Ganesh Damodar Savarkar Death Anniversary: आपने वीर सावरकर का नाम तो कई बार सुना होगा, लेकिन इनके बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर के बारे में शायद ही ज्यादा कुछ जानते होंगे. गणेश दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम हैं जिनका आरएसएस में काफी योगदान है. इन्हें लोग बाबाराव नाम से भी जानते थे. बाबाराव ने आजादी की लड़ाई में अहम योगदान दिया था. हालांकि वह वीर सावरकर की तरह मशहूर नहीं हुए.
गणेश दामोदर सावरकर का निधन 16 मार्च 1945 को हुआ था. गणेश दामोदर सावरकर को आरएसएस के पांच संस्थापकों में से एक माना जाता है. उन्होंने इसकी अवधारणा को अपने एक निबंध के जरिये भी स्पष्ट किया था. आज हम आपको बताएंगे गणेश दामोदर सावरकर से जुड़ी कुछ ऐसी ही अनसुनी कहानियां.
परिवार के साथ-साथ देश के लिए भी निभाई जिम्मेदारी
बाबाराव का जन्म 13 जून 1879 को महाराष्ट्र के नासिक के पास भागपुर नामक गांव में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था. शुरुआती शिक्षा के दौरान इनका मन धर्म, योग और जप-तप में ज्यादा लगता था. वह संन्यासी बनने की सोचने लगे थे. इस बीच इनके पिता का प्लेग महामारी में निधन हो गया. पिता की मौत से 7 साल पहले मां राधाबाई का भी निधन हो चुका था. बाबाराव घर में सबसे बड़े थे, ऐसे में इनके ऊपर अपने दो छोटे भाइयों और बहन की जिम्मेदारी आ गई. वह इस जिम्मेदारी के साथ-साथ धर्म के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाते रहे. वह अभिनव भारत सोसायटी नामक क्रांतिकारी दल से जुड़ गए और जल्द ही उसके सक्रिय सदस्य हो गए. बाद में इनके छोटे भाई वीर सावरकर भी इसी दल से जुड़े. कहा जाता है कि इस दल की स्थापना बाबाराव ने ही की थी.
अपनी रचनाओं से जगाते रहे लोगों में देशप्रेम
बाबाराव अच्छे लेखक भी थे. काफी शोध के बाद उन्होंने अंग्रेजी में ‘इंडिया एज ए नेशन’ नाम से एक किताब लिखी. किताब जब्त न हो इसके लिए किताब छद्म नाम दुर्गानंद नाम से लिखी गई. हालांकि अंग्रेजों को इसका पता चल गया और किताब पर प्रतिबंध लग गया. साल 1909 में नासिक से बाबाराव को गिरफ्तार किया गया और उनपर देशद्रोह का मुकदमा चला. इन्हें भी काला पानी की सजा सुनाई गई. बाबाराव भी पूरे 20 साल तक अंडमान की सेल्युलर जेल में बंद रहे. वर्ष 1921 में उन्हें गुजरात लाया गया. यहां साबरमती जेल में एक साल तक बंद रहे. इसके बाद अंग्रेजों ने इन्हें छोड़ दिया.
इस तरह की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
जेल से छूटने के बाद भी बाबाराव शांत नहीं बैठे. उन्होंने बहुसंख्यकों को एकजुट करने का काम शुरू किया. अपने इसी मकसद को लेकर वह डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से मिले. उनसे मिलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस की रूप-रेखा तैयार हुई थी. बाबाराव ने इस दौरान मराठी में 'राष्ट्र मीमांसा' नाम से एक निबंध लिखा था. यह अंग्रेजी में गोलवलकर के नाम से 'We or our Nationhood Defined' शीर्षक से छपा था. बाबाराव लिखित इस निबंध ने ही एक तरह से आरएसएस की मूलभूत अवधारणा को स्पष्ट किया था. यही कारण है कि उन्हें आरएसएस के पांच संस्थापकों में से एक माना जाता है.
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