Ganesh Chaturthi 2021: महाराष्ट्र का सबसे बड़ा त्यौहार है गणेश उत्सव. हर साल अगस्त या सितंबर के महीने में हिंदू तिथि के मुताबिक गणेश उत्सव की शुरूवात भाद्रपद महीने की चतुर्थी को होती है. एक वक्त था जब गणेशोत्सव बड़े पैमाने पर सिर्फ राजसी घरानों में ही मनाया जाता था लेकिन आज ये आम लोगों का त्यौहार बन गया है.
महाराष्ट्र के हर गली मोहल्ले में सार्वजनिक गणेश उत्सव के पंडाल लगते हैं. आज हम जानेंगे कि गणेश उत्सव खास लोगों से आम लोगों का त्यौहार कैसे बना और कैसे इसकी लोकप्रियता साल दर साल बढ़ती जा रही है. भारतीय समाज में धर्म एक अहम भूमिका निभाता है. लोगों को एक साथ लाने के लिए, उन्हें संगठित करने के लिये ये एक बड़ा माध्यम है.
बाल गंगाधर तिलक ने धर्म को आधार बनाकर गणेशोत्सव की शुरूआत की
ये बात लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बखूबी जानते थे. अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिये और सामाजिक मुद्दों पर उन्हें एकसाथ लाने के लिये तिलक ने धर्म को आधार बनाया और सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की. साल था 1893. तिलक के आव्हान पर पुणे के दगडू शेठ हलवाई ने और मुंबई के केशवजी नाईक चाल के निवासियों ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरूआत की.
गणेशोत्सव के दस दिनों के दौरान अगर आप दक्षिण मुबई के गिरगांव इलाके की केशवजी नाईक चाल में दाखिल होंगे तो मान लीजिये कि आप टाईम मशीन में सवार हो गये हैं. ऐसा लगेगा कि वक्त यहां बीते 128 साल से ठहर गया है. इसके पीछे कारण ये है कि यहां आज भी सब कुछ वही है जो 128 साल पहले था. मध्यमवर्गीय मराठीभाषियों की ये चाल तो वैसी है ही यहां गणेशउत्सव आज भी ठीक उसी तरह से मनाया जाता है जैसे ठीक 128 साल पहले मनाया गया था.
गणपति की प्रतिमा हूबहू आज भी वैसी ही आती है जैसी 128 पहले यानी 1893 में आई थी. भले ही गणेश उत्सव आज काफी चमक दमक वाला और खर्चीला त्यौहार बन गया हो, लेकिन केशवजी नाईक चाल में ये त्यौहार अब भी सादगी से मानाया जाता है. गणपति प्रतिमा किसी आधुनिक वाहन पर नहीं बल्कि पारंपरिक पालकी में आती है. लोकमान्य तिलक के विचारों और उनके आदर्शों को याद करते हुए पंडाल में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.
तो मुंबई में केशवजी नाईक चाल से गणेश उत्सव की शुरूआत तो हो गई लेकिन आखिर वहां से शुरू होकर ये मुंबई का सबसे बडा त्यौहार कैसे बन गया? इसका जवाब है मुंबईवालों का उत्सवप्रेमी होना. जी हां मुंबई वाले खुश होने का, जश्न मनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते. मुंबई की तेज रफ्तार, भागती दौड़ती जिंदगी इतनी तनाव भरी है कि ये त्यौहार ही शहर के बाशिंदों को ब्रेक देते हैं. सुकून के उत्साह के आनंद के पल देते हैं. यही वजह है कि चाहे जन्माष्टमी पर मानव पिरामिड बनाकर दही हांडी का त्यौहार हो, नवरात्रि के दौरान खेली जानी वाली डांडिया हो या फिर गणेशोत्सव, मुंबई वालों को इनका साल भर इंतजार रहता है.
पंडालों में विराजमान गणपति के दर्शन के लिये लोग आते हैं
आज मुंबई और आसपास के शहरों में दस हजार के करीब सार्वजनिक गणेश उत्सव पंडाल हैं जो इस त्यौहार की लोकप्रियता की तस्दीक करते हैं. लेकिन इनमें से भी कुछ पंडाल ऐसे हैं जो देशभर में विख्यात हो चुके हैं और भारत के कोने-कोने से लोग इन पंडालों में विराजमान गणपति के दर्शन के लिये आते हैं. इनमें एक पंडाल जो सबसे चर्चित है वो है लालबाग के राजा को पंडाल. लालबाग के राजा मध्य मुंबई के चिंचपोकली इलाके में विराजते हैं. इनके बारे में भक्तों के बीच मान्यता है कि ये मन्नत पूरी करते हैं. यहां एक कतार उन लोगों की भी लगती है जो मन्नत पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाने आते हैं. कुछ साल तो लालबाग के राजा की कतार 4 से 5 किलोमीटर लंबी हो जाती है और उनकी एक झलक पाने के लिये 10 घंटे से ज्यादा का वक्त लग जाता है.
लालबाग के राजा की कहानी शुरू होती है उनके पड़ोसी गणेश गली के गणपति से. पुराने लोग बताते हैं कि कई दशकों पहले गणेश गली के गणपति के पास मछुआरों ने मन्नत मांगी कि अगर प्रशासन की तरफ से उन्हें एक शेड बनाकर मिल जाये तो वे भी अपने यहां गणपति की प्रतिष्ठापना करेंगे. उनकी मन्नत पूरी हुई और उसकी बाद से लालबाग के राजा की स्थापना होने लगी. इस तरह से गणेश गली के गणपति भी मन्नत पूरी करने वाले गणपति माने जाते हैं और यहां भी भक्तों की भीड लगती है.
लालबाग के राजा के अलावा एक और राजा चर्चित हैं. ये हैं गिरगांव के राजा. इन गणेशजी की खासियत ये है कि इनकी 25 फुट ऊंची मूर्ति पूरी तरह से मिट्टी की बनाई जाती है न कि प्लास्टर औफ पेरिस की. और ये आज से नहीं हो रहा बल्कि बीते अस्सी सालों से हो रहा है जब पर्यावरण के प्रति इतनी जागृति नहीं थी. मिट्टी की मूर्ति विसर्जित होने पर पानी में प्रदूषण नहीं फैलाती और तुरंत पिघल जाती है. यही वजह है कि अबसे 3 साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में गिरगांव के राजा का जिक्र किया था.
गौड सारस्वत ब्राहम्ण मंडल का पंडाल चर्चित
मुंबई के चर्चित पंडालों में एक हैं गौड सारस्वत ब्राहम्ण मंडल का पंडाल. वडाला इलाके में विराजने वाले यहां के गणपति मुंबई के सबसे अमीर गणपति माने जाते हैं. कई किलो सोने के आभूषणों से इनकी प्रतिमा जगमगाती है. मुंबई के चेंबूर इलाके के एक गणपति अंडरवर्लड डॉन छोटा राजन के गणपति के नाम से मशहूर हैं. यहां गणपति सहयाद्री क्रिडा मंडल लाता है. किसी वक्त में डॉन छोटा राजन इस मंडल का सदस्य हुआ करता था. छोटा राजन के भारत छोड़ने और फिर इंडोनेशिया से गिरफ्तार होकर दिल्ली के तिहाड जेल जाने के बावजूद इस पंडाल का नाम राजन के साथ जुड़ा है.
मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर देशभर में मशहूर है लेकिन गणेशोत्सव के दौरान मुंबई में सिद्धिविनायक के 2 मंदिर हो जाते है. मसजिद बंदर इलाके में हर साल सिद्धिविनायक की प्रतिकृति बनाई जाती है. यहां आने पर वही अनुभूति होती है जो कि प्रभादेवी इलाके के सिद्धिविनायक मंदिर में जाकर.
आम लोगों के साथ साथ बॉलीवुड के सेलिब्रिटीज की गणेश भकित भी देखते ही बनती है. हर साल कई फिल्मी हस्तियों की तस्वीर इस त्यौहार को मनाते दिखाईं देतीं हैं.( अभिनेता नाना पाटेकर हर साल अपने घर गणपति प्रतिमा लाते हैं. इसी तरह से सलमान खान भी गणेश उत्सव के मौके पर ढोल-नगाडों के साथ जश्न मनाते दिखाई देते हैं. शाहरूख खान के घर भी गणपति पूजा होती है. अभिनेता जीतेंद्र गिरगांव में हर साल अपने पुराने घर जाकर गणेश पूजन करते हैं.
दस दिनों बाद होती गणेश उत्सव की समाप्ति
गणेश उत्सव की समाप्ति दस दिनों बाद यानी कि अनंत चतुर्दशी के दिन होती है. ये वो दिन होता है जब अपने आराध्य देव के प्रति भक्तों की भावना अपने चरम पर नजर आती है. गणपति बाप्पा मोर्या, पुढच्या वर्षी लवकरया के नारों के साथ लोगों की भीड़ सागर तटों पर दोपहर बाद से उमड़ने लग जाती है. मुंबई के गिरगांव चौपाटी, दादर चौपाटी और जूहू चौपाटी पर विसर्जन के लिये छोटी बड़ी, रंग-बिरंगी गणपति प्रतिमाओं का आगमन शुरू हो जाता है. दक्षिण मुंबई की गिरगांव चौपाटी सबसे बडा विसर्जन स्थल है. यहां शाम होते होते एक तरफ जनसागर नजर आता है तो दूसरी तरफ अरब सागर.
उत्सव की समाप्ति गिरगांव चौपाटी पर अगली सुबह लालबाग के राजा के विसर्जन के साथ होती है जो कि करीब 20 घंटे का सफऱ पूरा करके यहां पहुंचते हैं. उनकी सवारी मध्य और दक्षिण मुंबई के कई इलाकों से होकर गुजरती है जहां रास्तों पर लाखों लोगों की भीड उनकी झलक पाने के इंतजार में खड़ी रहती है. कोली समुदाय के लोगों की नौका पर से दी गई सलामी के बाद लालबाग के राजा समुद्र के रास्ते से फिर अपने धाम लौट जाते हैं.
बीते दो सालों से गणेशउत्सव का रंग फीका है. कोरोना की महामारी की वजह से सरकार ने कई तरह की बंदिशें लगा दीं है. अब भक्तों की विघनहर्ता गणेशजी से यही फरियाद है कि वे इस बीमारी का संहार करें और लोग फिर पहले की तरह उनका स्वागत कर सकें, इस त्यौहार का पूरा आनंद उठा सकें.