Gauhati High Court Fined Election Officer: गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सेना के रिटायर्ड अधिकारी को गैर प्रवासी घोषित किए जाने पर चुनाव अधिकारी पर जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 10 हजार रुपये का मुआवजा देने के साथ ही चुनाव अधिकारी की पहचान करने का आदेश दिया है. दरअसल ये याचिका 2019 में दायर की गई थी.


इसका निपटारा करते हुए जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस रॉबिन फुकन की खंडपीठ ने सोमवार (20 फरवरी) को 52 डिब्रूगढ़ विधानसभा के इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ) पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया. कोर्ट ने यह जुर्माना रिटायर्ड सेना अधिकारी को फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में भेजने के लिए लगाया.


 क्या कहा कोर्ट ने?


दरअसल, डिब्रूगढ़ विधानसभा के चुनाव अधिकारी ने जगत बहादुर छेत्री को संदिग्ध मतदाता बताते हुए गैर प्रवासी घोषित कर दिया था. जगत बहादुर ने 38 सालों तक भारतीय सेना में सेवा की है. हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक, अदालत ने देखा कि जगत बहादुर छेत्री की जन्मतिथि 1937 है और उनका जन्म स्थान डिब्रूगढ़ है. वो साल 1963 में सेना में भर्ती हुए थे और अब उनकी उम्र 85 साल है.


गुवाहाटी हाई कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा, “अगर जगत बहादुर छेत्री का जन्म 1937 में हुआ था और उनका जन्म स्थान डिब्रूगढ़ है. ऐसी कोई सामग्री नहीं है कि उनके जन्म के बाद वह स्पेसिफाईड एरिया (बांग्लादेश) में चले गए और 25 मार्च 1971 के बाद असम राज्य में फिर से प्रवेश किया. हमारा विचार है कि 52 डिब्रूगढ़ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के ईआरओ की ओर से याचिकाकर्ता को एक राय के लिए फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के पास भेजने का फैसला विवेक से नहीं लिया गया है.”


क्या है मामला?


अदालत ने आगे इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता साल 1963 से भारतीय सेना में कार्यरत थे और साल 2005 में रिटायर हो गए. जांच अधिकारी ने उचित तरीके से अपना कर्तव्य नहीं निभाया. दरअसल, चुनाव अधिकारी ने जगत बहादुर क्षेत्री को डिब्रूगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के लिए डिस्क्वालीफाई वोटर घोषित कर दिया था.


इसके बाद क्षेत्री ने अपनी नागरिकता को लेकर सवाल उठाते हुए कोर्ट का रुख किया. यहां तक कि असम के भू-विज्ञान और खनन विभाग के अधिकारी ने ऑन-स्पॉट सत्यापित भी किया था कि छेत्री का जन्म डिब्रूगढ़ में हुआ था. इसके बावजूद अधिकारी ने उन्हें गैर प्रवासी बता दिया.


ये जान लेना जरूरी है कि असम में 25 मार्च 1971 को बांग्लादेश बनने के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को अवैध प्रवासी के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जब-तक कि उसके बाद प्रवासी साबित करने वाले दस्तावेज न हो. जिन लोगों पर शक होता है कि वो बाहरी हैं उन्हें भी डिस्क्वालीफाई वोटर्स की कैटेगरी में चिन्हित किया जाता है.


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