चुनावी मौसम में अखबार से लेकर टीवी और होर्डिंग्स तक, अलग अलग पार्टियों और प्रत्याशियों के विज्ञापनों की भरमार रहती है. राजनीतिक पार्टियों को रैली और विज्ञापनों पर खर्च करने के लिए व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाओं से फंडिंग मिलती है.


द इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक भारतीय स्टेट बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि इलेक्टोरल बॉन्ड का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ पांच शहरों, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, नई दिल्ली और चेन्नई में बेचा गया है. यानी देश की सबसे ज्यादा पॉलिटिकल फंडिंग इन्हीं पांच शहरों से हुई है. जबकि इलेक्टोरल बॉन्ड की कुल बिक्री का सिर्फ 2 फीसदी हिस्सा कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में बेचा गया है.


चुनावी बॉन्ड से 12,955.26 करोड़ रुपये जुटाए


स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के 4 मई को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत के बाद से देश में 12,979.10 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं. पिछले महीने यानी अप्रैल 2023 में हुई बिक्री की सबसे हालिया 26वीं किश्त राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड में 12,955.26 करोड़ रुपये भुनाए गए थे. 


एक्सप्रेस द्वारा की गई RTI आवेदन के जवाब में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने कहा कि 25 राजनीतिक दलों ने इस इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के तहत इन बॉन्डों को भुनाने के लिए बैंक खाते खोले हैं.


मुंबई में बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड का 26.16 फीसदी हिस्सा


एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार अब तक बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड का 26.16 फीसदी हिस्सा मुंबई में है. वहीं 2,704.62 करोड़ रुपये यानी 20.84 प्रतिशत हिस्सा कोलकाता में है, हैदराबाद में चुनावी बॉन्ड का 18.64 प्रतिशत हिस्सा है यानी कुल 2,418.81 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए हैं. नई दिल्ली में 1,847 करोड़ रुपये यानी 14.23 फीसदी और चेन्नई में 1,253.20 करोड़ रुपये यानी 9.66 प्रतिशत के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए. 


कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू 266.90 करोड़ रुपये यानी 2.06 फीसदी की बिक्री के साथ सातवें स्थान पर थी. इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री के आंकड़ों से साफ पता चल रहा है कि देश के अलग-अलग पार्टियों का पैसा मुख्य रूप से पांच बड़े शहरों से बेचा गया है. 


एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार अब तक भुनाए गए बॉन्ड की कुल राशि में से 64.55 फीसदी यानी 8,362.84 करोड़ रुपये नई दिल्ली में भुनाए गए, जहां राष्ट्रीय दलों के खाते होने की संभावना है. 


दिल्ली के बाद दूसरे स्थान पर है हैदराबाद. यहां 12.37 यानी 1,602.19 करोड़ रुपये भुनाए गए हैं. वहीं कोलकाता 10.01 फीसदी (1,297.44 करोड़ रुपये) के साथ तीसरे स्थान पर है, चौथे नंबर पर है भुवनेश्वर, यहां 5.96 फीसदी यानी 771.50 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाए गए हैं और चेन्नई में 5.11 फीसदी यानी 662.55 करोड़ रुपये भुनाए गए हैं.  


मुंबई में इलेक्टोरल बॉन्ड की कुल बिक्री का 26 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा था, लेकिन सभी चुनावी बांडों का केवल 1.51 प्रतिशत ही भुनाया गया है. 


जनवरी 2018 में लॉन्च की गई थी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम


चुनावी बॉन्ड की पेशकश साल 2017 में फाइनेंशियल बिल के साथ की गई थी. पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में साल 2018 के 29 जनवरी को चुनावी बॉन्ड स्कीम 2018 को अधिसूचित किया था.


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड 


यह एक वचन पत्र होता है जिसे किसी भी राज्य, शहर के व्यक्ति या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा से खरीद सकती है. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाला नागरिक या कॉर्पोरेट अपनी पसंद के हिसाब से किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को अपना ये बॉन्ड डोनेट कर सकते हैं. राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड को डिजिटल या चेक के रूप में खरीदा जाता है. ये बॉन्ड बैंक नोटों के समान होते हैं, जो मांग पर वाहक को देने होते हैं.


कैसे काम करता है इलेक्टोरल बॉन्ड 


इलेक्टोरल बॉन्ड का इस्तेमाल करना बेहद आसान है. ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं. उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिए की ये बॉन्ड 1,000, 10,000, 100,000 और 1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं. ये बॉन्ड आपको स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की कुछ शाखाओं पर मिल जाते हैं. कोई भी डोनर इस बॉन्ड को खरीद सकते हैं और बाद में वे इस बॉन्ड को किसी राजनीतिक पार्टी को दान में दे देते हैं. इसके बाद रिसीवर पार्टी इस बॉन्ड को एसबीआई की शाखा में इसे कैश में भुनवा सकता है. इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वेरिफाइड अकाउंट का इस्तेमाल किया जाता है. इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए मान्य रहता है.


क्यों जारी हुआ था इलेक्टोरल बॉन्ड


चुनावी फंडिंग की प्रक्रिया में सुधार करने और ज्यादा पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ने पिछले साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी. 2 जनवरी, 2018 को मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था. ये बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं यानी एक साल में चार बार जारी किए जाते हैं. 


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड की खूबी


इस बॉन्ड की खूबी ये है कि कोई भी डोनर अपनी पहचान को जगजाहिर किए बिना ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से एक करोड़ रुपए तक का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है और अपनी पसंद के पार्टी को चंदे के रूप में दे सकता है. इस व्यवस्था के तहत दानकर्ताओं की पहचान छुपी रहती है और इससे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. इस बॉन्ड से आम चुनाव में 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक पार्टी को ही चंदा हासिल हो सकता है.


इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत इसी दावे के साथ की गई थी कि इस प्रक्रिया के बाद से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, 'इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में 'साफ-सुथरा' धन लाने और 'पारदर्शिता' बढ़ाने के लिए लाई गई है.' सरकार ने इस योजना को "कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था" की ओर बढ़ रहे देश में ‘चुनावी सुधार’ के रूप में वर्णित किया था. 


हालांकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की मुख्य आलोचना यही होती रही है कि यह योजना मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है. बॉन्ड की आलोचना करने वालों का तर्क है कि चुनावी बॉन्ड की गुमनामी केवल व्यापक जनता और विपक्षी दलों तक की सीमित होती है. क्योंकि इस तरह के बॉन्ड सरकारी बैंक खासकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि विपक्षी दलों को कौन डोनेशन दे रहा है.


बीजेपी को फायदा मिलने का दावा 


आलोचकों का कहना है कि ये इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को पहुंचने वाला है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी. एडीआर का तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना से कॉरपोरेट और उद्योग जगत को जमकर फायदा हो रहा है और ऐसे बॉन्ड से मिले चंदे का 95 फीसदी हिस्सा बीजेपी को मिलता है.


इस बात को चुनाव आयोग ने भी स्वीकारा था कि चुनावी बॉन्ड से साल 2017-18 में सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को ही चंदा मिला है. बीजेपी को जहां 210 करोड़ रुपये का चंदा मिला वहीं बाकी सारे दल मिलाकर भी इस बॉन्ड से सिर्फ 11 करोड़ रुपये का चंदा हासिल कर पाए थे. 


इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर विपक्ष ने केंद्र पर साधा निशाना 


1. साल 2019 में आरटीआई से ये खुलासा हुआ था कि रिजर्व बैंक ने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने को लेकर सरकार को चेताया था. रिजर्व बैंक ने कहा था कि इस तरह के साधन जारी करने वाले अथॉरिटी को प्रभाव में लिया जा सकता है. जिसके कारण इस प्रक्रिया में पूरी तरह पारदर्श‍िता नहीं रखी जा सकती. रिजर्व बैंक के अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को कमजोर करेगा.  


2. साल 2019 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, "इलेक्टोरल बॉन्ड का 95 फीसदी पैसा बीजेपी को गया, क्यों गया, ये क्यों हुआ. 2017 के बजट में अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर जो रोक लगाई थी उसे ख़त्म कर दिया गया. अरुण जेटली ने यह रोक लगाई थी कि कोई भी कंपनी अपने लाभ के 15 फीसदी से अधिक ज्यादा पैसा नहीं लगा सकती. लेकिन अब उसे हटा लिया गया है. प्रधानमंत्री को इस पर जवाब देना होगा."


3. कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी भी इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी पर निशाना साध चुके हैं. उन्होंने कहा कि "इलेक्टोरल बॉन्ड एक बहुत बड़ा घोटाला है, देश को लूटा जा रहा है."


4. कांग्रेस नेता प्रह्लाद जोशी ने इस मुद्दे को शून्य काल में उठाते हुए कहा था, "शून्यकाल का इतिहास बन चुका है. भ्रष्टाचार का मुद्दा उस वक्त था तो हम वेल में आते थे. हमारी सरकार में भ्रष्टाचार का एक भी मुद्दा नहीं है आप शून्यकाल में अपना मुद्दा उठाइए. विपक्ष के पास इसे लेकर केवल राजनीति करनी है."


5. कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर केंद्र सरकार को घेर चुके हैं. उन्होंने साल 2019 में एक ट्वीट कर लिखा था, "नए भारत में रिश्वत और अवैध कमीशन को चुनावी बॉन्ड कहते हैं." इसके अलावा उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया भी था कि आरबीआई को दरकिनार करते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पेश किए, ताकि काले धन को बीजेपी के कोष में लाया जा सके. कांग्रेस ने योजना को तुरंत समाप्त करने की मांग भी की.


6. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा था, 'रिजर्व बैंक को दरकिनार करते हुए चुनावी बॉन्ड लाया गया ताकि कालाधन बीजेपी के पास पहुंच सके.'