G-20 Summit: बाली में हिन्दू आबादी है और जनसंख्या घनत्व के हिसाब से हिन्दू धर्म को मानने वाली सबसे अधिक आबादी बाली में रहती है. आंकड़ों के हिसाब से यहां हिन्दू आबादी का घनत्व 89% से अधिक है. खैर, यह तो हुई आंकड़ों की बात.
एबीपी न्यूज की टीम आपको दिखाते हैं कि आखिर आम बाली के घर और मंदिर कैसे होते हैं और वहां क्या आम हिन्दू घरों जैसे क्या कोई निशान नजर आते हैं? इस तलाश में हमारी टीम को एक घर को देखने की अनुमति मिली है. मुस्कुराते हुए हमें यह अनुमति दे दी गई. दरवाजे पर अल्पना की आकृति, साथ ही रखे हुई कनांग सारी या भेंट है. पत्तों की टोकरी में रखी हुई अलग-अलग रंग के फूलों की पंखुड़ियां. इन पंखुड़ियों और फूलों के रंगों के अपने मायने हैं. यानी पीले फूल महादेव के प्रतीक हैं, लाल ब्रह्मा और नीले और हरे भगवान विष्णु के लिए हैं.
इन भगवानों की है प्रतिमा
दरवाजे पर लहसुन और मिर्च लाल-काले धागे में बांधकर टांगी गई है. वैसे ही जैसे भारत में कई लोग नींबू और मिर्च बांधते हैं. दरवाजा खोलते ही सबसे पहले नजर आती है भगवान गणेश की प्रतिमा जिनके गले में रुद्राक्ष की माला है. साथ ही घर के अहाते में एक चबूतरे पर किसी पूजा की तैयारी हो रही है. छोटा हवनकुंड और लकड़ी भी तैयार है. हर घर में मौजूद मंदिर बाली के घरों और मोहल्लों की पहचान है. यहां कुछ बड़े और सार्वजनिक मंदिर है तो बड़ी संख्या निजी और पारिवारिक मंदिरों की है. यहां केवल परिवार के सदस्य ही पूजा करने आते हैं. सरस्वती पूजा और शिवरात्रि जैसे त्यौहार बाली में भी लोग मनाते हैं. साथ ही स्वस्तिक और ओम के चिह्न नजर आ जाते हैं.
भारत के मंदिरों से कैसे है अलग?
बाली के मंदिरों में भारतीय मंदिरों की तरह गर्भगृह और मूर्तियां नहीं हैं. बल्कि एक देवस्तम्भ है जिसकी पूजा की जाती है. साथ ही एक और विशेषता यह पिंजोर जो कि स्वस्तिक तोरण की तरह लगाए जाते हैं. यह बात और है कि यहां पूजा के तोरण केवल मंदिरों और उत्सवों में लगाए जाते हैं. जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए बाली के प्रमुख रास्तों पर भी पिंजौर लगाए गए हैं. बता दें कि जी-20 समिट में हिस्सा लेने के लिए पीएम मोदी सोमवार (14 नवंबर) को रवाना हो रहे हैं.
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