नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता आंदोलन को आम आदमी के जीवन का हिस्सा बनाने में जुटे हुए हैं. 2014 में अपने दफ्तर में कामकाज संभालने के बाद उनके मन में कुछ मुद्दे प्राथमिकता के आधार पर और युद्ध स्तर पर लागू करने का विचार था. शुरुआत में ऐसे चार पांच प्रमुख मुद्दे उनके मन में थे, लेकिन पीएम मोदी ने सबसे पहले स्वच्छता को राष्ट्रीय आंदोलन बनाने के लिए अभियान लांच किया. इस साल मोदी, स्वच्छता अभियान में एक नई पहल को जोड़ने जा रहे हैं. मोदी ने आह्वान किया है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इस्तेमाल करना बंद करें. हालांकि सरकार सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर कोई रोक लगाने नहीं जा रही है बल्कि जन जागरण के ज़रिए सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग को खत्म करना चाहती है. पीएम मोदी ने इसकी शुरुआत अपने दफ्तर से की है. अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने बोतल बन्द पानी कर बजाय कांच की बोतल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
ये शुरुआत ठीक उस तरह की ही है जैसे स्वच्छ्ता अभियान की शुरुआत उन्होंने खुद हाथ में झाड़ू पकड़ कर की थी. साल 2014 में मोदी दिल्ली के मंदिर मार्ग थाने में अचानक पहुंच गए थे औए झाड़ू से थाने के अहाते में पड़ी गंदगी की सफाई की थी. ये प्रयास उनके स्वच्छता आंदोलन को जमीन पर उतारने का संकल्प को दिखाता हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि स्वच्छता से ना केवल शरीर स्वच्छ होता है बल्कि मन भी स्वच्छ होता है और स्वच्छ तन और मन मजबूत देश का आधार बनता है. प्रधानमंत्री मोदी ने 2 अक्टूबर को खास तौर पर इस अभियान की शुरुआत करने के लिए भी इसलिए चुना, क्योंकि महात्मा गांधी भी स्वच्छता को जीवन चर्या का सबसे हिस्सा बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे थे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचपन बेहद गरीबी में बीता. बचपन में उनके पास स्कूल जाने के लिए जूते तक नहीं हुआ करते थे. नंगे पांव वे स्कूल जाया करते थे. पैरों में कई बार कांटे चुभ जाते थे. कंकड़ लग जाते थे, जिससे पैरों में घाव हो जाते थे. कई बार घाव गहरा होता था तो खून बहता रहता था. बाल नरेंद्र, घाव पके नहीं इसलिए स्वच्छता का ख्याल रखते थे. हाथ - पाव धोकर साफ करते रहते थे. एक बार नरेंद्र मोदी के घर उनके मामा आये. वे अपनी बहन और नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन का हालचाल लेने आये थे. उन्होंने देखा कि छोटे नरेंद्र के पास जूते नहीं हैं और वो नंगे पांव ही स्कूल जा रहे हैं. उसी शाम, बाल नरेंद्र के मामा उन्हें बाजार लेकर गए और उन्हें केनवास शूज़ दिलवा लाये. नरेंद्र, पहली बार जूते पहन कर बहूत खुश थे. कैनवास शूज सफेद रंग के कपड़े के होते हैं. नए जूते सफेदी की चमकार मार रहे थे.
बचपन से ही स्वच्छता के प्रति सजग नरेंद्र मोदी की ये खुशी ज़्यादा दिन नही टिकी. सफेद जूते जल्द ही गंदे और काले पड़ने लगे. अब नरेंद्र इन जूतों को चमकाने का कोई उपाय सोचने लगे. उनके मन में एक तरकीब सूझी. कक्षा में उनके शिक्षक ब्लैक बोर्ड पर लिखने के लिए चौक का इस्तेमाल करते थे. नरेंद्र के मन में छोटी टूटी हुई और व्यर्थ फेंकी गई चौक से अपने जूते साफ करने और सफेद करने की तरकीब आई. बाल नरेंद्र उस दिन स्कूल की छुट्टी होने के बाद कक्षा में ही रुके रहे. सभी बच्चे अपने घर जाने के लिए कक्षा से निकल चुके थे, लेकिन नरेंद्र कक्षा में ही बैठे रहे। जब, सब बच्चे स्कूल से अपने घर की तरफ रवाना हो गए तब नरेंद्र ने उन छोटे, टूटी हुई चौक के टुकड़े को उठाकर अपनी जेब में रख लिया। नरेंद्र सरपट अपने घर की ओर बढ़े जा रहे थे. घर जल्दी पहुंच कर जूते चमकाने के विचार से खुश थे, लेकिन आज घर का रास्ता खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था. खैर घर जाकर बाल नरेंद्र ने अपने जूते उतारे और उसके बाद चौक के टुकड़ों को कैनवास शूज पर रगड़ना शुरु कर दिया. जूतों पर लगी गंदगी सफेदी में तब्दील हो गई और जूते साफ और चमकदार दिखने लगे. बाल नरेंद्र के चेहरे पर अब खुश साफ दिखाई दे रही थी. नरेंद्र मोदी का यह प्रयास केवल जूतों को साफ करने या सफेद रखने भर का नहीं था. यह प्रयास स्वच्छता के प्रति उनकी दिलचस्पी और झुकाव दिखाता है. इसके बाद बाल नरेंद्र मोदी जब भी अपने जूते गंदे पाते उन पर बेकार पड़े चौक के टुकड़े रगड़ कर उन्हें चमका लेते. अपनी चीजो को साफ रखने की इस युक्ति से बाल नरेंद्र ने स्वच्छता का पहला पाठ पढ़ा.
बाल नरेंद्र ने इसी तरह से स्वच्छ और साफ-सफाई के अतिरिक्त अनुशासन और करीने से कपड़े पहनने की तरकीब भी ढूंढ निकाली थी. बाल नरेंद्र स्कूल गणवेश और कपड़ो को प्रेस करके पहनना पसन्द करते थे, लेकिन उनके घर में इतने पैसे नहीं थे कि कपड़ों को प्रेस करवा सकें. गरीबी की मार ने एक और खोज करवा दी. बाल नरेंद्र ने इस बार पानी, पीने और रखने के काम आने वाले बर्तन लोटे को हथियार बनाया, घर में मां खाना बनाने के लिए लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल करती थी. शाम को मां जब खाना पकाने के बाद सिगड़ी को बुझाने वाली थी, तभी नरेंद्र ने मां से कुछ कोयले के अंगारे मांगे, मां ने पूछा तुम क्या करोगे इन अंगारों का, इससे तो जल जाओगे. लेकिन नरेंद्र ने कहा, मां मुझे कोयले के अंगारे चाहिए ही. मां समझ गयी थी, कि खोजी नरेंद्र के मन में कुछ युक्ति चल रही है. मां ने कोयले के अंगारे लोटे में दे दिए. जलते हुए कोयले के अंगारे भरने से लोटा गर्म हो गया. जब लोटा गर्म हो गया तो उसे पकड़ना मुश्किल हो गया.अब बाल नरेंद्र ने रसोई में गरम बर्तन पकड़ने में काम आने वाली संड़सी से लोटे को पकड़कर कमीज पर प्रेस करना शुरू कर दी. मां ये देख कर मन ही मन मुस्कुरा ली.
इस तरह गुजले हुए कपड़े की कमीज़ पहनने के बजाय, करीने से प्रेस की हुई कमीज मोदी पहनने लगे. बाल नरेंद्र की प्रवत्ति अनुशासन प्रिय थी. राजनीति में रहते हुए मोदी रोज के आचार-विचार और व्यवहार में स्वच्छता को निजी रूप से न केवल महत्व देते थे बल्कि अपने आसपास के वातावरण को और लोगों को भी स्वच्छ रहने की प्रेरित करते रहते थे. मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने स्वच्छता को राज्य में लागू करने के लिए नगर निगमो को मज़बूत किया. सरकारी दफ्तरों में स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया. लेकिन असली काम अभी होना बाकी था. साल 2014 में जब मोदी देश के प्रधानमंत्री नियुक्त हुए तो स्वच्छता को जन आंदोलन बनाने का बीड़ा नरेंद्र मोदी ने उठाया.
आज इस बात को 5 साल हो चुके हैं. देश में कई शहर अपनी साफ-सफाई और स्वच्छता के लिए विश्व के नक्शे पर उभरे हैं. लोग साफ-सफाई के लिए जागरूक हुए हैं. ये मोदी के अभियान का ही असर हैं कि नई पीढ़ी खासतौर पर छोटे बच्चे स्वच्छता के लिए आस-पड़ोस और बड़े-बुजुर्गों को भी नसीहत देते नजर आने लगे हैं.
ये एक जन आंदोलन के लिए बड़ी उपलब्धि है. आज के बच्चे कल का भविष्य होते हैं और देश का भविष्य भी ऐसे बच्चे बन रहे हैं जो स्वच्छता को सबसे ज्यादा अहमियत देते दिखाई दे रहे हैं. कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 5 साल पहले स्वच्छता को जन आंदोलन बनाने का जो बीड़ा उठाया था उसमें वे सफल होते नजर आ रहे.
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