नई दिल्ली: हर साल देश में कई किताबें छपती हैं. कुछ लोगों को पसंद आती हैं तो वहीं कुछ पाठकों को उतना प्रभावित नहीं कर पाती. हालांकि कई ऐसी किताबें भी होती हैं जो आने के साथ ही विवादों या सवालों के घेरे में आ जाती और फिर उस किताब के लेखक से अनगिनत सवाल किए जाते हैं. हाल में आए शशिकांत मिश्र की नए उपन्यास ‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’ के साथ भी यही हो रहा है.
‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’ की पहली झलक आते ही ये नॉवल चर्चा का विषय बन गई है. दरअसल इसके कवर पेज को देखकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. पहले आपको बता दें कि इस नॉवल के कवर पेज पर क्या है. ‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’के कवर पेज पर देश की संसद की तस्वीर है. अब आप कहेंगे इसमें क्या दिक्कत है, तो हम आपको बता दें कवर पेज पर केवल संसद की तस्वीर नहीं बल्कि इसके साथ संसद के आगे खड़ा एक शख्स भी नजर आ रहा है जिसका चेहरा नहीं दिख रहा लेकिन पीछे से देखने पर भी उसकी आकृति विपक्ष के एक बड़े नेता से काफी हद तक मिल रही है. इतना ही नहीं उस शख्स के आगे है एक नीला समंदर है और उसके पार एक नीली आंखों वाली विदेशी महिला है.
अब कवर के बारे में जान लेने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि आखिर इस किताब की इतनी चर्चा क्यों हो रही है. हालांकि लेखक की तरफ से आपकी कल्पनाओं को पंख न लगे इसके लिए साफ शब्दों में डिस्क्लेमर दी गई है. उपन्यास के लेखक शशिकांत मिश्र की तरफ से साफ कहा गया है कि किताब पूरी तरह काल्पनिक है और इसका किसी व्यक्ति विशेष या घटना विशेष से रिश्ता नहीं है लेकिन उपन्यास के कवर पेज को देखकर पाठक के मन में एक चित्र तो जरूर बन जाती है.
हालांकि इन किताब के कवर को और नाम को लेकर हो रही चर्चाओं के बीच इस उपन्यास के लेखन शशि कांत मिश्र का कहना है कि उपन्यास का नाम ‘गांधी : ए पॉलिटिकल लव स्टोरी’ रखने की सबसे बड़ी वजह मार्केटिंग है. जो दिखता है, वही बिकता है. मेरी भी दिली चाह है कि मेरा उपन्यास लोगों को दिखे, खूब बिके इसीलिए मैंने ये नाम रखा है.दूसरी और कोई वजह नहीं है. ”
उपन्यास का मुख्य किरदार
उन्यास को लेकर लेखक चाहे कितने भी दावे कर रहे हों कि यह काल्पनिक है लेकिन इसकी कहानी कुछ और बयां कर रही है. इस उपन्यास का कथानक हिंदुस्तान के सियासी राजकुमार मुकुल गांधी की हैं. वह डेमोक्रेटिक मिजाज के हैं और स्वाभाव से सरल, संस्कारी. वो राजनीति में दिलचस्पी नहीं लेता. उसकी ख्वाहिश तो बस यही है कि सात समंदर पार की अपनी राजकुमारी के साथ एक खुशहाल जिंदगी बिताए.
हालांकि परिस्थियों के आगे मजबूर इस उपन्यास का मुख्य किरदार आखिरकार पारिवारिक विरासत संभालने राजनीति में आ ही जाता है. इसके बाद उस राजकुमार की जिंदगी में चाहे प्यार हो या राजनीति एक से बढ़कर एक दिलचस्प मोड़ आते हैं. अब वो दिलचस्प मोड़ क्या हैं ये तो आपको उपन्यास पढ़कर ही समझ आएगा.
लेखक एक अनुभवी पत्रकार हैं
इस उपन्यास के लेखक शशिकांत मिश्र एक पत्रकार के तौर पर पिछले चार लोकसभा चुनाव को कवर कर चुके हैं तो उनकी उपन्यास में कितनी गहराई होगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. इस उपन्यास में पिछले 20 साल की जिन राजनीतिक प्रसंगों का जिक्र किया गया है, वो काल्पनिक होते हुए भी तथ्यों पर आधारित दिख रहा हैं. कुछ चीजें हकीकत तो कुछ फसाना कह सकते हैं.
कहते हैं लेखक वही है जो अपनी बात कह भी दे और सीधे तौर पर कहे भी नहीं. इस मामले में लेखक शशिकांत मिश्र खरा उतरते हैं. उन्होंने एक कहानी बिना किसी का नाम लिखे अपने उपन्यास में कह दी. हालांकि उपन्यास के कवर पेज और नाम के साथ नायक मुकुल के नाम पर जमकर बहस हो रही है. इसके साथ ही 'गांधी' उपनाम पर भी चर्चा हो रही है. भारतीय राजनीति में 'गांधी' उपनाम हमेशा से चर्चा का विषय रही है. बहरहाल इस उपन्यास को अगर आप पड़ना चाहते हैं तो आप इसे अमेजन किंडल पर से बुक करवा सकते हैं. इसकी कीमत कीमत 100 रूपया है.
इससे पहले लेखक शशिकांत मिश्र की दो उपन्यास-‘नॉन रेजिडेंट बिहारी’ और ‘वैलेंटाइन बाबा’ भी काफी चर्चित रही है.