नई दिल्ली: ज्योतिरादित्य सिंधिया का बगावत करना संयोग भर नहीं है. दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया लंबे समय से केंद्रीय नेतृत्व और राज्य में कमलनाथ सरकार के नजरअंदाज करने से परेशान थे. लगातार वह केंद्रीय नेतृत्व को इस बारे में बताते रहे, लेकिन पद तो दूर की बात है, सिंधिया को मान सम्मान से भी समझौता करना पड़ रहा था.


एक महीने पहले ही बीजेपी के संपर्क में आ गए थे सिंधिया
नौ मार्च को जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से आखिर बगावत कर दी तो उससे करीब एक महीने पहले से ज्योतिरादित्य सिंधिया और बीजेपी के बड़े नेता आपस में संपर्क में थे. गृह मंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के बड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और बीजेपी के महासचिव डॉ अनिल जैन के बीच 11 फरवरी से लगातार बैठकें हो रहीं थी. इन बैठकों में मध्य प्रदेश में सरकार पलटने की फार्मूले पर चर्चा हो रही थी.


यह वह समय था जब बजट सत्र का पहला हिस्सा खत्म हो रहा था. 11 फरवरी को गृह मंत्री अमित शाह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के फार्मूले पर सहमति दे दी थी और आगे की बातचीत के लिए धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा डॉ अनिल जैन की अगुवाई में एक टीम बना दी थी. टीम का नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा कर रहे थे.


21 फरवरी को 24 कांग्रेस विधायकों की सूची सौंपी
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 21 फरवरी को बीजेपी नेताओं को 24 कांग्रेस विधायकों की सूची सौंपी. इसके बाद लगभग यह तय हो गया कि अब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को टाटा बाय-बाय कहने के मूड में आ गए हैं. इन विधायकों से संपर्क का जिम्मा बीजेपी ने नरोत्तम मिश्रा, अरविंद भदौरिया, विश्वास सारंग को सौंपा गया. इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया के निकट सहयोगी मदद कर रहे थे.


ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेतृत्व से राज्य में प्रदेश अध्यक्ष का पद या राज्यसभा की सीट चाहते थे, लेकिन कमलनाथ दिग्विजय सिंह की जोड़ी सिंधिया को ना तो प्रदेश अध्यक्ष का पद और ना ही राज्यसभा की सीट देने के पक्ष में थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की इस मंशा कुछ समझ गए थे. इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थामने का मन भी बना चुके थे और इसके लिए 5 मार्च कि तारीख भी तय हो गई थी.


बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह को सौंपी जिम्मेदारी


बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा और भूपेंद्र सिंह तमाम कांग्रेस विधायकों को लेकर गुड़गांव पहुंचने लगे थे. यह कांग्रेस विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के थे इनमें एंदल सिंह कंसाना, जसवंत जाटव ,मुन्नालाल गोयल, रघुराज सिंह कंसाना, गिरिराज दंडोतिया, इमरती देवी, प्रद्दुम्न सिंह तोमर शामिल थे. इनके साथ ही बीएसपी के राम बाई और संजीव सिंह के अलावा समाजवादी पार्टी के राजेश शुक्ला उर्फ बबलू और निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा भी शामिल थे.


इन विधायकों को पांच मार्च की रात गुड़गांव की होटल ग्रैंड में ठहराया गया, लेकिन इस बड़े उलटफेर की खबर दिग्विजय सिंह को लग गई और और वे अपने बेटे जयवर्धन और एक अन्य मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री जीतू पटवारी के साथ गुड़गांव के होटल में जा धमके. कुछ कांग्रेस विधायक वहां से स्थिति बिगड़ती देख चुपचाप निकल लिए जबकि बीएसपी विधायक राम भाई को जयवर्धन सिंह और जीतू पटवारी अपने साथ लेकर आए ऑपरेशन कमल की यह पहली कोशिश विफल हो गई. लेकिन बीजेपी और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हार नहीं मानी सिंधिया के तेवर और कड़े हो गए इस बार उन्होंने जो योजना बनाई वह ऐसी थी कि किसी को कानो कान खबर नहीं हुई.


दिल्ली में हुईं शिवराज-सिंधिया की बैठकें


आठ मार्च और नौ मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, नरेंद्र सिंह तोमर, धर्मेंद्र प्रधान की कई दौर की बैठकें हुईं. यह बैठकें दिल्ली के गोल्फ कोर्स इलाके में गुप्त ठिकाने पर हुईं. इस दौरान यह सभी नेता अपने स्टाफ और सरकारी ड्राइवर को भी अपने घरों पर छोड़कर गुप्त ठिकाने पर मिलते थे.आठ मार्च की बैठक में ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा में भेजे जाने पर सहमति बन गई. इसके बाद आठ मार्च की रात को भिंड, ग्वालियर और मुरैना के सिंधिया खेमे के विधायकों को दिल्ली लाने का ऑपरेशन शुरू हुआ.


फिर जब दोबारा ऑपरेशन कमल शुरू हुआ तो तीन विधायकों प्रद्युम्न सिंह तोमर जो कि मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं. ओपीएस भदौरिया को ग्वालियर के जयविलास पैलेस से सबसे पहले अपने साथ लिया गया इस ऑपरेशन में नरोत्तम मिश्रा ने अहम भूमिका निभाई. इसके बाद मुन्नालाल गोयल, इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, सुरेश धाकड़, महेंद्र सिंह सिसोदिया जैसे तमाम दूसरे विधायकों को एक के बाद एक लेते हुए यह लोग दिल्ली की तरफ बढ़ लिए.


ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद संभाली कमान


इस बार इस ऑपरेशन की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद संभाल रखी थी और उनके पीए पाराशर खुद विधायकों के साथ कॉर्डिनेट कर रहे थे. आठ मार्च के ऑपरेशन की कानों कान खबर किसी को नहीं हुई. सुबह चार बजे के आसपास सिंधिया खेमे के 17 विधायक पलवल के पास एक रिसॉर्ट में शिफ्ट कराए गए. खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया सुबह पांच बजे इन विधायकों से मिलने उस रिसॉर्ट में पहुंचे. सिंधिया ने अपने खेमे के विधायकों के साथ दो घंटे लंबी चर्चा की. उन्होंने अपने कट्टर विधायकों की काउंसलिंग की. उन्हें समझाया कि क्यों इस सरकार से बाहर निकलना है और कमलनाथ की सरकार गिराना जरूरी है. आखिरकार सभी विधायक सिंधिया के साथ अपने नेता के साथ खड़े हो गए.


सिंधिया खेमें के विधायकों को पहुंचाया रिजॉर्ट


नौ मार्च की सुबह इन विधायकों को बेंगलुरु ले जाने के लिए तीन चार्टर प्लेन तैयार थे. पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इन चार्टर प्लेन को समय पर तैयार रहने के आदेश दिए थे. तकरीबन दोपहर के 12 बजे के आसपास यह विधायक एयरपोर्ट पहुंचकर चार्टर प्लेन में बैठ चुके थे. तीन बजे यह चार्टर प्लेन बेंगलुरु के एयरपोर्ट पर उतरे तो वहां बीजेपी के विधायक निंबा वाली ने इनका स्वागत किया और सीधे बेंगलुरु के बाहरी इलाके में फॉर्म स्प्रिंग रिसॉर्ट में ठहरा दिया गया.


इस दौरान शाम को पांच बजे के आसपास ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस नेतृत्व को अपना इस्तीफा दे चुके थे. इस्तीफा भेजने के बाद उनकी मुलाकात गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हुई. सब कुछ तय कार्यक्रम के मुताबिक ही चल रहा था. मध्य प्रदेश में सरकार गिराने का जो फार्मूला तय हुआ था, उसके तहत कम से कम 27 विधायकों को साथ लेने का फार्मूला तय हुआ था. इनमें से 22 विधायक सिंधिया खेमे के थे, बाकी पांच विधायक, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय हैं. नौ मार्च की रात ऑपरेशन कमल लगभग आधा रास्ता तय कर चुका था. अब सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया और विधायकों के इस्तीफे देने की औपचारिकता बची थी.


माधव राव सिंधिया की जयंति का दिन चुना


10 मार्च का दिन खास तौर पर इस ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इसलिए चुना, क्योंकि इसी दिन 75 साल पहले उनके पिता माधव राव सिंधिया का जन्म हुआ था. दस मार्च की सुबह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उसके बाद तय कार्यक्रम के मुताबिक बेंगलुरु में मौजूद सिंधिया खेमे के 19 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया. बाद में सिंधिया खेमे के तीन और विधायकों ने भी विधानसभा अध्यक्ष को अपने इस्तीफे भेज दिए तो इस तरह ऑपरेशन कमल अपने अंजाम तक पहुंचता हुआ दिखाई देने लगा.


बीजेपी की ओर से ज्योतिराज सिंधिया को राज्यसभा में भेजा जाएगा. इसके साथ ही साथ मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार बहुमत के अभाव में गिर जाएगी और बीजेपी एक बार फिर से मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज होगी मध्य प्रदेश की राजनीति में इतनी बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल सालों बाद हुई है.


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