नई दिल्ली: गलवान घाटी में चीन से हुए संघर्ष को पूरा एक साल बीत गया है. इस मौके पर लेह स्थित वॉर मेमोरियल पर चीन से लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. खुद थलसेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने भी बहादुर सैनिकों को याद करते हुए कहा कि उनका शौर्य और पराक्रम हमेशा देश के दिलो-दिमाग में अंकित रहेगा.


पिछले साल आज ही के दिन यानि 15-16 जून की रात पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इस झड़प में सेना की 16 बिहार यूनिट (रेजीमेंट) के कमांडिंग ऑफिसर, कर्नल संतोष बाबू सहित कुल 20 भारतीय सैनिकों ने अपनी जान देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए न्यौछावर कर दिए थे. भारतीय सेना ने चीन के खिलाफ पूर्वी लद्दाख में चलाए गए इस अभियान को 'ऑपरेशन स्नो लैपर्ड' का नाम दिया था. खास बात ये है कि इस लड़ाई में एक भी गोली नहीं चली थी. लड़ाई में हाथा-पाई, डंडे और भालों का इस्तेमाल हुआ था. भारत ने वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों की याद में गलवान घाटी में एक वॉर मेमोरियल भी तैयार कराया.



लेह स्थित 14वीं कोर (फायर एंड फ्यूरी कोर) के चीफ ऑफ स्टाफ, मेजर जनरल आकाश कौशिक ने कोर के सभी सैनिकों की तरफ से गलवान के बलवानों को फूलमाला अर्पित की. थलसेना प्रमुख जनरल नरवणे ने अपने संदेश में कहा कि "लद्दाख की गलवान घाटी मेअ देश की अंखडता और संप्रभुता की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुर सैनिकों को पूरी सेना श्रद्धांजलि देती है. उनकी वीरता सदैव राष्ट्र की स्मृति में अंकित रहेगी.'


गलवान घाटी में हुई झड़प में चीन को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. लेकिन चीन ने इसका कभी खुलासा नहीं किया था. हालांकि करीब आठ महीने बाद इसी साल के फरवरी महीने ने अपने चार सैनिकों को मरणोपरांत बहादुर मेडल से नवाजा तब जाकर पता चला कि उसके सैनिक भी इस हिंसा में हताहत हुए थे. इनमें से एक को तो इस 'सदी के हीरो' की अवार्ड दिया. एक कर्नल रैंक के अफसर को गंभीर चोटें भी आई थीं, उसे भी वीरता मेडल से नवाजा गया. अमेरिका और रूस की इंटेलीजेंस और मीडिया रिपोर्ट्स पर यकीन करें तो गलवान घाटी में चीन के कम से कम 45 सैनिक मारे गए थे. हालांकि, वीरता मेडल 4-5 सैनिकों को ही दिया गया.


पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर भारत और चीन के बीच संबंध उस वक्त तनावपूर्ण हो गए जब कोरोना महामारी के दौरान अप्रैल-मई के महीने में चीन की पीएलए सेना ने युद्धभ्यास के बहाने बड़ी तादाद में सैनिकों, टैंक, तोप और दूसरे सैन्य साजो सामान को एलएसी के करीब तैनात कर विवादित इलाकों में घुसपैठ की कोशिश की. चीन ने एलएसी की फिंगर एरिया, गोगरा, हॉट ‌स्प्रिंग, कुरासंग नाला और डेपसांग प्लेन में घुसपैठ की कोशिश की. कई जगह भारत को पैट्रोलिंग करने से रोक लगा दी. लेकिन गलवान घाटी में हुई हिंसा से हालात और बिगड़ गए.



45 साल बाद भारत और चीन के बॉर्डर यानि लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल (एलएसी) पर ऐसा पहली बार हुआ था कि लड़ाई में दोनों देशों के सैनिकों की जान गई थी. आखिरी बार 1975 में चीन ने अरूणाचल प्रदेश से सटी एलएसी पर भारत के सैनिकों की घात लगाकर हत्या कर दी थी.


दोनों देशों के बीच तनाव चल ही रहा था कि 29-30 अगस्त की रात को भारतीय सेना ने 'प्री-एम्टिव कारवाई' करते हुए पैंगोंग-त्सो लेक के दक्षिण में 70-80 किलोमीटर लंबी कैलाश हिल रेंज पर अपना अधिकार जमा लिया. भारत के इल पलटवार से चीन भन्ना उठ. क्योंकि चीन (यानि तिब्बत) का स्पैंगूर गैप, मोलडो गैरिसन और रेचिन ग्रेजिंग लैंड जैसे इलाके सीधे भारतीय सेना की जद में आ गए थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच पहली बार हवाई फायरिंग भी हुई. 1975 के बाद पहली बार एलएसी पर फायरिंग की घटना सामने आई थी.


कैलाश हिल रेंज पर हुई भारतीय सेना की कारवाई के बाद पर चीन बातचीत की टेबल पर झुक गया और इसी साल 24 जनवरी को कोर कमांडर स्तर की बातचीत पर दोनों देश पैंगोंग-त्सो झील से सटे इलाकों से डिसइंगेजमेंट के लिए तैयार हो गए. इसके मायने ये थे कि चीनी सेना पूरा फिंगर एरिया खाली कर अप्रैल 2020 की स्थिति पर चली जाएगी. उसी तरह भारतीय सेना भी कैलाश हिल रेंज खाली कर चुशुल के करीब पहुंच जाएगी. लेकिन पहले चरण के सफल डिसइंगेजमेंट के बाद चीन की पीएलए सेना अब पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है.


पूर्वी लद्दाख से सटी एलएसी पर पैंगोंग-त्सो झील के उत्तर में फिंगर एरिया और दक्षिण में कैलाश हिल रेंज पर तो डिसइंगेजमेंट हो गया है, लेकिन हॉट-स्प्रिंग, गोगरा, डेपसांग प्लेन इत्यादि इलाके अभी भी ऐसे हैए जहां तनाव बरकरार है. अभी भी दोनों देशों के करीब 50-50 हजार सैनिक, टैंक, तोप, मिसाइल, फाइटर जेट्स फॉरवर्ड लोकेशन पर तैनात हैं.


भारत और चीन की सेनाओं की एग्रेसिव पोजिशनिंग को देखते हुए ही अमेरिका ने विवाद को इस दशक का सबसे बड़ा बॉर्डर विवाद घोषित किया है. दोनों देशों के बीच 11 दौर की कोर कमांडर स्तर की बातचीत हो चुकी है (9 अप्रैल). लेकिन 12वें दौर को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है. माना जा रहा है कि अब दोनों देशों के फील्ड कमांडर्स स्थानीय विवादों को सुलझाने पर बातचीत कर सकते हैं. लेकिन फिलहाल इसपर कोई फैसला नहीं लिया गया है. दोनों देशों के डिप्लोमेट्स भी तनाव को कम करने और विवाद सुलझाने के लिए लगातार बातचीत कर रहे हैं.


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