Gandhi Jayanti 2023: दुनिया में जहां भी कहीं अहिंसा, शांति, मानवता और मानवीय मूल्यों की बातें होती हैं, वहां एक ही व्यक्ति का उदाहरण दिया जाता है, वह हैं मोहनदास करमचंद गांधी. एक ऐसा नाम जो व्यक्ति से विचारधारा में तब्दील हो चुका है. दुनिया के आज तक के सबसे तेज दिमाग आइंस्टीन से लेकर चर्चिल तक और नेल्सन मंडेला से लेकर मार्टिन लूथर किंग तक दुनिया भर की तमाम हस्तियों की जिस विचारधारा ने जिंदगी का नजरिया दिया, उनकी 154वीं जयंती आ रही है.
2 अक्टूबर 1869 को मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. एक धोती में खुद को समेटकर जीवन भर सविनय अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले इस महात्मा ने पूरी दुनिया को सत्य और परोपकार का वो रास्ता दिखाया है जो पूरी मानव जाति के कल्याण के लिए हमेशा प्रासंगिक बने रहेगा. समय बदला है और नैतिक शिक्षा का स्तर भी. आज नई पीढ़ी को यह समझ लेना होगा कि बंदूक उठाकर किसी को भी गोली मार देना आसान है, लेकिन जिसकी सत्ता पूरी दुनिया में थी उसके बराबर बैठकर उसकी आंखों में आंखें डाल कर यह कहना, "यह देश हमारा है, आपको छोड़कर जाना ही होगा", बहुत बड़ी हिम्मत और अदम्य आत्मविश्वास की जरूरत होती है.
बापू जब भी अंग्रेज अधिकारियों से यह बात करते थे तो उन्हें अपने पीछे पूरा देश खड़ा हुआ नजर आता था और ऐसा करने के लिए वह किसी हथियार का सहारा नहीं लेते थे, न ही किसी झूठ की राजनीति का. बल्कि सत्य और अहिंसा के जरिए पूरे देश को उन्होंने आजादी की राह में ऐसे अपने साथ खड़ा कर लिया था जैसे पूरा देश कड़ी कड़ी जुड़ गया हो.
आइंस्टीन ने कहा था आने वाली पीढ़ियां यकीन नहीं करेंगी...
इसीलिए दुनिया के सबसे तेज वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि आने वाली पीढ़ियां यह मुश्किल से भरोसा करेंगी कि हाड़ मांस के शरीर वाला ऐसा शख्स कभी इस धरती पर रहा था. केवल सत्य और अहिंसा जैसे सर्वोच्च मानवीय मूल्यों को अपने जीवन का आदर्श बनाकर उसे अंतिम सांस तक क्रियान्वयन करना, किसी सामान्य मानव के बस की बात नहीं थी. इसीलिए बापू महात्मा थे. आज हम आपको महात्मा गांधी के जीवन और संघर्षों के कुछ ऐसे किस्से बताते हैं, जिन्होंने ऐसे अंग्रेजी हुकूमत का तख्ता पलट दिया जिनके राज में सूरज नहीं डूबता था.
दक्षिण अफ्रीका से आंदोलन का बिगुल फूंका
अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने भारत से नहीं बल्कि दक्षिण अफ्रीका से की थी. यहां अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को उन्होंने बहुत करीब से महसूस किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन की अपनी राह चुन ली. उन्हें कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा. उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने और फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था. गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया. उनके नेतृत्व में सत्य और अहिंसा का रास्ता अख़्तियार कर लोग एकजुट होते गए और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन तेज होता गया.
बापू ने लंदन से कानून की पढ़ाई की थी इसलिए वह अंग्रेजी शासन के कानूनी दावपेच के मर्मज्ञ भी थे. अंततः वर्ष 1894 में "नटाल इंडियन कांग्रेस" नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे. दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों के लंबे सफर के बाद वे वर्ष 1915 में वापस भारत लौट आए थे.
भारत लौटते ही कांग्रेस की कमान
दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों की नींद उड़ा कर महात्मा गांधी भारत लौटे. उनके नेतृत्व की चर्चा तब पूरी दुनिया में हो रही थी. भारत में उनका शानदार स्वागत जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने किया. गांधी जी ने एक राष्ट्रवादी, सिद्धांतवादी और आयोजक के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया था. वर्ष 1915 में गांधी भारत आए. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने से पहले उन्होंने पूरे देश को समझने का निर्णय लिया और भारत के गांव-गांव का दौरा किया. उस दौर में फटेहाल, भूखे, निरिह किसानों से लेकर निरक्षर वर्ग तक बापू से इतना प्रभावित था कि उनके पीछे पूरा देश चल पड़ा था.
सत्याग्रह की राह अपनाई
गांधी जी ने इतने बड़े भारत में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अचूक रणनीति अपनाते हुए सत्याग्रह की राह अपनाई. अहिंसा के रास्ते को अख्तियार करते हुए अंग्रेजी हुकूमत की ओर से हर तरह के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ अहिंसक आंदोलन की शुरुआत की गई. गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है. इसके बाद बापू ने स्वदेशी को बढ़ावा देना शुरू किया.
बिहार के चंपारण में नील किसानों का साथ देने के लिए कर नहीं देने के आंदोलन की शुरुआत की. इसके बाद खादी का उपयोग और विभिन्न जरिए से स्वदेशी को बढ़ावा देना शुरू किया. दांडी मार्च कर नमक बनाना अंग्रेजों पर निर्भरता को नकारने का बिगुल फूंकना था, जिसमें पूरा देश उनके साथ खड़ा रहा. इसके लिए वह कई बार जेल गए लेकिन अंग्रेज उनके खिलाफ सख्त कदम नहीं उठा पाए क्योंकि उनका रास्ता अहिंसा का था.
मूल्य बोध की शिक्षा पर देते थे जोर
महात्मा गांधी न केवल देश को आजाद करने की लड़ाई लड़ रहे थे बल्कि नैतिकता और मूल्यों से भरे राष्ट्र निर्माण का पथ भी प्रशस्त कर रहे थे. उनका मानना था कि किसी देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक प्रगति अंततः शिक्षा पर निर्भर करती है. उनके अनुसार, छात्रों के लिए चरित्र निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह उचित शिक्षा के अभाव में संभव नहीं है. ऐसे ही महात्मा गांधी के अनेक किस्से हैं जिन्होंने बिना किसी हिंसा या अप्रिय शब्दों का इस्तेमाल किए, पूरी दुनिया को मानवता का रास्ता दिखाया है.
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