सुप्रीम कोर्ट ने गणेश विसर्जन में ढोल-ताशा समूहों की संख्या सीमित करने के एनजीटी के फैसले पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि ढोल-ताशे पुणे की जान है. देशभर में खासतौर से महाराष्ट्र में गणेश चतुर्शी और गणेश विसर्जन का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है. लोग गणेश चुतर्थी के दिन ढोल के साथ नाचते-गाते घर में गणेश की प्रतिमा स्थापित करते हैं और फिर गणेश विसर्जन के दिन प्रतिमा विसर्जित करते हैं. विसर्जन के समय भी लोग ढोल-ताशों के साथ नाचते गाते जाते हैं और गणेश से अगले साल फिर से उनके घर आने को कहते हैं.


राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) भगवान गणेश की मूर्तियों के विसर्जन के समारोहों में शामिल होने वाले ढोल-ताशा समूहों में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी थी. गुरुवार (12 सितंबर, 2024) को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी.


इससे पहले, मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने एनजीटी के आदेश के खिलाफ पुणे के एक ढोल-ताशा समूह की याचिका पर दोपहर दो बजे सुनवाई करने का निर्णय लेते हुए राज्य के अधिकारियों को इस संबंध में नोटिस भी जारी किया.


संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वकील अमित पई ने कहा कि ढोल-ताशा का पुणे में सौ सालों से अधिक समय से गहरा सांस्कृतिक महत्व रहा है और इसकी शुरुआत लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने की थी. उन्होंने कहा कि एनजीटी के 30 अगस्त के निर्देश से ऐसे समूह प्रभावित होंगे.


बेंच ने कहा, 'नोटिस जारी किया जाए...निर्देश संख्या 4 (ढोल-ताशा समूहों में व्यक्तियों की संख्या पर) के निष्पादन पर रोक रहेगी. उन्हें ढोल ताशे बजाने दें. ये पुणे की जान है.' एनजीटी ने ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से गणपति विसर्जन में शामिल ढोल-ताशा समूह में लोगों की संख्या 30 तक सीमित कर दी थी. गणेश चतुर्थी का त्योहार सात सितंबर से शुरू हुआ और यह अनंत चतुदर्शी तक मनाया जाता है. महाराष्ट्र के कुछ भागों में ढोल-ताशा समूह पारंपरिक त्योहारों का अभिन्न हिस्सा रहे हैं.


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