नई दिल्ली: देश की आम जनता खाती कम, टैक्स ज्यादा देने के डर में जीती ज्यादा है. क्योंकि सरकार खुद तो कमाती नहीं, लेकिन आपकी कमाई से आपको तरह तरह की सुविधा देने के लिए टैक्स लगाती है.
भारत में मुख्य तौर पर दो तरह के टैक्स होते हैं डायरेक्ट टैक्स यानी वो टैक्स जो सरकारें सीधे आपसे लेती हैं और इनडायरेक्ट टैक्स यानी वो टैक्स जो अप्रत्यक्ष तौर पर आप सरकारों को देते हैं. ऐसे करीब पच्चीस टैक्स आप सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक के बीच में सरकार की जेब में भरते हैं.
सबसे पहले जानिए डायरेक्ट टैक्स क्या है?
- इनकम टैक्स- देश में अभी ढाई लाख रुपए से ज्यादा की सालाना आय पर इनकम टैक्स देना होता है.
- कैपिटल गेन टैक्स- इसके तहत अगर आपकी संपत्ति, शेयर, बॉन्ड्स या महंगी वस्तुओं को बेचकर आप मुनाफा कमाते हैं तो आपको ये टैक्स सरकार को चुकाना होता है.
- सिक्यूरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स- इसके तहत स्टॉक स्टॉक एक्सचेंज में हर ट्रांजेक्शनपर आपको टैक्स देना होता है.
- कॉर्पोरेट टैक्स- इसके तहत देश भर की कंपनियां अपनी आय पर सरकार को टैक्स देती हैं.
सरकार टैक्स के नाम पर जो आपकी जेब पर भार डालती है, उसमें इनडायरेक्ट टैक्स का भी बहुत बड़ा रोल होता है. जो आप सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से देते हैं.
इनडायरेक्ट टैक्स क्या है ?
-सामान बेचने पर सेल्स टैक्स चुकाते हैं. बोझ ग्राहक पर आता है.
-राज्य सरकारें इसके बाद वैल्यू एडेड टैक्स यानी VAT भी लगाती हैं.
-कहीं कोई भी सर्विस ली तो सर्विस टैक्स 15 फीसदी तक देना होता है.
-विदेश से आयात होकर आया सामान तो कस्टम ड्यूटी भरिए.
-देश में ही कुछ बनाया तो एक्साइज ड्यूटी भरिए.
-50 हजार से ज्यादा का तोहफा लेते हैं तो गिफ्ट टैक्स.
-इनकम टैक्स पर 3 प्रतिशत का शिक्षा सेस भी देते हैं.
सरकार का टैक्स सिस्टम ही काले धन बढ़ावा देने लगता है. इसकी गवाही देने वाले आंकड़े आज सरकार ने अपने आर्थिक सर्वेक्षण में भी बताए हैं.
2012-13 में जहां सिर्फ एक करोड़ 25 लाख लोगों ने ही टैक्स दिया था, यानी देश की सिर्फ एक फीसदी आबादी ने टैक्स भरा था. वहीं 2013-14 के आंकड़े बताते हैं कि 125 करोड़ की आबादी वाले देश में तीन करोड़ 65 लाख लोग ही टैक्स रिटर्न भरते हैं.
जिनमें 2.5 से पांच लाख की आमदनी वाले एक करोड़ 38 लाख लोग हैं. पांच लाख से 10 लाख की आमदनी वाले टैक्सपेयर 65 लाख हैं. लेकिन जैसे ही बात अमीरों की आती है तो पता चलता है कि 10 लाख से ज्यादा कमाने वाले सिर्फ 24 लाख लोग ही देश में टैक्सपेयर हैं. यहां हैरत इसलिए होती है क्योंकि हर साल तो देश में 25 लाख कारें ही बिक जाती हैं.
इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार को जहां आम आदमी ड़र के मारे अपनी गाढ़ी कमाई में से निकालकर टैक्स भर देता है, वहीं अमीर आदमी टैक्स सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर अपना धन काला कर लेते हैं.
दूसरे देशों के मुकाबले टैक्स भरने वाले देशों में भारत कहां ?
देश में हर सौ मतदाता में से सिर्फ सात मतदाता ऐसा होता है जो टैक्स दे रहा है. 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले मुल्कों के बीच टैक्स भरने वाले लोगों के आंकड़े पर भारत 13वें नंबर पर है. आंकड़े बताते हैं कि नॉर्वे एक ऐसा देश है जहां हर सौ वोटर में सौ टैक्सपेयर भी हैं. स्वीडन में प्रति सौ मतदाता में से 98 टैक्स जरूर भरता है. कनाडा में भी प्रति सौ वोटर में 95 आदमी टैक्स देता है. लेकिन भारत में प्रति सौ वोटर में सिर्फ 7 ही टैक्स देते हैं.
टैक्स इसलिए लगाया जाता है क्योंकि देश में जिनके पास पैसा नहीं, उन्हें टैक्स पेयर के पैसे से सरकार मदद कर सके. आपसे टैक्स लेकर देश में स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक विकास और सुरक्षा को मजबूत किया जाए. लेकिन फिर भी देश में गरीबी-अमीरी का फर्क जमीन आसमान की तरह क्यों हैं ?
इसी महीने गरीबी से जुड़े आंकड़ों का एनालिसिस करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था Oxfam की नई रिपोर्ट ने बताया कि देश के सिर्फ 1 फीसदी लोगों के पास ही देश का 58 फीसदी पैसा है. देश के 57 अरबपतियों के पास ही 70 फीसदी आबादी के बराबर की संपत्ति है.
सरकार सिर्फ टैक्स के नाम पर कैसे आम आदमी की उम्मीदों पर कैंची चलाती है. आज इसका भी एक उदाहण सरकार के ही आर्थिक सर्वेक्षण से पता चला है. क्रूड ऑयल का दाम जब भी गिरा केंद्र सरकार ने ये टोपी पहनाई कि राज्य सरकारें टैक्स कम कर लें लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण से नई कहानी पता चली.
पेट्रोल पर कितना खर्च करती है सरकार?
सरकार खुद बताती है कि जून 2014 से जब कच्चे तेल का दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिरना शुरु हुआ. जून 2014 से से लेकर दिसंबर 2016 तक सिर्फ पेट्रोल पर केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी 15 रुपए 50 पैसे से बढ़ाकर 22 रुपए 70 पैसे पहुंचा दी.
दो साल चार महीने के भीतर सरकार ने सिर्फ पेट्रोल पर 152 फीसदी टैक्स बढ़ाया है. जबकि इस दौरान अमेरिका और चीन ने भी छह फीसदी टैक्स ही पेट्रोल पर बढ़ाया है. अब सरकार का तुर्रा ये है कि पेट्रोल पर टैक्स बढ़ाकर भारत ने क्लाइमेट चेंज कंट्रोल किया है.
सरकार टैक्स का पैसा खर्च कहां करती है?
सरकार कहती है कि जो टैक्स वो जनता से लेती है उससे वो देश में गरीबों और दूसरी आम जनता के कल्याण की करीब 950 योजनाएं चलाती है. आपको बता दें कि सिर्फ केंद्र सरकार की तरफ से चलने वाली इन 950 योजनाओं पर देश की जीडीपी का करीब पांच फीसदी खर्च होता है. लेकिन सवाल तो ये है कि क्या वाकई देश में सबका इन 950 योजनाओं से कल्याण हो पा रहा है ?
देश के इस हिस्से में कम योजनाएं क्यों पहुंच रहीं हैं?
देश के वो जिले जहां चालीस फीसदी आबादी गरीबों की है, वहां कैसे आपके टैक्स से ली हुई रकम सरकारी योजनाओं में कम पहुंच रही है. गरीब आबादी वाले जिलों में मिड डे मील के तहत सिर्फ बीस फीसदी मदद मिल पा रही है. स्वच्छ भारत मिशन के तहत ऐसे पिछड़े जिलों में सिर्फ 24 फीसदी मदद पहुंच रही है. गरीबों के बच्चे पढ़ भी नहीं पा रहे हैं क्योंकि पिछड़े जिलों में सर्व शिक्षा अभियान के तहत सिर्फ 31 फीसदी मदद ही सरकार पहुंचा पा रही है.
सरकार ने की यूनिवर्सल बेसिक इनकम की सिफारिश
सरकार कहती है कि अगर जनता के टैक्स से मिलने वाली रकम कल्याणकारी योजनाओं की शक्ल में सब तक नहीं पहुंच पा रही है तो इसकी वजह अफसरों और प्रशासन की सुस्ती-लापरवाही है? ऐसे में अब जनता तक आपके टैक्स से मदद पहुंचाने के लिए सरकार नई कोशिश कर रही है. उसने जनता को मिल रही सब्सिडी को यूबीआई के कपड़े पहना दिए हैं.
आज आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम की सिफारिश की है. यानी जैसे अब तक सरकार खाने की गारंटी, पढ़ने की गारंटी देती आई है. वैसे ही सिफारिश है कि गरीबों को देश में न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाए. 2011-12 के आंकड़ों के मुताबिक देश में गरीबों की संख्या करीब 26 करोड़ 93 लाख थी.
शुरूआत में सबके लिए योजना लागू करने के बजाय सिर्फ उन जरूरतमंदों के लिए इसे लागू किया जा सकता है जिनके पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है. मिसाल के तौर पर शुरू में सिर्फ महिलाओं के लिए यूबीआई को लागू किया जा सकता है. एक अनुमान के मुताबिक शुरूआत में प्रति व्यक्ति 7620 रुपए सालाना यानी करीब 635 रुपए महीने की यूनिवर्सल बेसिक इनकम तय की जा सकती है.
सरकार को अनुमान है कि अगर ये शुरुआत में 75 फीसदी लोगों को दिया जाता है तो इस पर जो खर्च आएगा वो करीब जीडीपी का पांच फीसदी होगा. माना जा रहा है कि अगर इस योजना को लागू किया जाता है तो सरकार पहले से चल रही सब्सिडी वाली योजनाओं को कम करेगी.
देश में जो इस वक्त सरकार 650 कल्याणकारी योजनाएं चला रही हैं, फिर उनमें से कई को रोकना पड़ेगा. ताकि सबको यूनिवर्सल बेसिक इनकम के तहत एक निश्चित रकम दी जा सके.