस अधीक्षक को 48 घंटे के भीतर एनकाउंटर की जानकारी एनएचआरसी को देनी चाहिए.


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